Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 432
________________ गीता दर्शन भाग-5 बोला, लेकिन वे नाराज होंगे। ऐसा कैसे करूंगा। मैंने कहा, तू बिलकुल फिक्र मत कर। जिम्मा मेरा है। तू एकदम संभाल लेना, कुर्सी पर बिठा देना कि आपकी हालत तो खराब हो रही है ! उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि कौन कहता है कि मेरी हालत खराब है! मैं बिलकुल ठीक हूं। रात अच्छी तरह सोया । पट्टी पर पत्नी के लिखा हुआ था कि मैं बिलकुल ठीक हूं। रात अच्छी तरह सोया । तुझे कोई वहम पैदा हो गया ? तेरी आंख में कुछ भूल है। लेकिन इतनी ताकत, जब बाहर माली ने उनसे पूछा कि मालिक, तबीयत कुछ खराब है? उनके उत्तर में नहीं थी। माली की चिट्ठी पर लिखा हुआ था कि हां, रात से कुछ थोड़ा ढीला-ढीला अनुभव कर रहा हूं। अभी सिर्फ कमरे और बाहर का फर्क पड़ा है। और जब पोस्ट मास्टर ने उनसे पूछा कि क्या बात है, बहुत दिन से दिखाई नहीं पड़े। तबीयत कुछ खराब है ? तो उन्होंने कहा, हां रात से कुछ थोड़ा-सा बुखार है। और जब कमरे के चपरासी ने आकर उनको संभाला और कुर्सी पर बिठाला, तो उन्होंने चपरासी से कहा कि तू पूछताछ मत कर। जाकर किसी और प्रोफेसर की गाड़ी ले आ, मुझे घर पहुंचा। मेरा शरीर तप रहा है और हालत मेरी ठीक नहीं है। और जब मैंने ये दसों चिट्ठियां उनके सामने रात को जाकर रखीं, तो उन्हें एक सौ तीन डिग्री बुखार था। मैंने कहा, ये चिट्ठियां पढ़िए और बिस्तर के बाहर निकल आइए। यह बुखार झूठा है या सच ? यह बुखार सच है, क्योंकि थर्मामीटर पकड़ता है। उसको झूठा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि सचाई का और उपाय क्या है ? थर्मामीटर पकड़ ले, तो चीज सत्य होती है। कहा, यह बुखार सच है, लेकिन सिर्फ एक धारणा का परिणाम है। सुबह से मैं आपके चारों तरफ प्रचार कर रहा हूं कि आप बीमार हैं। और यह बीमारी का खयाल आपको पकड़ गया है। आदमी आदमी नहीं है; आदमी सिर्फ एक संभावना है। और अगर पश्चिम में डार्विन ने लोगों को समझा दिया कि आदमी बंदर की औलाद है और आदमी को अगर भरोसा हो गया, तो पता नहीं आदमी बंदर की औलाद है या नहीं, आदमी बंदर की औलाद के जैसा व्यवहार करेगा। यह भरोसा आ जाना चाहिए। यह सवाल बड़ा नहीं है कि वह सच में है या नहीं। अभी तक तय भी नहीं है कि वह बंदर की औलाद है। लेकिन डार्विन ने जो भरोसा पश्चिम को दिला दिया कि आदमी बंदर की औलाद है, उसका बड़ा परिणाम हुआ। जब आदमी बंदर की औलाद है, तो बात ही खत्म हो गई, हमने स्वीकार कर लिया कि हम बंदर जैसे हैं। जब फ्रायड ने लोगों को भरोसा दिला दिया कि आदमी सिवाय कामवासना के सिवाय सेक्सुअलिटी के और कुछ भी नहीं है, तो पता नहीं वह ठीक कह रहा है कि गलत, लेकिन जिनको भरोसा आ गया कि हम सिर्फ सेक्स हैं, सिर्फ कामवासना हैं, वे कामवासना में ही ठहर गए। अगर आज पश्चिम पूरी तरह कामवासना से भर गया है, तो उसका जिम्मा फ्रायड पर है, जिसने एक धारणा दे दी। 402 आदमी एक संभावना है फ्लेक्सिबल, बड़ी लोचपूर्ण संभावना है। यही उसकी खूबी है। आप किसी कुत्ते को कुछ और नहीं बना सकते; वह कुत्ता ही रहेगा। किसी शेर को कुछ नहीं बना सकते; वह शेर ही रहेगा। फ्लेक्सिबल नहीं है, फिक्स्ड है, लोच नहीं है। आदमी लोचपूर्ण है। आदमी को जो धारणा दे दें, वह वही बन जाएगा। जब मैं आपसे कहता हूं, आप ईश्वर हैं, तो मैं आपको एक धारणा दे रहा हूं परम विस्तार की । उस धारणा का आज ही फल नहीं हो जाएगा। आज ही आप एकदम से छलांग लगाकर ईश्वर नहीं हो जाएंगे, वह मैं जानता हूं। लेकिन वह धारणा अगर गहरे में बैठ जाए, तो वह आपके भीतर जो छिपा है, उसका आविष्कार हो जाएगी। और ईश्वर होना आपकी नियति है, आपके भीतर छिपा है। आप कितने ही जन्मों-जन्मों तक टालते रहें, बच न सकेंगे। इसलिए ईश्वर को कोई जल्दी भी नहीं है कि आप अभी ही ईश्वर हो जाएं। समय की वहां कोई कमी नहीं है। अनंत समय पड़ा है। आप कितने ही जन्म भागते रहें, दौड़ते रहें, सब कुछ करते रहें, एक न एक दिन आप उसके जाल में गिर जाएंगे। लेकिन जब तक आप नहीं गिरते | हैं, तब तक अकारण दुख भोगते हैं। जो मैं जोर देकर कहता हूं कि आप परमात्मा हैं, उसका कुल | कारण गहरे में इतना है कि जो आपकी अंतिम नियति हैं, जो डेस्टिनी है, जो आपकी आखिरी होने की संभावना है, वह परमात्मा है। और वह आपका बीज भी है। क्योंकि आखिर में केवल वही हो सकता है, जो आज ही छिपा हो । शून्य से कुछ भी पैदा नहीं होता । जो मौजूद हो, उसी का उदघाटन होता है। - अगर आपके मन में यह खयाल बैठ जाए और यह खयाल | सत्य के अत्यंत अनुकूल है — कि आप खंड नहीं हैं, अखंड आपके भीतर विराजमान है। यह कैसे अखंड विराजमान होगा? इसे थोड़ा हम समझें। स्वामी राम कहा करते थे कि ऐसा हुआ एक बार कि एक राजा

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