Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 437
________________ मनुष्य बीज है परमात्मा का सामने नाचता है, कीर्तन करता है! वह भी गीत गाता है मूर्ति के आप कितने अर्जुनों को पहले दिखा चुके हैं? तो मैंने उनसे पूछा सामने! बड़ी कठिन बात मालूम पड़ती है। क्योंकि पश्चिम में जो | कि तुम पहले पुराने कृष्ण की ही फिक्र करो कि कितने अर्जुनों को लोग वेदांत का अध्ययन करते हैं, वे कहते हैं, यह कंट्राडिक्टरी है। | पुराने कृष्ण पहले दिखा चुके थे। यह शंकर के व्यक्तित्व में बड़ा विरोधाभास है। एक तरफ तो वेदांत ___ एक को ही दिखा पाए। और यही पहला भी था और यही की इतनी ऊंची बात कि सब माया है। और फिर इसी माया, मिट्टी | आखिरी भी। क्योंकि अर्जुन जैसा समर्पण अति कठिन है। उतना के बने हुए भगवान के सामने गीत गाना और नाचना और तल्लीन सहज-भाव से छोड़ देना गुरु के हाथों में अति कठिन है-उतना हो जाना! निस्संदेह, उतनी पूर्ण श्रद्धा से, उतने समग्र भाव से। यही अर्थ है इस सूत्र में उसका रहस्य है। इस सूत्र का कि तेरे सिवाय दूसरे से पहले नहीं देखा गया है। शंकर को तो पता है, जो उन्हें दिखाई पड़ा है। लेकिन उनके पीछे कृष्ण के संबंध में यह बात सच है कि कृष्ण ने इस रूप में, कृष्ण जो लोग आ रहे हैं, अब वे उनके संबंध में भी समझ सकते हैं। कि | के रूप में जिसे दिखाया, वह अकेला अर्जुन है। और यह पहला जो शंकर को दिखाई पड़ा है, यह अगर किसी को आकस्मिक रूप कहा है उन्होंने। लेकिन बाद में भी किसी दूसरे को नहीं दिखाया है। से दिखाई पड़ जाए, कहीं कोने से टूट पड़े कोई धारा और इसका यह आखिरी भी है। अनुभव हो जाए, तो झेलना मुश्किल हो जाएगा। वह इम्पैक्ट, वह अर्जुन पाना अति कठिन है। इसे थोड़ा सोच लें। आघात तोड़ जाएगा। कृष्ण हो जाना इतना कठिन नहीं है, जितना अर्जुन पाना कठिन इसलिए मूर्ति को रहने दो, जब तक कि अमूर्ति के लिए तैयार न | | है। जब मैं ऐसा कहूंगा, तो आपको थोड़ी अड़चन मालूम पड़ेगी। हो जाए व्यक्तिः। तब तक चलने दो उसे अपने खेल-खिलौनों के | कृष्ण हो जाना इतना कठिन नहीं है, जितना अर्जुन होना कठिन है। साथ, जब तक कि वह इतना प्रौढ़ न हो जाए कि सब छोड़ दे। बुद्ध कृष्ण हो जाते हैं, महावीर कृष्ण हो जाते हैं, लेकिन अर्जुन होना यह अर्जुन यही मांग कर रहा है कि तुम मूर्त बन जाओ, अमूर्त | बड़ा कठिन है। क्योंकि कृष्ण होना तो स्वयं पर स्वयं की श्रद्धा से नहीं। और तुम्हारी मूर्ति वापस ले आओ। होता है। अर्जुन होना स्वयं की दूसरे पर श्रद्धा से होता है, जो बड़ी इस प्रकार अर्जुन की प्रार्थना को सुनकर, कृष्ण बोले, हे अर्जुन! जटिल बात है। अनग्रहपर्वक मैंने अपनी योगशक्ति के प्रभाव से यह मेरा परम | स्वयं पर भरोसा रखना तो इतना कठिन नहीं है। क्योंकि हमारा तेजोमय, सबका आदि और सीमारहित विराट रूप तुझे दिखाया, । | भरोसा स्वयं पर होता ही है थोड़ा कम-ज्यादा। यह बढ़ जाए, जिस जो कि तेरे सिवाय दूसरे से पहले नहीं देखा गया। दिन आदमी अपने में पूरे भरोसे से भर जाता है, उस दिन कृष्ण की यह बड़ा उपद्रव का वचन है। क्योंकि इसमें बड़ी उलझनें हैं। जो | | घटना घट जाती है। यह तो सहज है, क्योंकि एक ही आदमी की लोग गीता में गहन चिंतन करते हैं, मनन करते हैं, उनको बड़ी | | बात है, अपने पर ही भरोसा करना है। लेकिन अर्जुन होना अति कठिनाई होती है। तेरे सिवाय दूसरे से पहले नहीं देखा गया, इसका | | कठिन है, क्योंकि दूसरे पर ऐसे भरोसा करना है कि जैसे वह मेरी क्या मतलब है? क्या अर्जुन पहला अनुभवी है, जिसने परमात्मा आत्मा है और मैं उसकी परिधि हूं। का विराट रूप देखा? यह बात तो उचित नहीं मालूम पड़ती। अनंत इसलिए अर्जुन को खोजना कृष्ण को भी मुश्किल पड़ा है। एक काल से आदमी है, अनंत सिद्धपुरुष हुए हैं, अनंत जाग्रत चेतनाएं | | अर्जुन कृष्ण को उपलब्ध हुआ है। राम को कभी कोई ऐसा अर्जुन हुई हैं। क्या अर्जुन पहला आदमी है? उपलब्ध हुआ, पता नहीं। बुद्ध को कभी कोई ऐसा अर्जुन उपलब्ध यह अर्थ नहीं हो सकता इस वाक्य का। इस वाक्य का केवल | हुआ, पता नहीं। जीसस को कभी कोई ऐसा अर्जुन उपलब्ध हुआ, एक ही अर्थ है और वह यह कि कृष्ण के द्वारा यह रूप अर्जुन को पता नहीं। उनके पास भी बहुत लोगों को घटनाएं घटी हैं, लेकिन दिखाया गया, यह पहली घटना है कृष्ण के द्वारा। अर्जुन जैसी विराट अनुभव की घटना नहीं घटी। __ मैंने पीछे कहा कि अगर कोई अर्जुन बनने को तैयार हो, तो यह | | तो कृष्ण का यह कहना इस अर्थ में सार्थक है कि इस प्रकार का विराट दिखाया जा सकता है। एक मित्र मेरे पास आए और उन्होंने | समर्पण मुश्किल है, अति दूभर है। और इस प्रकार का समर्पण हो, कहा कि मुझे पक्का तो पता नहीं है कि मैं अर्जुन हूं या नहीं, लेकिन तो ही यह घटना घट सकती है। 407]

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