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गीता दर्शन भाग-500
अगर परमात्मा ही चाहे, तो ही उससे हत्या होगी। आप, परमात्मा है कि जैसे नंगा नहा रहा है और सोच रहा है कि कपड़े कहां चाहे कि न हो हत्या, तो भी कर रहे हैं। आप, परमात्मा चाहे कि न | सुखाएंगे? कपड़े भी तो हों! तो वह चिंता में ही पड़ा है। वे नहा भी हो चोरी, तो भी कर रहे हैं। आप अपना ही हिसाब लगाकर जी रहे नहीं रहे हैं इसी डर से कि कपड़े कहां सुखाएंगे? हैं। इस जगत की विराट योजना में आपकी अलग ही दुनिया है। दुनिया इससे बुरी हालत में और क्या हो सकती है, जिस हालत आपका अलग अपना ढांचा है। अलग पटरियां हैं, उन पर आप | में है! और इतनी बुरी हालत में किस कारण से है? इसलिए नहीं दौड़ रहे हैं।
| कि हमने नियति को मान लिया है, इसलिए इतनी बुरी हालत में है। नियति मानने वाले का अर्थ यह है कि जो भी है, उसे समग्रता | इसीलिए कि हम सब कोशिश में लगे हैं इसे और अच्छा बनाने में स्वीकार है, जो भी परिणाम हो। वह यह नहीं कहेगा कि यह बुरा की। हमने इसे स्वीकार नहीं किया है। हम सब कोशिश में लगे हैं हुआ मेरे साथ। अगर कल आप पकड़ गए चोरी में और अदालत | | इसे बनाने की। हम सब इसे अच्छा करने की कोशिश में लगे हैं, ने आपको सजा दी, तो आप क्या कहेंगे फिर ? क्या आप यह कहेंगे | | अपने-अपने ढंग से, अपने-अपने इरादे से। अपनी-अपनी कि मेरे साथ बुरा हुआ, मैं तो नियति का ही काम कर रहा था? छोटी-छोटी दुनिया सबने बांट रखी है, उसको अच्छा कर रहे हैं। मजिस्ट्रेट भी नियति का ही काम कर रहा है। और वह जो पुलिस एक चोर भी अगर चोरी कर रहा है, तो किस लिए? कि बच्चों वाला आपको हथकडियां डाले हए खडा है, वह भी नियति का ही के लिए शिक्षा दे सके: कि उसकी पत्नी के पास भी एक हीरे का काम कर रहा है। नियति की स्वीकृति का अर्थ है, इस जगत में अब | | हार हो जाए; कि उसके पास भी एक छोटा मकान हो, अपनी मुझे कोई भी शिकायत नहीं।
बगिया हो, कि अपनी एक गाड़ी हो। वह भी अपने कोने में अपनी इसे ठीक से समझ लें।
दुनिया को अच्छा बनाने में, हीरे से जड़ने में, बगीचे से बसाने में नियति की स्वीकृति का अर्थ है कि कोई शिकायत नहीं मुझे लगा हुआ है। जगत में। जो भी हो रहा है, उसकी मर्जी। फिर मैं आपसे कहता हूं जो भी हम इस दुनिया में कर रहे हैं, उस सबमें हम कुछ अपनी कि अगर इतनी हिम्मत हो आपकी, सब स्वीकार करने की, तो मैं नजर से अच्छा करने की कोशिश में लगे हैं। अच्छा करने के लिए आपको हक देता हूं कि चोरी, हत्या, जो भी करना हो, करना। हम सोचते हैं, थोड़ा बुरा भी करना पड़े, तो हर्ज क्या है, कर लो! लेकिन इतनी स्वीकृति पहले आ जाए।
हम सोचते हैं, इतना अच्छा करेंगे, इसमें थोड़ी-सी बुराई भी हुई, अब तक ऐसा हुआ नहीं। जब इतनी स्वीकृति आ जाती है, तो तो क्षम्य है। आदमी अपने को तो छोड़ ही देता है। आप हत्या करते हैं इसलिए नियति का अर्थ है कि हम दुनिया को बनाने की चिंता में नहीं कि आप अहंकार से जीते हैं। किसी ने जरा-सी चोट पहुंचा दी,.. | लगे हैं। दुनिया जैसी है, उसको उसके हाल पर छोड़कर, हम जहां मिटा डालूंगा उसको! किसी ने जरा-सी गाली दे दी, तो आप आग | हैं, वहां चुपचाप जी रहे हैं। हम दुनिया को छू भी नहीं रहे हैं कि से भर जाते हैं। वह आग आपके अहंकार से आती है। | इसको अच्छा बनाएंगे। ऐसी अगर संभावना बढ़ जाए जगत में, तो
जो आदमी नियति को मान लेता है, उसका अहंकार तो समाप्त दनिया इससे लाख गना बेहतर होगी। हो गया। वह कहता है, मैं तो हूं ही नहीं। अब जो भी हो। इस दुनिया को सुधारने वाले लोगों ने जितना उपद्रव खड़ा किया है, हालत में जो भी होगा, उसका जिम्मा परमात्मा का है, आपका उतना किसी ने भी खड़ा नहीं किया। वे मिस्चीफ मेकर्स हैं। उनकी जिम्मा नहीं है।
बातों से ऐसा लगता है कि सारी दुनिया अच्छी करने में वे लगे हैं, और यह दुनिया, हमें डर लगता है कि कहीं बिगड़ न जाए। जैसे| लेकिन वे चीजों को विकृत करते चले जाते हैं। क्यों? क्योंकि वे कि दुनिया बहत अच्छी हालत में है और बिगड़ने का और कोई परमात्मा के हाथ से. नियति के हाथ से. यंत्र अपने हाथ में ले लेते उपाय भी है।
हैं, कर्ता स्वयं हो जाते हैं। लोग मेरे पास निरंतर आते हैं, वे इसी फिक्र में रहते हैं कि दुनिया । यह हमें बहुत उलटा लगेगा, क्योंकि हमारे सोचने का सारा ढांचा बिगड़ जाएगी! जैसे कि अभी कुछ बचा है बिगड़ने को! क्या बचा इस पर निर्भर है कि हम कुछ करें, कुछ करके दिखाएं। बाप अपने है बिगड़ने को? क्या डर है अब खोने के लिए? हमारी हालत ऐसी | बेटे को समझा रहा है, कुछ करके दिखाओ, दुनिया में आए हो तो।
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