________________
आंतरिक सौंदर्य
नासमझी है। चेष्टा छोड़ने के लिए भी चेष्टा तो होनी ही चाहिए। | जो खोज ही नहीं रहे हैं। उनसे तो मैं कहूंगा, खोजो। जहां भी तुम्हारी
एक मजे की बात इससे मुझे स्मरण आती है। एक मित्र ने पूछी सामर्थ्य हो, वहां खोजो। मूर्ति में, शास्त्र में, तीर्थ में, जहां तुम खोज भी है, उपयोगी होगी। कृष्ण भी कहते हैं कि वेद में मैं नहीं मिलूंगा, . सको, खोजो। तुम्हारे मन को थोड़ा थकने दो। खोज व्यर्थ होने दो। शास्त्र में नहीं मिलूंगा, यज्ञ में नहीं मिलूंगा, योग में, तप में नहीं तभी तुम भीतर मुड़ सकोगे। जिंदगी में छलांग नहीं होती, जिंदगी में मिलूंगा। लेकिन आपको पता है यह किन लोगों से कहा है उन्होंने? | एक क्रमिक गति होती है। जो वेद में खोज रहे थे, यज्ञ में खोज रहे थे, तप में खोज रहे थे, | __ आप भी सुन लेते हैं कि शास्त्र में नहीं है, तो फिर क्या फायदा? योग में खोज रहे थे, उनसे कहा है। आपसे नहीं कहा है। आप तो खोज ही नहीं रहे हैं।
बुद्ध ने कहा है, शास्त्रों को छोड़ दो, तो ही सत्य मिलेगा। | एक मित्र ने पूछा है कि जब कृष्ण खुद ही कहते हैं लेकिन यह उनसे कहा है जिनके पास शास्त्र थे। कृष्णमूर्ति भी लोगों | कि शास्त्र में नहीं है, तो फिर यह गीता समझाने से से कह रहे हैं, शास्त्रों को छोड़ दो, सत्य मिलेगा। लेकिन वे उनसे क्या होगा? रामायण पढ़ने से क्या होगा? जब खुद कह रहे हैं जो शास्त्र को पकड़े ही नहीं हैं। आप छोड़िएगा खाक? | कृष्ण ही कहते हैं कि वेद में कुछ नहीं है, तो गीता जिसको पकड़ा ही नहीं उसको छोड़िएगा कैसे?
में कैसे कुछ हो सकता है? कृष्णमूर्ति को सुनने वाले लोग सोचते हैं कि तब तो ठीक। सत्य तो हमें मिला ही हुआ है, क्योंकि हमने शास्त्र को कभी पकड़ा ही नहीं। जिसने पकड़ा नहीं है वह छोड़ेगा कैसे? और सत्य मिलेगा + क कहते हैं वे। वे मित्र ठीक पूछ रहे हैं कि अगर छोड़ने से। पकड़ना उसका अनिवार्य हिस्सा है।
UI कृष्ण की ही बात हम मान लें, तो फिर गीता में भी आपके पास जो है वही आप छोड़ सकते हैं। जो आपके पास क्या रखा है? लेकिन इतनी बात भी आपको पता चल नहीं है उसे कैसे छोड़िएगा? आपकी खोज होनी चाहिए। और जब | | जाए कि वेद में नहीं है, इतना भी गीता से पता चल जाए, तो बहुत आप खोज से थक जाएंगे; ऊब जाएंगे; परेशान हो जाएंगे; जब न | | पता चल गया। अगर शास्त्र पढ़ने से इतना भी पता चल जाए कि खोजने को कोई रास्ता बचेगा, न खोजने की हिम्मत बचेगी; जब | शास्त्र बेकार हैं, तो काफी पता चल गया। यह भी आपको अपने सब तरफ फ्रस्ट्रेटेड, सब तरफ उदास टूटे हुए आप गिर पड़ेंगे, उस | से कहां पता चलता है! गिर पड़ने में उसका मिलना होगा। क्योंकि जब बाहर खोजने को । मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, कृष्णमूर्ति कहते हैं कि किसी कुछ भी नहीं बचता, तभी आंखें भीतर की तरफ मुड़ती हैं। और | की मत मानो, अपना खोजो। मैं उन लोगों से पूछता हूं कि तुम जब बाहर चेतना को जाने के लिए कोई मार्ग नहीं रह जाता, तभी कृष्णमूर्ति की मानकर चले आए हो। और कृष्णमूर्ति ने समझाया है चेतना अंतर्गामी होती है।
कि किसी की मत मानो। और तुम मुझे कह रहे हो, कृष्णमूर्ति कहते एक गरीब आदमी से हम कहें कि तू धन का त्याग कर दे, एक हैं कि किसी की मत मानो, हम अब किसी की न मानेंगे। पर तुमने भिखमंगे से हम कहें कि तू बादशाहत को लात मार दे। भिखमंगे | किसी की मान ली। कृष्णमूर्ति कहते हैं, गुरु से कुछ न मिलेगा। तुम सदा तैयार हैं बादशाहत को लात मारने को। लेकिन बादशाहत कृष्णमूर्ति के पास किसलिए गए थे? और अगर इतना भी तुम्हें कहां है जिसको वे लात मार दें? धन कहां है जिसे वे छोड़ दें? और | मिल गया, तो कृष्णमूर्ति इतने के लिए कम से कम तुम्हारे गुरु हो जिसके पास धन नहीं है, वह धन को कैसे छोड़ेगा? और जिसके | गए। और फिर अब तुम बार-बार क्यों जा रहे हो, जब कृष्णमूर्ति पास बादशाहत नहीं है, वह बादशाहत कैसे छोड़ेगा? हम वही कहते हैं, गुरु से कुछ न मिलेगा। छोड़ सकते हैं जो हमारे पास है।
तो वर्ष दर वर्ष कृष्णमूर्ति को सुनने वालों को देखें। चालीस साल तो ध्यान रखें, जब मैं आपसे कहता हूं कि परमात्मा को खोजने से वे ही शक्लें बार-बार वहां बैठी हुई दिखाई पड़ेंगी। ये क्या सुन की कोई भी जरूरत नहीं है, क्योंकि वह खोजने वाले में छिपा है, रहे हैं अगर गुरु से कुछ भी न मिलेगा! तो कृष्णमूर्ति से कैसे मिलेगा! तो मैं यह उनसे कह रहा हूं जो खोज रहे हैं, उनसे नहीं कह रहा हूं लेकिन अगर इतना भी मिल गया, तो भी कुछ कम नहीं है।
429