Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 365
________________ ६ पूरब और पश्चिम : नियति और पुरुषार्थ मैं यह नहीं कह रहा हूं कि कौन-सी धारणा ठीक है; खयाल रखना। मैं सिर्फ यह कह रहा हूं, ये दो धारणाएं हैं। इसे थोड़ा खयाल में ले लेना । आमतौर से लोग जल्दी करते हैं कि कौन-सी धारणा ठीक है। अगर नियतिवाद ठीक है, तो हम मान लें। और अगर ठीक नहीं है, तो हम कोशिश में लग जाएं। यह कुछ भी नहीं कह रहा हूं। मेरा वक्तव्य बहुत अलग है। मैं ये दोनों धारणाएं आपको समझा रहा हूं। इसमें से फिर जो आपको चुननी हो, आप चुन सकते हैं। फिर उसका परिणाम आपके साथ होगा। ये दोनों धारणाएं ठीक हैं। अगर आपको अशांत होना है, विक्षिप्त होना है, धन इकट्ठा करना है, महल बनाने हैं, तो आप नियति को कभी मत मानें। आपको शांत होना है, आनंदित होना है, और झोपड़ा भी महल जैसा मालूम पड़े, ऐसी आपकी कामना हो; और ना कुछ हो पास में, तो भी आप सम्राट मालूम पड़ें, ऐसी आपकी कामना हो; तो नियति आपके लिए चुनना उचित है। 'ये दोनों रास्ते हैं। एक पागलखाने में ले जाता है। ले ही जाएगा। इसलिए अब सारी दुनिया एक बड़ा पागलखाना है। अब किसी को पागलखाना वगैरह भेजना ठीक नहीं है। अब तो जो ठीक हों, उनके चारों तरफ घेरा लगाकर उनको बचाने का उपाय करना चाहिए । क्योंकि बाकी तो बड़ा पागलखाना है। अगर आज आप मनसविद से पूछें, तो वह कहता है, चार में से तीन आदमियों का मस्तिष्क गड़बड़ है। चार में से तीन का ! जमीन करीब-करीब तीन चौथाई पागलखाना हो गई है । और जिस एक को भी वह कह रहा है कि इसका ठीक है, कितनी देर ये तीन उसका ठीक रहने देंगे! ये तीन उसके पीछे पड़े हैं, उसको भी डांवाडोल कर रहे हैं। आपको पता नहीं चलता कि आपका मस्तिष्क विक्षिप्त है, क्योंकि आपके चारों तरफ पागलों की भीड़ है। उन्हीं जैसा आपके पास मस्तिष्क है, इसलिए कोई अड़चन नहीं होती। लेकिन आप जरा बैठकर एक कागज पर अपने दिमाग में जो चलता है, उसे लिखें, और फिर किसी को दिखाएं। यह मत बताएं कि मैंने लिखा है। बता भी नहीं सकेंगे कि मैंने लिखा है। ऐसा बताएं कि किसी का पत्र आया है। वह आदमी कहेगा, किसी पागल ने लिखा है ! तब आपको पता चल जाएगा, कि आपके दिमाग में जो चलता है, ईमानदारी से दस मिनट एक कोने में बैठ जाएं और लिख डालें, जो भी चलता हो । उसमें आप कुछ फर्क मत करना। जो भी चल रहा हो। दस मिनट का एक टुकड़ा लिख लें और अपने निकटतम मित्रों को बताएं, जो आपको प्रेम करते हैं । और उनसे पूछें कि यह किसी का पत्र आया है, थोड़ा समझ लें। आप एक आदमी न खोज सकेंगे पूरी जमीन पर, | जो आपसे कहे कि यह किसी ऐसे आदमी ने लिखा है, जिसका | दिमाग ठीक है। जो भी मिलेंगे, वे कहेंगे, किसी पागल ने लिखा है। क्या चल रहा है आपके भीतर ? कोई संगति है वहां ? एक अराजकता है। आप जैसे एक भीड़ हैं भीतर, जिसमें कुछ हो रहा है। किसी तरह अपने को सम्हाले हुए हैं, बाहर प्रकट नहीं होने देते। वह भी मौके - बेमौके निकल ही जाता है। कोई जरा जोर से | धक्का मार दे, वह भीतर जो चल रहा है, बाहर निकल आता है। कोई जरा गाली दे दे, तो उसने आपके भीतर छेद कर दिया, उसमें से आपके भीतर का पागलपन बहकर बाहर निकल आएगा। क्रोध क्या है ? अस्थायी पागलपन है। जरा देर के लिए आप पागल हो गए। फिर सम्हाल लेते हैं अपने को ! बड़ी अच्छी बात है कि फिर सम्हाल लेते हैं। लेकिन वह घड़ीभर में जो प्रकट होता है, | उस पर आपने कभी खयाल किया है कि क्या होता है? यह जो विक्षिप्तता है, यह इस दृष्टि का परिणाम है कि जो कुछ किया जा सकता है, वह हम कर सकते हैं। हम जिंदगी को बदल सकते हैं। हम जिंदगी जैसी बनाना चाहते हैं, वैसी जिंदगी बन सकती | है; कोई नियति नहीं है । भविष्य मुक्त है और हमारे हाथों में है । नहीं कहता, यह गलत है। यह हो सकता है। पश्चिम ने करके | देखा है। हमने भी बहुत बार करके देखा है। लेकिन इसका परिणाम यह होता है कि भविष्य तो हमारे हाथ में थोड़ा-बहुत चलने लगता | है, लेकिन हम बिलकुल पटरी से उतर जाते हैं। भविष्य को चलाने में आदमी अस्तव्यस्त हो जाता है। यह बहुत बार के अनुभव के बाद भारत ने यह निर्णय लिया कि भविष्य को छोड़ दो परमात्मा पर। वह अपरिहार्य है, इनएविटेबल है। जो होना है, वह होकर रहेगा। आप बीच में कुछ भी नहीं हैं। इसका चुकता परिणाम यह होता है कि आप तत्क्षण मुक्त हो गए भविष्य से। अब कोई चिंता न रही। सुख आएगा कि दुख आएगा, अच्छा होगा कि बुरा होगा, बचेंगे कि नहीं बचेंगे, अब आपके हाथ में कोई बात नहीं है। आप वर्तमान सकते हैं - अभी और यहीं । जो निरंतर कहते हैं, वर्तमान . में जीयो । लेकिन आदमी वर्तमान में जी नहीं सकता, जब तक बहुत-से शिक्षक हैं, कृष्णमूर्ति हैं, 335

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