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3 पूरब और पश्चिम ः नियति और पुरुषार्थ 88
है। एक मां अपने बेटे को बड़ा होते देखकर खुश होती है। हम पूछे, | चंद्र पर पहुंचता है, तो जिस तरह के कपड़े पहने होता है, जिस तरह क्यों? तो सृजन, एक जन्म विकसित हो रहा है उसके हाथों; वह की ड्रेस पहने होता है, जिस तरह का नकाब लगाए होता है। सत्तर आनंदित है।
हजार साल पुराना पत्थर पर खुदा हुआ चित्र अंतरिक्ष यात्री का! ठीक ऐसे ही विध्वंस का भी आनंद है, रुग्ण, बीमार। और जब | | जब तक हमारे पास अंतरिक्ष यात्री नहीं था, तब तक तो हम समझ आदमी की आत्मा दरिद्र होती है, तो विध्वंस का आनंद होता है। | | भी नहीं सकते थे कि यह चित्र किस चीज का है। अब हम समझ
महाभारत ऐसे ही घटित नहीं हुआ। वह घटित हुआ समृद्धि के | | सकते हैं। शिखर पर, जब भीतर आत्मा बिलकल दरिद्र हो गई। और जब । अब बड़ी कठिनाई है। यह सत्तर हजार साल पुराना चि हिंसा में रस रह गया। और तोडने-फोडने. मिटा डालने की। लोगों ने बनाया. उनके पास अंतरिक्ष यात्री जैसी कोई चीज रही उत्सुकता इतनी बढ़ गई कि दुर्योधन राजी न हुआ एक इंच जमीन | | होगी। अन्यथा इसके बनाने का कोई उपाय नहीं है। अगर सत्तर देने को। चाहे सारी मनुष्य-जाति नष्ट हो जाए, इसके लिए राजी | हजार साल पहले आदमी अंतरिक्ष की यात्रा कर सकता था, तो हमें था। लेकिन एक इंच जमीन देने को राजी नहीं था!
सोचना होगा कि हम पहली दफा चांद पर पहुंच गए हैं, इस भ्रम में यह जो भाव-दशा है, यह भाव-दशा पश्चिम में फिर खड़ी हो न पड़ें। और हमें यह भी सोचना होगा कि हम पहली दफा इन सारी गई है। और पश्चिम किसी भी दिन फूट सकता है, विस्फोट हो| समृद्धियों को पा लिए हैं, इस भ्रम में न पड़ें। सकता है। और सारी तैयारी है विस्फोट की। किसी भी क्षण तिब्बत के एक पर्वत पर सत्तर रिकार्ड मिले हैं पत्थर के। जैसा जरा-सी चिनगारी, और फिर पश्चिम को मृत्यु के मुंह से रोकना ग्रामोफोन रिकार्ड होता है, वे पत्थर के हैं। और ठीक ग्रामोफोन मुश्किल हो जाएगा।
रिकार्ड पर जैसे ग्रव्स होते हैं, वैसे ग्रव्स उन पत्थर पर हैं। बीच में 'ठीक ऐसी ही घड़ी भारत में महाभारत के समय आ गई थी। और छेद है, जैसा कि ग्रामोफोन रिकार्ड पर होता है। और अभी वैज्ञानिक ऐसी घड़ी पूरब में बहुत बार आ चुकी है। यह दुनिया नई नहीं है | | उन पर अनुसंधान करते हैं, तो वे कहते हैं, उन पत्थर के रिकार्ड से और हम जमीन पर पहली दफा सभ्य नहीं हुए हैं।
ठीक वैसी ही विद्युत की तरंगें उठती हैं, जैसे ग्रामोफोन के रिकार्ड अभी जितनी नवीनतम खोजें हैं पुरातत्व की, वे आदमी के | | से उठती हैं। फिर एकाध नहीं, सत्तर! और अंदाजन कोई बीस इतिहास को पीछे हटाती जाती हैं। अभी सिर्फ पचास साल पहले हजार से चालीस हजार साल पुराने। पश्चिम के इतिहासविद मानते थे कि जीसस से चार हजार साल तो क्या कभी आज से बीस हजार साल पहले किसी सभ्यता ने पहले दनिया का निर्माण हआ। तो कल इतिहास छः हजार साल कोई उपाय खोज लिया था पत्थर पर भी रिकार्ड करने का। और का था।
अगर खोज लिया हो, तो फिर हमें भ्रम छोड़ देना चाहिए कि हम हमें मानने में सदा कठिनाई रही कि छः हजार साल का कुल पहली बार सभ्य हुए हैं। इतिहास! हमारे पास किताबें हैं, वेद हैं, जो पश्चिम भी स्वीकार पूरब बहुत बार सभ्य हो चुका है और पूरब बहुत बार अनुभव करता है कि कम से कम छः हजार साल पुराने तो हैं ही। हमारे लेखे ले चुका है समृद्धि का। और हर समृद्धि के अनुभव के बाद उसे से तो वे कोई नब्बे हजार साल पुराने हैं। और हमारा लेखा पता चला है कि आदमी चीजें तो कमा लेता है, अपने को खो देता रोज-रोज सही होता जा रहा है। संभव है कि वे और भी पुराने हों। है। मकान तो बन जाता है, धन इकट्ठा हो जाता है; आत्मा विनष्ट
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा की खुदाई ने बताया है कि सात हजार साल हो जाती है। इस कारण पूरब ने यह विकल्प चुना कि भविष्य की पुरानी सभ्यता थी। लेकिन ये अब पुरानी बातें हो गईं। अभी जो चिंता छोड़ी जा सके, तो ही आत्मा निर्मित होती है। . नवीन खोजें हैं, वे सभ्यता को-सभ्यता को–पचास हजार साल भविष्य का तनाव ही पीड़ा है। और भविष्य की चिंता छोड़ने का पीछे ले जाती हैं। और अभी नवीनतम कुछ ऐसी खोजें हाथ में लगी | एक ही उपाय है, और वह उपाय यह है कि अगर आप इस बात को हैं, जिन्होंने कि सारे इतिहास की धारणा को अस्तव्यस्त कर दिया। | मानने को राजी हो जाएं कि भविष्य अपरिहार्य है; नियत है; जो
आस्ट्रेलिया में कोई सत्तर हजार साल पुराने पत्थर पर खुदे हुए | | होना है, होगा। जो होना है, होगा, अगर इसके लिए राजी हो जाएं, दो चित्र मिले हैं। वे चित्र ऐसे हैं, जैसे कि जब हमारा अंतरिक्ष यात्री | | तो फिर आपको करने को कुछ नहीं बचता है। और जब करने को
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