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चरण-स्पर्श का विज्ञान
कुछ भी है जो साकार है ?
इस जगत में सभी कुछ निराकार है। लेकिन हमारे पास देखने वाली आंखें सीमित हैं। इसलिए निराकार भी हमें आकार ही दिखाई पड़ता है। आप अपनी खिड़की से आकाश को देखते हैं, तो खिड़की के बराबर चौखटे में ही आकाश दिखाई पड़ता है। आप अपने नीले चश्मे से जगत को देखते हैं, तो जगत नीला दिखाई पड़ता है। आपकी देखने की क्षमता के कारण आकार निर्मित होता है, अन्यथा आकार कहीं भी नहीं है।
आप कहेंगे, यह तो बात कुछ जंचती नहीं। हमारे शरीर का तो कम से कम आकार है!
वहां भी आकार नहीं है। कहां आपका शरीर समाप्त होता है, आपको पता है? अगर सूरज ठंडा हो जाए - दस करोड़ मील दूर है - अगर ठंडा हो जाए, तो आपके शरीर का आपको पता है क्या होगा? उसी वक्त ठंडा हो जाएगा। तो आपका शरीर आपकी चमड़ी पर नहीं समाप्त होता । वह दस करोड़ मील दूर जो सूरज है, वह भी आपके शरीर का हिस्सा है। क्योंकि उसके बिना आप जी नहीं सकते। वह जो दस करोड़ मील दूर सूरज है, वह भी आपके शरीर का हिस्सा है, क्योंकि आपका शरीर उसके बिना जी नहीं सकता। शरीर जुड़ा है उससे ।
कहां आपका शरीर खत्म होता है? आपके ऊपर? अगर आपके पिता न होते, तो आप हो सकते थे ?
पीछे लौटें! तब आपको पता चलेगा, अरबों-खरबों वर्षों का जो इतिहास है, उससे आपका शरीर निर्मित हुआ है। करोड़ों-करोड़ों वर्ष से जीवाणु चल रहा है, वह आपका शरीर बना है। अगर उस श्रृंखला में एक जीवाणु अलग हो जाए, तो आप नहीं होंगे। तो समय में पूरा इतिहास आपमें समाया हुआ है। अभी इस क्षण सारा जगत आपमें समाया हुआ है। अगर इस जगत में जरा भी फर्क हो जाए, आप नहीं होंगे।
तो आपका शरीर अनंत- अनंत शक्तियों का एक मेल है। आपको जितना दिखाई पड़ता है, उसको आप शरीर मान लेते हैं। और अगर यह सच है कि अनंत इतिहास आपमें समाया हुआ है, तो अनंत भविष्य भी आपमें समाया हुआ है। वह आपसे ही पैदा होगा।
आप कहां शुरू होते हैं? कहां समाप्त होते हैं? आपने अपने जन्म दिन को अपना जन्म-दिन समझ लिया है, यह आपकी समझ की सीमा है। कब आप पैदा हुए? आपका जीवाणु चल रहा है अरबों-अरबों खरबों वर्षों से। जब आप पैदा नहीं हुए थे, तब वह
आपकी मां में था, आपके पिता में था । और जब आपके मां-बाप भी पैदा नहीं हुए थे, तब वह किसी और में था। लेकिन वह चल रहा है। आप थे अनंत काल से । और आप जब नहीं होंगे, तब भी वह चलता रहेगा अनंत काल तक ।
कहां आपका शरीर समाप्त होता है? कहां शुरू होता है? कहां है सीमा उसकी ? अभी इस क्षण में भी कहां है उसकी सीमा ? किस | जगह हम मानें कि यहां मेरा शरीर समाप्त हुआ ? सूरज को हम अपने शरीर का हिस्सा मानें या न मानें? यह बड़ा सवाल है। वैज्ञानिक पूछते हैं कि इसमें कहां हम समाप्त करें शरीर को ?
वहां सूरज पर जरा-सी हलचल होती है और आपमें फर्क हो जाता है। आपको पता नहीं है। पिछले बीस वर्षों में सूरज और आदमी के शरीर पर गहन अध्ययन हुए हैं।
अमेरिका के एक रुग्ण चिकित्सालय में, बड़े हैरान थे कि किसी-किसी दिन विक्षिप्त लोगों का जो हिस्सा था, उसमें | किसी-किसी दिन पागल ज्यादा पागल मालूम पड़ते थे। और | कभी-कभी बहुत शांत मालूम पड़ते थे और कभी-कभी बहुत पागल मालूम पड़ते थे। और जब यह पागलपन का दौर आता था, तो किसी एक पागल को नहीं आता था, यह सारे पागलों को आता | था । ऐसा लगता था कि एक पीरियाडिकल सर्किल है। जैसे समुद्र में बाढ़ आती है, उतर जाती है; ज्वार चढ़ता है, भाटा आ जाता है। तो तीन वर्ष तक निरंतर उन पागलों के रिकार्ड को रखा गया कि किस दिन, कब, क्यों? कोई कारण नहीं मिलता था। क्योंकि भोजन में कोई फर्क पड़ा ? नहीं पड़ा। कोई अधिकारी बदले गए? नहीं बदले गए। कोई चिकित्सा बदली गई ? नहीं बदली गई। कोई फर्क नहीं है। जैसी व्यवस्था है, रूटीन, वैसा सब चल रहा है। अचानक एक दिन सारे पागल ज्यादा पागल हो जाते हैं। एक दिन सारे पागल ज्यादा शांत हो जाते हैं।
सब तरह की खोजबीन के बाद जो नतीजा हाथ में आया, वह यह कि सूरज से संबंध है। सूरज पर तूफान जब उठते हैं, तब वे | पागल ज्यादा पागल हो जाते हैं। और जब सूरज का तूफान शांत हो जाता है, तो वे पागल शांत हो जाते हैं।
और अब तो एक पूरा विज्ञान खड़ा हो रहा है कि सूरज पर जो कुछ घटता है, उसका ठीक अध्ययन किए बिना, आदमी के जीवन | में क्या घटता है, नहीं कहा जा सकता। हर नब्बे साल में सूरज पर बड़ी क्रांति घटित होती है। और जमीन पर जो भी उपद्रव होते हैं, वे हर नब्बे साल के पीरियड में होते हैं। हर ग्यारह साल में सूरज
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