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ॐ पूरब और पश्चिमः नियति और पुरुषार्थ 8
कि अब विचार होने लगा है कि इतनी कीमत पर, आदमी को | कि आज को कल पर कुर्बान कर दूं, तो कल जब आएगा, वह भी खोकर, इतनी व्यवस्था करनी क्या उचित है? और अगर आदमी आज होकर आएगा। उसे भी मैं आने वाले कल पर कुर्बान करूंगा। की भीतर की सारी शांति और आनंद ही खो जाता हो, तो हम बाहर वह कल भी जब आएगा, तब आज होकर आएगा। उसे भी मैं आने कितनी समृद्धि अर्जित कर लेते हैं, उसका प्रयोजन क्या है? क्योंकि | वाले कल पर कुर्बान करूंगा। तो जीवन निरंतर पोस्टपोन होता अंततः सारी समृद्धि मनुष्य के लिए है; मनुष्य समृद्धि के लिए नहीं | रहेगा, जी नहीं सकेंगे हम कभी। है। और अंततः बाहर जो भी हम बना लेते हैं, वह आदमी के लिए ___ कल तो कभी आता नहीं है, आता तो सदा आज है। मिलता तो है कि उसके काम आ सके। लेकिन अगर आदमी ही खो जाता हो सदा वर्तमान है. भविष्य तो कभी मिलता नहीं। आपकी भविष्य से बनाने में, तो यह बहुत महंगा सौदा है और मूढ़तापूर्ण भी। कोई मुलाकात हुई है? कभी नहीं हुई है। कभी होगी भी नहीं।
पश्चिम इस बात में सफल हुआ है कि भविष्य को आदमी मुलाकात तो वर्तमान से होती है। लेकिन अगर मन की यह आदत प्रभावित कर सकता है। लेकिन प्रभावित करने में आदमी नष्ट हो हो जाए कि वर्तमान को भविष्य के लिए नष्ट करना है, तो यह जाता है।
आदत आपका पीछा करेगी। मरते दम तक आप जी नहीं पाएंगे, पूरब ने दूसरा दृष्टिकोण लिया है। पूरब कहता है, भविष्य को | सिर्फ जीने का सपना देखेंगे, सोचेंगे कि जीऊंगा। आदमी निश्चित निर्मित कर ही नहीं सकता। भविष्य नियति है, | तो पश्चिम ने जीवन के साधन जटा लिए. लेकिन जो जी सकता अपरिहार्य है। जो होना होगा, वह होगा।
है, वह अनुपस्थित हो गया। हम जीवन के साधन न जुटा पाए, इसका दुष्परिणाम हुआ कि बाहर के जगत में हम गरीब हैं, दीन | लेकिन जो जी सकता है, वह उपस्थित रहा है। और दोनों बातें एक हैं, दुखी हैं, बीमार हैं, परेशान हैं। हम कोई भौतिक समृद्धि अर्जित साथ नहीं हो सकती हैं। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती हैं। नहीं कर पाए। यह परिणाम हुआ। क्योंकि जब भविष्य को हमने सत्य क्या है ? दोनों ही सत्य हैं। भविष्य निर्मित किया जा सकता छोड़ ही दिया नियति पर, तो हम भविष्य के लिए कोई श्रम करें, | है, अगर मनुष्य अपने को कीमत में चुकाने को राजी है। भाग्य यह बात ही समाप्त हो गई।
बदला जा सकता है, अगर आप अपने को मिटाने को राजी हैं। लेकिन इसका एक गहरा लाभ भी हुआ। और वह लाभ यह अगर आप अपने को बचाने की इच्छा रखते हैं, और अपने होने हुआ कि भविष्य की चिंता से जो विक्षिप्तता मनुष्य में पैदा हो सकती का आनंद लेना चाहते हैं, तो फिर भविष्य नहीं बदला जा सकता। थी, उससे हम बच सके। और कुछ लोग सब कुछ भविष्य पर फिर भविष्य नियति है। छोड़कर परम आनंद के क्षण को भी उपलब्ध हो सके। | पश्चिम का विचारशील व्यक्तित्व आज अनुभव कर रहा है कि अभी पश्चिम को बुद्ध पैदा करने में देर है। अभी पश्चिम को शायद पूरब के लोग जो कहते रहे हैं, वही ठीक है। और यह उचित
देर है। अभी पश्चिम चेतना की उन ऊंचाइयों भी है। अनभव के बाद ही यह बात अनभव की जा सकती है। अब को छूने में असमर्थ है, जो हमने छुईं। उसका आधार सिर्फ एक था | पश्चिम को अनुभव हो रहा है कि उन्होंने जो पाया, वह ठीक। कि हमने कहा, भविष्य तो निश्चित है, जो होना है, होगा। इसका | लेकिन जो गंवाया! परिणाम हुआ।
हम भी परेशान हैं, क्योंकि हमने भी कुछ गंवाया है। चुनाव जब __ अगर भविष्य में जो होना है, होगा, तो मुझे भविष्य के लिए | भी करना होता है, तो कुछ गंवाना भी होता है। हम भी आज परेशान चिंतित और परेशान होने का कोई भी कारण नहीं है। दूसरा परिणाम | हैं। इसलिए एक बड़ी अनूठी स्थिति पैदा हो गई है। यह हुआ कि अगर भविष्य निश्चित है, तो वर्तमान को भविष्य पर __ पूरब पश्चिम की तरफ हाथ फैलाए खड़ा है, भिक्षापात्र लिए; कुर्बान करना नासमझी है। तो मैं अभी जीऊं, यहीं। इस क्षण को | और पश्चिम पूरब की तरफ भिक्षापात्र लिए खड़ा है। पश्चिम पूछ
रहा है पूरब से मन की शांति के उपाय-ध्यान, योग, तंत्र, जप, मजे की बात यह है कि वर्तमान ही हमारे हाथ में होता है, भविष्य | | पूजा, प्रार्थना क्या है? और पूरब पश्चिम से मांग रहा है-रोटी, कभी हमारे हाथ में होता नहीं। आज ही हमारे हाथ में होता है, कल | | कपड़ा, अन्न, भोजन, मकान, इंजीनियर, डाक्टर। दोनों भिक्षा मांग हमारे हाथ में होता नहीं। और अगर मन की ऐसी आदत हो जाए । रहे हैं! यह होने वाला था।
कृष्ण पैदा का
यहबाराज
पूरा जीऊं।
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