________________
गीता दर्शन भाग-58
स्वीकार कर लें। मृत्यु को स्वीकार कर लें, फिर आपकी कोई मृत्यु समझौते का मतलब यह है। नहीं है। जिसे हम स्वीकार कर लेते हैं, उसके हम पार हो जाते हैं। इसका मतलब यह है कि भाग्य के ऊपर छोड़ दें, तो शांत हो
सकते हैं। शांत भी हमें होना है। अगर भाग्य के ऊपर छोड़ दें, तो
भविष्य निर्माण करना हमारे हाथ में नहीं रह जाता। निर्माण भी हमें एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि आप कहते हैं कि मनुष्य करना है। वह मजा भी लेना है निर्माण करने का। और शांत होने यदि भविष्य का निर्माण करने की कोशिश करे, तो का मजा भी लेना है। तो हम कहते हैं, तरकीब निकाली जा सकती विक्षिप्त हो जाता है और अगर नियति को स्वीकार | है। कर्म अपने हाथ में रखें और परिणाम जब होगा, तब कह देंगे कर ले, तो शांत हो जाता है। सवाल यह उठता है कि कि ठीक, प्रभु की जो मर्जी! क्या इन दोनों के बीच कोई मध्य मार्ग, कोई | आधे में आप होंगे, आधे में प्रभु? या तो पूरे में प्रभु होगा या पूरे समझौता, कोई कंप्रोमाइज नहीं है? क्या ऐसा नहीं | |में आप। यह आधा-आधा नहीं चल सकता। यह दो नावों पर हो सकता कि आदमी अपने भविष्य निर्माण करने की | सवार होकर चलने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि दोनों नावें यथाशक्य चेष्टा करे, फिर परिणाम नियति के ऊपर | बिलकुल विपरीत दिशा में जा रही हैं। इनमें बुरी तरह फंसेंगे, और छोड़ दे? ऐसा ही हो, ऐसा दुराग्रह न रखे। तब | त्रिशंकु हो जाएंगे। एक टांग एक नाव पर, दूसरी टांग दूसरी नाव भविष्य भी थोड़ा-बहुत निर्माण होगा और व्यक्ति | पर; और दोनों विपरीत जा रही हैं। क्योंकि एक नियति का विचार विक्षिप्त भी नहीं होगा।
कहता है, सब उसका है। इसलिए मेरे हाथ में कोई उपाय नहीं है। जो वह करवाएगा, मैं करूंगा। जो वह देगा, मैं ले लूंगा। जो नहीं
देगा, नहीं देगा। वही है सब। करने वाला भी वही, पाने वाला भी 1 ही मन हमेशा बांटता है। जो मन कह रहा है कि भविष्य | वही, देने वाला भी वही। तब आप शांत हो पाएंगे। प निर्माण करने की चेष्टा करो, वह मन राजी नहीं होगा, | | आप सोचते हैं कि नहीं, थोड़ी दूर तक अपनी कोशिश भी कर
कोई भी परिणाम आए उसके लिए। और जो मन किसी | लें। कुछ अपने करने से मिल जाए, वह भी ले लें। और न मिले, भी परिणाम के लिए राजी हो सकता है, वह भविष्य निर्माण की चेष्टा | | तो शांति भी ग्रहण कर लें, क्योंकि उसकी मर्जी। ये दोनों बातें नहीं के लिए व्याकुल नहीं होगा।
हो सकतीं। वह कुछ करने की जो वृत्ति है, वही अशांति ले आएगी। जब आप सोचते हैं कि मैं भविष्य का निर्माण कर सकता हूं, समझौता नहीं हो सकता। तभी आप कर्ता हो गए। फिर परिणाम कोई भी आएगा, तो कैसे वे मित्र कहते हैं कि यथाशक्य चेष्टा करने से कुछ तो निर्माण राजी होंगे? फिर परिणाम अगर अनुकूल न आएगा, तो आपको | | होगा और विक्षिप्तता से भी बच जाएंगे! यह विचार उठेगा कि मैं ठीक से नहीं कर पाया; जैसा करना था, नहीं, जिस मात्रा में निर्माण होगा, उसी मात्रा में विक्षिप्त भी हो वैसा नहीं कर पाया; जो होना था, वह नहीं हुआ; या दुनिया मेरे जाएंगे। वही मात्रा होगी। कुछ निर्माण होगा, कुछ विक्षिप्त भी होंगे। विपरीत है, या शत्रु मेरे पीछे पड़े हैं। आप फिर स्वीकार न कर ___ हम कर क्या लेंगे? क्या, कर क्या पाते हैं? हम से पहले जमीन पाएंगे परिणाम को सहजता से।
पर कितने लोग रहे हैं! अरबों-खरबों लोग रहे हैं। जिस जगह आप चेष्टा जो आपने की है पाने की कुछ, उस चेष्टा में ही छिपा है वह बैठे हैं, वैज्ञानिक कहते हैं, उस जगह -हर आदमी जहां खड़ा हो तत्व, जो आपको परिणाम स्वीकार नहीं करने देगा। और अगर आप सकता है, उतनी जगह में कम से कम दस आदमियों की कब्र परिणाम स्वीकार करने की क्षमता रखते हैं, तो चेष्टा भी आप क्यों | बन चुकी है। जहां आप बैठे हैं, वहां दस आदमी गड़े हुए हैं। जमीन करेंगे? परमात्मा जो करवा रहा है, उसके लिए राजी हो जाएंगे। | | पर एक इंच जमीन नहीं है, जहां कब्र नहीं बन चुकी है। सब मिट्टी
नहीं; कोई समझौता नहीं है। जगत में सत्य के साथ कोई | शरीरों में घूम चुकी है। सब मिट्टी देह बन चुकी है। समझौता नहीं होता। सब समझौते झूठे होते हैं। हमारी मन की | | उन शरीरों ने भी न मालूम क्या-क्या करने के इरादे किए थे! उन तरकीबें होती हैं। हमारा मन यह कहता है कि दोनों हाथ लड्डु ! यह | | सबके करने के इरादे का क्या परिणाम है ? और क्या अर्थ है आज?