Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 413
________________ 8 चरण-स्पर्श का विज्ञान तुझे दिखाई नहीं पड़ता है। मैंने जिसे पा लिया है, वह मुझे तेरे भीतर | तुम आ गए, तुम हल कर दो। तुम मेरे पैर पकड़ो और उस तरफ भी दिखाई पड़ता है। मैं तेरे चरण नहीं छू रहा हूं; मैं उसके चरण छू | कर दो, जहां वह न हो। रहा हूं। और एक दिन तुझे भी वह दिखाई पड़ जाएगा। यह समय कहानी बड़ी मीठी है। और यह कि पुजारियों ने उनके पैर सब का भर फासला है। चरणों में कोई फर्क नहीं है; समय भर का तरफ करने की कोशिश की और बड़ी मुश्किल में पड़ गए, जहां फासला है। जो आज तुझे दिखाई नहीं पड़ रहा है, मुझे दिखाई पड़ | | पैर किए, वहीं मक्का हट गया। मक्का हटा कि नहीं, यह बड़ा रहा है, वह कल तुझे भी दिखाई पड़ जाएगा। सवाल नहीं है। बड़ा सवाल यही है कि सच में ही कहां पैर करिएगा और जब बुद्ध को ज्ञान हुआ, तो उन्होंने पहला स्मरण अपने जहां भगवान नहीं है! पिछले जन्म के उस बुद्धपुरुष का किया है। उन्होंने कहा कि आज नानक को अगर एक दफा दिखाई पड़ गया है उसका होना, तो मैं समझ पाया कि उन्हें क्या दिखाई पड़ा होगा। आज मुझे भी | अब कोई जगह नहीं है, जहां वह न हो। अब वह सब जगह है। दिखाई पड़ रहा है, लेकिन यह सदा मेरे साथ था और मुझे दिखाई | अब तो कहीं भी पैर करो, कहीं भी सिर रखो। पैर भी उस पर ही नहीं पड़ा। | पड़ेंगे, सिर भी उस पर पड़ेगा। उठो-बैठो तो उसके भीतर, चलो नजर न हो, तो आपके पास भी रखी हो संपदा, तो भी दिखाई | | तो उसके भीतर, अब वही है और कुछ भी नहीं है। नहीं पड़ सकती। अंधे के पास दीया जल रहा हो, क्या अर्थ है ? | देखने की क्षमता हो, नानक की आंख हो, तो फिर सब जगह और बहरे के पास वीणा बज रही हो, क्या अर्थ है? कोई अर्थ नहीं | | है। और हमारी आंख हो, तो फिर कहीं भी नहीं है। फिर हमको है। क्योंकि वह घटना घट ही नहीं रही है। जब तक आपके पास | चिंता इसकी भी होती है कि राम में भी शक होता है, बुद्ध में भी संवेदना की इंद्रिय न हो, तब तक कुछ भी नहीं है। शक होता है। अगर आपको भगवान दिखाई न पड़ता हो राम में, तो इसकी | और आप ऐसा मत समझना कि आपको ही शक होता है। उस फिक्र में मत पड़ना कि राम भगवान हैं या नहीं। इसका आपके पास | दिन भी जो लोग थे, उनको भी शक था। कोई सारे लोगों ने बद्ध निर्णय करने का कोई उपाय नहीं है। कोई मापदंड, कोई तराजू नहीं | | को मान लिया था, ऐसा नहीं है; कि सारे लोगों ने महावीर को मान है, जिस पर नाप सकें कि कौन आदमी भगवान है और कौन नहीं | | लिया था, ऐसा नहीं है; कि सारे लोगों ने कृष्ण को मान लिया था, है। इस फिक्र में भी मत पड़ना। यह व्यर्थ की कोशिश है। | ऐसा भी नहीं है। बहुत थोड़े से लोग पहचान पाते हैं। अगर आपको राम में, कृष्ण में, बुद्ध में, कहीं भगवान न दिखाई | ___ जो पहचान ले, वह धन्यभागी है। इस पहचानने से कोई कृष्ण पड़ते हों, तो आप इस फिक्र में पड़ना कि मेरे पास आंख भगवान को फायदा होता है, ऐसा नहीं है। इस पहचानने से, वह जो पहचान को देखने की है या नहीं! उसकी खोज में लग जाना। जिस दिन वह | लेता है, उसको ही फायदा हो जाता है। एक में भी दिख जाए, तो आंख आपके पास होगी, उस दिन राम में ही नहीं, रावण में भी देखने की कला आ जाती है, फिर सब में देखा जा सकता है। भगवान दिखाई पड़ेंगे। उस दिन फिर कोई जगह ही न बचेगी, जहां वे न हों। नानक गए मक्का, तो सो गए रात। थके थे। पुजारी बहुत चिंतित एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि कीर्तन के समय हम हुए, वे आए। क्योंकि नानक ने पैर कर लिए थे मक्का के पवित्र अपने मन के सामने कौन-सी छवि रखें, जिससे मन मंदिर की तरफ। तो उन पुजारियों ने कहा कि नासमझ, अपने को | | केंद्रित हो जाए? बड़ा ज्ञानी समझता है, और इतनी भी तुझे अक्ल नहीं कि पवित्र | मंदिर की तरफ पैर किए हुए है! तो नानक ने कहा कि तुम मेरे पैर वहां कर दो, जहां उसका पवित्र | न को केंद्रित नहीं करना है, मन को विसर्जित करना मंदिर न हो। मैं भी बड़ी चिंता में हूं। तुम आ गए, अच्छा हुआ। 01 है। इन दोनों में फर्क है। मैंने भी बहुत सोचा कि पैर कहां करूं, क्योंकि वह सब जगह मौजूद मन केंद्रित भी हो जाए, तो भी मन रहेगा। कोई छवि है। और कहीं तो पैर करूंगा! सोना है मुझे थका-मांदा हूं। अब | | मन में बना ली, तो छवि पर मन केंद्रित हो जाएगा। लेकिन छवि 383

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