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गीता दर्शन भाग-
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के बाहर कोई चीज पाने के लिए है, तो काम हो गई। जुआ काम जिंदगी निर्बोझ हो जाएगी। है, खेल नहीं है। खेल का मतलब ही इतना होता है कि बाहर कोई धार्मिक आदमी वह है, जिसके लिए सभी कुछ खेल हो गया। लक्ष्य नहीं है, अपने में ही रसपूर्ण है।
और अधार्मिक आदमी वह है, जिसके लिए खेल भी खेल नहीं है, भारतीय गहरी खोज है कि परमात्मा के लिए सृष्टि कोई काम उसमें भी जब काम निकलता हो कुछ, तो ही। धार्मिक आदमी वह नहीं है, कोई परपज नहीं है, कोई प्रयोजन नहीं है, खेल है। इसलिए | | है, जिसके लिए सब लीला हो गई। उसे कोई अड़चन नहीं है कि हमने इसे लीला कहा है। लीला जैसा शब्द दुनिया की किसी भाषा | | ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा क्यों नहीं हो रहा? यह बुरा आदमी क्यों में नहीं है। लीला जैसा शब्द दुनिया की किसी भाषा में नहीं है। है? यह भला आदमी क्यों है? क्योंकि लीला का अर्थ यह होता है कि सारी सृष्टि एक निष्प्रयोजन निष्प्रयोजन लीला की दृष्टि से, वह जो बुरे में छिपा है, वह भी खेल है। इसमें कोई प्रयोजन नहीं है। लेकिन परमात्मा आनंदित हो वही है। वह जो भले में छिपा है, वह भी वही है। रावण में भी वही रहा है। बस। जैसे सागर में लहरें उठ रही हैं, वृक्षों में फूल लग रहे | है, राम में भी वही है। दोनों तरफ से वह दांव चल रहा है। और हैं, आकाश में तारे चल रहे हैं, सुबह सूरज उग रहा है, सांझ तारों वह अकेला है। से आकाश भर जाता है। यह सब उसके होने का आनंद है। वह | अस्तित्व अकेला है। इस अस्तित्व के बाहर कोई लक्ष्य नहीं है। आनंदित है।
इसलिए जो आदमी अपने जीवन में लक्ष्य छोड़ दे और वर्तमान के यह होना, इसमें कुछ पाना नहीं है उसे, कि कल कोई | क्षण में ऐसा जीने लगे, जैसे खेल रहा है, वह आदमी यहीं और सर्टिफिकेट उसे मिलेगा, कि खूब अच्छा चलाया नाटक। कि कोई | अभी परमात्मा का अनुभव करने में सफल हो जाता है। उसकी पीठ थपथपाएगा, कि शाबाश! उसके अलावा कोई नहीं है। लेकिन हम ऐसे लोग हैं कि परमात्मा पाने को भी एक धंधा बना कि कोई ताली बजाएगा, अखबार में खबर छापेगा, कि बड़ी अच्छी लेते हैं। एक धंधा! उसको भी ऐसी व्यवस्था से चलते हैं पाने के व्यवस्था रही तुम्हारी! कोई नहीं है उसके अलावा, वह अकेला है। लिए, कि छोड़ेंगे नहीं, पाकर ही रहेंगे! और उसको भी भविष्य में वह अकेला है।
रखते हैं कि कहीं पाकर रहेंगे। अभी यह करेंगे, यह करेंगे, फिर कभी आपने अकेले ताश के पत्ते खेले हैं? अगर खेले हों, तो | ऐसा करेंगे। उपवास करेंगे, तप करेंगे, तपश्चर्या करेंगे—पूरा थोड़ी देर के लिए ईश्वर होने का मजा आ सकता है। कुछ लोग ट्रेन | | धंधा! आप समझते हैं न गोरखधंधा! में खेलते रहते हैं अकेले। कोई नहीं होता, तो दोनों बाजियां चल | | आपको पता है, यह शब्द आया है गोरखनाथ से। वह महान देते हैं। फिर इस तरफ से जवाब देते हैं, फिर उस तरफ से जवाब | | तांत्रिक गोरखनाथ हुआ। पर उसकी साधना पद्धति जो गोरख की देते हैं। उसमें भी पूरा मजा आ जाता है हार-जीत का।
थी, पक्की धंधे की थी। साधना पद्धति यह थी कि यह क्रिया करो, लीला का अर्थ है, वही है इस तरफ, वही है उस तरफ; दोनों और यह कर्म करो, और यह करो, और वह करो। इतना उपद्रव था बाजियां उसकी। हारेगा भी, तो भी वही; जीतेगा, तो भी वही। फिर उसमें कि धीरे-धीरे उसकी साधना को लोग गोरखधंधा ही कहने भी मजा ले रहा है। हाइड एंड सीक, खुद को छिपा रहा है और खुद लगे। क्योंकि वह बड़ा उपद्रव है। ही खोज रहा है। कोई प्रयोजन नहीं है।
___ आप अपने साधु-संन्यासियों के पास जाएं, सब गोरखधंधे में हमें बहुत घबड़ाहट लगेगी। इसलिए भारत की यह धारणा लगे हैं। अलग-अलग गोरखधंधे हैं, अलग-अलग ढंग के हैं, दुनिया में बहुत लोगों तक प्रभाव नहीं छोड़ती। भारतीय के मन में लेकिन बड़े धंधे में लगे हैं! भी प्रभाव नहीं छोड़ती, क्योंकि लगता है तब बेकार! हमारे मन में लेकिन ईश्वर को पा पाता है वही आदमी, जो धंधे में ही नहीं भी कुछ मतलब तो निकलना चाहिए! इतनी दौड़-धूप, इतने होता। जो धंधे में भी हो, तो भी खेल ही समझता है। दुकान पर उपद्रव, जन्म-जन्म की यात्रा, और मतलब कुछ भी नहीं। यह भी बैठा है, तो भी एक नाटक का पात्र है। और युद्ध में खड़ा है, तो थोड़ा सोच लेने जैसा है।
भी नाटक का एक पात्र है। हमने यहां तक हिम्मत की है कि अगर अगर हम जिंदगी को एक काम समझते हैं, तो हमारी जिंदगी में | | वह आदमी हत्यारा है, किसी की हत्या कर रहा है, या चोर है और एक बोझ होगा। और अगर जिंदगी को हम खेल समझते हैं, तो चोरी कर रहा है, अगर वहां भी वह आदमी सिर्फ अपने को नाटक
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