Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 402
________________ 8 गीता दर्शन भाग-500 यह योग्य ही है। ये दोनों बातें ही योग्य हैं कि कोई आपके नाम जब आप भगवान का नाम सुनकर दुखी होते हैं, तो आप खबर से हर्षित होता है, और कोई आपके नाम से भयभीत होता है। ये दे रहे हैं कि भगवान आपके लिए कहीं न कहीं मृत्यु से जुड़ा हुआ दोनों बातें ठीक ही हैं। क्योंकि जो मिटने जा रहा है आपको देखकर, है। कुछ आप कर रहे हैं, जो भगवान के सान्निध्य में टूटेगा और आप जिसके लिए विनाश बन जाते हैं, उसका भयभीत होना; और नष्ट होगा। कुछ आप कर रहे हैं, जो धारा के विपरीत है, जो निसर्ग वह जो आपको देखकर आनंद को, परम अवस्था को उपलब्ध होने के प्रतिकूल है। और जब भगवान का नाम सुनकर आप आनंदित जा रहा है, जिसके भीतर नए का सृजन हो रहा है, उसका हर्षित होते हैं, तब उसका अर्थ है कि आपके भीतर कोई धारा है, जो होना, दोनों ही ठीक हैं। भगवान के साथ बह रही है। तो नाम भी सुनकर आप प्रफुल्लित लेकिन अर्जुन को दोनों हो रहे हैं। और आपको भी दोनों होंगे। हो जाते हैं। क्योंकि इस जमीन पर देवता को अलग और राक्षस को अलग रामकृष्ण के सामने कोई नाम भी ले दे भगवान का, तो वे तत्क्षण खोजना बहुत मुश्किल है। वे दोनों मिले-जुले हैं। वे हर आदमी में समाधिस्थ हो जाते थे। नाम लेना मुश्किल हो गया था। क्योंकि फिर हैं। वे आदमी के दो पहलू हैं। मन दो के बिना होता ही नहीं। वे छ:-छः घंटे, बारह-बारह घंटे समाधि में रह जाते थे। सड़क से इसलिए आप ऐसा देवता पुरुष भी नहीं खोज सकते, जिसका गुजर रहे हैं, तो उनके भक्तों को उन्हें सम्हालकर ले जाना पड़ता था कोई हिस्सा राक्षसी न हो। और आप ऐसा कोई राक्षस भी नहीं खोज कि कहीं कोई जयरामजी ही न कर दे। नहीं तो वहीं नाचने लगते, सकते, जिसका कोई हिस्सा देवता जैसा न हो। रावण के भीतर भी | | और वहीं सड़क पर गिर जाते, होश खो देते। कई बार तो कई-कई एक कोना राम का होगा, और राम के भीतर भी एक कोना रावण | दिन लग जाते उनका वापस होश आने में। वे इतने आनंद्रित हो जाते का होगा। अन्यथा उनका संसार में होने का कोई उपाय नहीं है। | कि यह जगत विसर्जित हो जाता, वे अपने में लीन हो जाते। इस जगत में प्रकट होने का उपाय है मन। और मन है द्वंद्व। उनको सम्हालकर ले जाना पड़ता था कि कहीं कोई असमय में इसलिए अच्छे से अच्छे आदमी में थोड़ी-सी कालिख कहीं न कहीं | नाम न ले दे, कोई अकारण ऐसे ही सहज नाम न ले दे। फिर उन्हें लगी होती है। बुरे से बुरे आदमी में भी एक चमकदार रेखा होती | दिनों तक पानी पिलाना पड़ता, दूध देना पड़ता, क्योंकि उनको है। वही उन दोनों को आदमी बनाती है। नहीं तो वे आदमी नहीं रह शरीर की कोई सुध न रह जाती। और जब उन्हें होश आता, तब वे जाएंगे। नहीं तो उनके आदमी होने का कोई उपाय नहीं रह जाएगा। छाती पीटकर रोने लगते कि क्या तू नाराज है, इतने जल्दी वापस यहां तो हर आदमी दोनों है। भेज दिया! क्या तू नाराज है कि अपने से इतनी जल्दी दूर कर दिया! इसलिए जब परम अनुभव का द्वार खुलता है, तो दोनों बातें एक वापस बुला ले। उनकी आंख से आंसू बहते। वापस बुला ले। कोई साथ घटती हैं। वह जो आपके भीतर राक्षस है. वह भयभीत होने नाम ले दे तो। लगता है। और वह जो आपके भीतर दिव्य है, वह आनंदित होने ___ क्या था? रामकृष्ण बड़ी, जिसको हम कहें, शुद्धतम देह, शरीर लगता है। परमात्मा के सामने दोनों बातें एक साथ घट जाती हैं। | जैसे पवित्रतम, जैसे रोआं-रोआं इतना पवित्र कि नाम भी भगवान यह तो तोड़कर कहा है, ताकि समझ में आ सके। का पर्याप्त, कि रोआं-रो0 कंपित होकर भीतर लीन हो जाए। अर्जुन कहता है, लोग अनुराग को उपलब्ध होते हैं, हर्षित होते शरीर जैसे इतना संवेदनशील। हैं, आपके कीर्तन, आपके नाम को सुनकर। और ऐसे लोग भी हैं, __पुजारी थे रामकृष्ण तो दक्षिणेश्वर के मंदिर में। तो पूजा करने जो भागते हैं दसों दिशाओं में। और देखता हूं सिद्धगणों को भी कि | जाते थे, पूजा का थाल गिर जाता हाथ से। क्योंकि देखते महाकाली पैर झुकाए, घुटने टेके, आपको नमस्कार कर रहे हैं। यह ठीक ही | की मूर्ति, वह देखते ही थाल गिर जाता। दीए बुझ जाते। वे नीचे है अंतर्यामिन्! गिर जाते। पूजा न हो पाती। आज अर्जुन को लगा कि ऐसा क्यों है। ऐसा क्यों है कि कोई | | पूजा करने के लिए भी बड़ा कठोर मन चाहिए। पूजा करने के भगवान का नाम सुनते ही पीड़ित और दुखी क्यों हो जाता है? | | लिए भी इतना तो मन चाहिए कि डटे रहे। रामकृष्ण से पूजा ही न और कोई भगवान का नाम सुनते ही आनंदित, प्रफुल्लित क्यों हो हो पाती, क्योंकि थाल हाथ से छूट जाता। देखते आंखों में काली जाता है? की, और सुध-बुध खो देते। फिर बाद के दिनों में तो उन्हें मंदिर में |372

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