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ॐ पूरब और पश्चिम ः नियति और पुरुषार्थ
यह काम है।
भटकाना पड़ा। तो भी बड़ी हैरानी की बात लगती है कि अदम यह हवा की टक्कर, और यह गहरी श्वास, और यह जो होने का अवज्ञा कर सका, इसका मतलब यह है कि ईश्वर की ताकत अदम मजा है, बस यह ले रहा हूं। मैं कहीं जा नहीं रहा हूं। यह कहीं जाने की ताकत से कम है। अदम बगावत कर सका, इसका मतलब यह के लिए निकला भी नहीं है। सिर्फ आनंदित हो रहा होता है कि अदम जो है, वह ईश्वर से भी ज्यादा ताकत रखता है, यह घूमना एक खेल है। इसकी कोई मंजिल नहीं, कोई प्रयोजन बगावत कर सकता है, स्वतंत्र हो सकता है।
नहीं। और बड़ी कठिनाई है कि अदम में यह बगावत का खयाल फिर उसी रास्ते से आप दोपहर दफ्तर जा रहे हैं। रास्ता वही है, किसने डाला? क्योंकि ईसाइयत कहती है कि सभी कुछ का निर्माता | पैर वही हैं, आप वही हैं, लेकिन सब कुछ बदल गया। अब आप ईश्वर है, तो इस आदमी को यह बगावत का खयाल किसने डाला? | | कहीं जा रहे हैं। दफ्तर जा रहे हैं! कहीं पहुंचना है। कोई लक्ष्य है। वे कहते हैं, शैतान ने। लेकिन शैतान को कौन बनाता है? यह काम है।
बड़ी मुसीबत है। धर्मों की भी बड़ी मुसीबत है। जो उत्तर देते हैं, फर्क आप अनुभव कर लेंगे। सुबह आप उसी रास्ते पर उन्हीं उससे और मुसीबत में पड़ते हैं। शैतान को भी ईश्वर ने बनाया। पैरों से वही आदमी घूमता है, और घूमने में एक आनंद होता है। इबलीस जो है, वह भी ईश्वर का बनाया हुआ है, और उसी ने और वही आदमी थोड़ी देर बाद उसी रास्ते से उन्हीं पैरों से दफ्तर इसको भड़काया!
जाता है, और दफ्तर जाने में कोई भी आनंद नहीं होता। सिर्फ एक तो ईश्वर को क्या इतना भी पता नहीं था कि इबलीस को मैं जबरदस्ती, एक बोझ, पूरा करना है। लक्ष्य है, उसे पूरा करना है। बनाऊंगा, तो यह आदमी को भड़काएगा! और आदमी भड़केगा, सुबह इसी आदमी की पुलक दूसरी थी। इसकी आंखों की तो पतित होगा। पतित होगा, तो संसार में जाएगा। और फिर ईसा | | रौनक और थी; इसके चेहरे पर हंसी और थी। यही दफ्तर जब जा मसीह को भेजो; साधु-संन्यासियों को भेजो; अवतारों को भेजो, | रहा है, तब वह सब रौनक खो गई, वह हंसी खो गई। रास्ता वही, कि मुक्त हो जाओ। यह सब उपद्रव! क्या उसे पता नहीं था इतना आदमी वही, पैर वही, हवाएं वही, सब कुछ वही है। फर्क क्या भी? क्या भविष्य उसे भी अज्ञात है? अगर भविष्य अज्ञात है, तो पड़ गया है? वह भी आदमी जैसा अज्ञानी है। और अगर भविष्य उसे ज्ञात है, - इस आदमी के मन में एक लक्ष्य है अब, लक्ष्य से तनाव पैदा तो सारी जिम्मेवारी उसकी है। फिर यह उपद्रव क्यों? होता है। सुबह कोई लक्ष्य नहीं था, बिना लक्ष्य के कोई तनाव नहीं
नहीं। हिंदुओं के पास एक अनूठा उत्तर है, जो जमीन पर किसी | होता। अब इस आदमी के मन में एक भविष्य है, कहीं पहुंचना है। ने भी नहीं खोजा। वह दूसरा उत्तर है। वे कहते हैं, इस जगत का | | भविष्य से तनाव पैदा होता है। सुबह कहीं पहुंचना नहीं था। चाहे कोई प्रयोजन नहीं है, यह लीला है।
बाएं गए, चाहे दाएं गए। चाहे इस तरफ गए, चाहे उस तरफ गए। इसे थोड़ा समझ लें।
चाहे यहां रुके, चाहे वहां रुके। कोई फर्क नहीं पड़ता था। कोई वे कहते हैं, इसका कोई प्रयोजन नहीं है, यह सिर्फ खेल मंजिल न थी। चलना ही मंजिल थी। है—जस्ट ए प्ले। यह बड़ा दूसरा उत्तर है। क्योंकि खेल में और खेल बच्चे खेलते हैं। क्या कर रहे हैं वे? हमें लगता भी है बड़ों काम में एक फर्क है। काम में प्रयोजन होता है, खेल में प्रयोजन | | को कभी-कभी, कि क्या बेकार के खेल में पड़े हो! हमें लगता है नहीं होता।
| कि खेल में भी कोई कार, कोई काम होना चाहिए। बेकार है! हम आप सुबह मरीन ड्राइव से जा रहे हैं, घूमने। अगर कोई आपसे | | तो अगर खेल भी खेलते हैं, बड़े अगर खेल भी खेलते हैं, तो खेल पूछे कि कहां जा रहे हैं? तो आप कहते हैं, सिर्फ घूमने जा रहे हैं। नहीं खेल पाते। आप कोई लक्ष्य नहीं बता सकते कि वहां जा रहे हैं। आपसे पूछे, | अगर वे ताश खेल रहे हैं, तो थोड़े-बहुत पैसे लगा लेंगे। आपका दिमाग खराब है! क्यों नाहक चल रहे हैं जब कहीं जाना | क्योंकि पैसे लगाने से प्रयोजन आ जाता है। नहीं तो बेकार है। ही नहीं है? तो आप कहते हैं, मैं घूम रहा हूं। इस घूमने का क्या | बेकार ताश फेंट रहे हैं, फेंक रहे हैं, उठा रहे हैं, क्या मतलब! कुछ मतलब? जा कहां रहे हैं? आप कहेंगे, जा कहीं भी नहीं रहा हूं। दांव लगा लो, तो रस आ जाता है। क्यों? क्योंकि तब खेल नहीं बस, घूमने का आनंद ले रहा हूं। बस, यह जो पैरों का उठना, और रह जाता। काम हो जाता है। तब उसमें से कुछ मिलेगा। तब खेल
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