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गीता दर्शन भाग-5
मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम् । व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं तदेव मे रूपमिदं
प्रपश्य ।। ४९ ।। संजय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः । आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा ।। ५० ।। अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन । इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः । । ५१ ।। इस प्रकार के मेरे इस विकराल रूप को देखकर तेरे को व्याकुलता न होवे और मूढभाव भी न होवे और भयरहित, प्रीतियुक्त मन वाला तू उस ही मेरे इस शंख, चक्र, गदा, पद्म सहित चतुर्भुज रूप को फिर देख । उसके उपरांत संजय बोला, हे राजन्, वासुदेव भगवान ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे ही अपने
चतुर्भुज रूप को दिखाया और फिर महात्मा कृष्ण ने सौम्यमूर्ति होकर इस भयभीत हुए अर्जुन को धीरज दिया। उसके उपरांत अर्जुन बोला, हे जनार्दन, आपके इस अतिशांत मनुष्य रूप को देखकर अब मैं शांतचित्त हुआ अपने स्वभाव को प्राप्त हो गया हूं।
एक मित्र ने पूछा है कि क्या कोई मनुष्य बच्चे की भांति सरल हो, जिसे कोई भी ज्ञान नहीं, परमात्मा को पा सकता है? यदि हां, तो कैसे ?
जी
सस का बहुत प्रसिद्ध वचन है...। पूछा किसी ने कि कौन आपके राज्य का प्रवेश का अधिकारी होगा ? प्रभु के राज्य में कौन प्रवेश कर सकेगा? तो जीसस ने कहा, जो बच्चों की भांति सरल और निर्दोष हैं वे ।
लेकिन इसमें बहुत कुछ समझने जैसा है।
एक तो, जीसस ने यह नहीं कहा कि जो बच्चे हैं वे । जीसस ने कहा, जो बच्चों की भांति सरल हैं वे । नहीं तो सभी बच्चे परमात्मा में प्रवेश कर जाएंगे। बच्चे की भांति सरल कौन होगा? बच्चा कभी
नहीं हो सकता। बच्चे की भांति सरल का अर्थ ही यह हुआ कि जो | बच्चा नहीं है और बच्चे की भांति सरल है । शरीर की उम्र बढ़ गई | हो, मन की उम्र बढ़ गई हो, संसार को जान लिया हो, फिर भी जो बच्चे की भांति सरल हो जाता है।
तो एक तो बचपन है, जो मां-बाप से मिलता है। वह शरीर का बचपन है। वह बचपन अज्ञान से भरा हुआ है। उस बचपन में परमात्मा को जानने का कोई उपाय नहीं है । बच्चा सरल है, लेकिन
अज्ञान के कारण सरल है। यह सरलता झूठी है। बच्चे की सरलता | झूठी है ! इसे ठीक से समझ लें। क्योंकि सरलता के पीछे वह सब जहर छिपा है, जो कल जटिल बना देगा। यह सिर्फ ऊपर-ऊपर है । भीतर तो, बच्चे के भीतर वही सब छिपा है, जो जवानी में | निकलेगा, बुढ़ापे में निकलेगा। वह सब मौजूद है। यह बच्चा ऊपर से सरल है, भीतर तो जटिल है। और ऊपर भी इतना सरल नहीं है, जितना हम मानते हैं ।
फ्रायड की खोजों ने काफी जाहिर कर दिया है कि बच्चे भी बहुत जटिल हैं। आप सोचते ही हैं कि बच्चा क्रोध नहीं करता; सच तो | यह है कि बच्चे जितना क्रोध करते हैं, बड़े नहीं कर पाते। आप | सोचते ही हैं कि बच्चा ईर्ष्या से नहीं भरता; बच्चे भयंकर रूप से | ईर्ष्यालु होते हैं। और दूसरे के हाथ में खिलौना देखकर उनको जितनी | बेचैनी होती है, उतना दूसरे की कार देखकर आपको नहीं होती। और आप सोचते ही हैं कि बच्चों में घृणा नहीं होती। और सोचते ही हैं कि बच्चों में हिंसा नहीं होती । बच्चे भयंकर रूप से हिंसक होते हैं। और जब तक कीड़ा उनको दिखाई पड़ जाए कोई चलता हुआ, उसको तोड़-मरोड़ न डालें, तब तक उनको चैन नहीं मिलती।
बच्चा तोड़ने में भी काफी रस लेता है, विध्वंस में भी काफी रस लेता है। ईर्ष्या से भी भरा होता है, हिंसा से भी भरा होता है। और आप सोचते ही हैं कि बच्चे में कामवासना नहीं होती; वह भी भ्रांति है। क्योंकि आधुनिकतम सारी खोजें कहती हैं कि बच्चे में सारी कामवासना भरी है, जो बाद में प्रकट होने लगेगी।
आप खयाल करें। हालांकि हमारा मन बहुत सी बातों को मानने को तैयार नहीं होता, क्योंकि हमारी बहुत-सी धारणाओं को चोट | लगती है। घर में अगर लड़का पैदा होता है, तो लड़के और बाप | के बीच थोड़ी-सी कलह बनी ही रहती है। वह दो पुरुषों की कलह है । और मनोविज्ञान कहता है कि एक स्त्री के लिए ही वह कलह है, मां के लिए। वह जो बच्चा है और बच्चे का बाप जो है, वे दोनों अधिकारी हैं एक स्त्री के । और बच्चा पसंद नहीं करता कि बाप
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