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83 गीता दर्शन भाग-588
की चेष्टा मत करना, कि मैं जीत गया, कि मैंने मार डाला। अगर आप किसी को रास्ते में से चलते में से गिर रहा हो कोई,
इसमें दोहरी बातें हैं। एक तो कृष्ण यह कह रहे हैं, तू नियति को | सम्हाल लें; अखबार में कोई खबर नहीं छपेगी। रास्ते में कोई चल स्वीकार कर ले। जो हो रहा है, उसे हो जाने दे। और दूसरा, उससे | रहा हो, धक्का देकर गिरा दें, दूसरे दिन खबर छप जाएगी। कुछ भी महत्वपूर्ण जो बात है, वह यह कह रहे हैं कि अगर तू जीत | अच्छा करिए, दुनिया में किसी को पता नहीं चलेगा। कुछ बुरा जाएगा...। और जीत जाएगा, क्योंकि मैं तुझसे कहता हूं, जीत | करिए, फौरन पता चल जाएगा। निश्चित है। जीत हो ही गई है। तु जैसा है, उसके कारण तू जीत __ अखबार उठाकर देखते हैं आप! पहली लकीर से लेकर आखिरी गया है। तू जो करेगा, उसके कारण नहीं। तू जैसा है, उसके कारण | | लकीर तक, सारी लकीर उन लोगों के बाबत है, जो कुछ उलटा तू जीत गया है।
कर रहे हैं। कहीं कोई दंगा-फसाद हो रहा हो, कहीं कोई हड़ताल राम और रावण को युद्ध पर खड़े देखकर कहा जा सकता है कि | | हो रही हो, कहीं कोई चोरी, कहीं डाका, कहीं कोई ट्रेन उलटाई हो, राम जीत जाएंगे। जिसको जीवन की गहराइयों का पता है, जिसे सूत्र कहीं कुछ उपद्रव हुआ हो, तो अखबार में खबर बनती है। पढ़ने आते हैं, वह कह सकता है कि राम जीत जाएंगे। राम जीत ही आदमी उलटे में उत्सुक है, तो हो सकता है, लकड़ी का टुकड़ा . गए हैं। क्योंकि रावण जो भी कर रहा है, वे हारने के ही उपाय हैं। उलटा बहे। जो टुकड़ा उलटा बहेगा, हम पहले से ही कह सकते बुराई हारने का उपाय है। राम कुछ भी बुरा नहीं कर रहे हैं। वे जीतते | | हैं किनारे खड़े हुए कि यह हारेगा। इसमें कोई बड़ी बुद्धिमत्ता की जा रहे हैं। वह जो अच्छा करना है, वह जीतने का उपाय है। तो हारने | | जरूरत नहीं है। क्योंकि धारा के विपरीत लकड़ी का टुकड़ा बहने के पहले भी कहा जा सकता है कि रावण हार जाएगा। की कोशिश कर रहा है। यह हारेगा, अर्जुन! कृष्ण कह सकते हैं
हारने के पहले कहा जा सकता है कि दुर्योधन और उसके साथी | कि यह हारेगा। हार जाएंगे। उन्होंने जो भी किया है, वह पाप पूर्ण है। उन्होंने जो भी | । और जो नदी की धारा के साथ बह रहा है, हम कह सकते हैं, किया है, वह बुरा है। सबसे बड़ी बुराई उन्होंने क्या की है? सबसे | | इसको हराने का कोई उपाय नहीं है। इसको हराइएगा कैसे? इसने बडी बराई उन्होंने यह की है कि जगत की सत्ता से अपने को तोडकर कभी जीतने की कोई कोशिश ही नहीं की। इसको हराइएगा कैसे? वे निरे अहंकारी हो गए हैं। उन्होंने प्रवाह से अपने को तोड़ लिया है।। | यह तो नदी की धारा में पहले से ही बह रहा है, स्वीकार करके।
ऐसा समझें। हमें दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए समझना मुश्किल | | यह तो कहता है, धारा ही मेरा जीवन है। जहां ले जाए, जाऊंगा। होता है। एक नदी में हम दो लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े डाल दें। कहीं और मुझे जाना नहीं है।
और एक टुकड़ा चेष्टा करने लगे नदी के विपरीत धारा में बहने की। राम नदी की धारा में बहते हुए हैं। इसलिए पहले से ही कहा जा करेगा नहीं, क्योंकि लकड़ी के टुकड़े इतने नासमझ नहीं होते, | | सकता है, वे जीतेंगे। रावण हारेगा, वह धारा के विपरीत बह रहा है। जितने आदमी होते हैं। मगर मान लें कि आदमियों जैसे लकड़ी के यह कृष्ण अर्जुन से जो कह रहे हैं, यह किसी पक्षपात के कारण टुकड़े हैं। आदमियों की बीमारी उनको लग गई। आदमियों के साथ | | नहीं कि मैं तेरे पक्ष में हूं, तेरा मित्र हूं, इसलिए तू जीतेगा। इसका रहने से इनफेक्शन हो गया। और एक टुकड़ा नदी की तरफ ऊपर गहन कारण यह है कि कृष्ण देख सकते हैं कि अर्जुन जिस पक्ष में बहने लगा।
खड़ा है, वह धारा के अनुकूल बहता रहा है। और अर्जुन के क्योंकि आदमी को हमेशा धारा के विपरीत बहने में मजा आता | | विपरीत जो लोग खड़े हैं, वे धारा के प्रतिकूल बहते रहे हैं। उनकी है। धारा में बहने में क्या रखा है? कोई भी बह जाता है। कुछ उलटा | हार निश्चित है। वे हारेंगे, पराजित होंगे। करो। चौगड्डे पर आप शीर्षासन लगाकर खड़े हो जाएं, भीड़ लग | | इसलिए तू नाहक ही अड़चन में पड़ रहा है। और तेरी अड़चन जाएगी। कोई देखने नहीं आएगा! क्या, मामला
तझे धारा के विपरीत बहने की संभावना जटाए दे रही है। त है क्या है ? सिर के बल जो आदमी खड़ा है, उलटा कुछ कर रहा है। | क्षत्रिय। तेरी सहज धारा, तेरा स्वधर्म यही है कि तू लड़। और लड़ने यह आकर्षित करता है।
| में निमित्त मात्र हो जा। तू संन्यास की बातें कर रहा है, वे उलटी आदमी उलटा करने में उत्सुक है। क्यों? क्योंकि उलटे से बातें हैं। अहंकार सिद्ध होता है। सीधे से कोई अहंकार सिद्ध होता नहीं। अर्जुन अगर संन्यासी हो जाए, तो प्रभावित बहुत लोगों को
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