________________
विराट से साक्षात की तैयारी 3
है; और आपके भीतर जो साक्षी चैतन्य है, वह कृष्ण है। आपके लाख सवाल भी जोड़ लें, तो एक जवाब नहीं बनता। और एक भीतर वह जो मन को भी देखने वाला है, वह जो विटनेस है, वह | जवाब आपके पास आ जाए, तो लाख सवाल तत्क्षण विलीन हो जो मन को भी जानता है, उसका द्रष्टा है, वह कृष्ण है। जाते हैं, हवा में खो जाते हैं।
लेकिन आपने अर्थात मन ने कभी उस तरफ देखा नहीं। और इसलिए जो व्यक्ति उत्तर की तलाश में है, उसे पहले तो अपने अगर वहां से कोई आवाज भी आई, तो कभी सुना नहीं। जिस दिन सवाल खोने की तैयारी दिखानी चाहिए। यह जरा कठिन लगेगा। भी आप तैयारी पूरी कर लेंगे, कृष्ण को आप अपने निकट पाएंगे क्योंकि हम कहेंगे, यह तो बड़ी उलटी बात आप कह रहे हैं। उन्हीं सदा-सदा। इसलिए उसकी फिक्र छोड़ दें। वह कृष्ण की चिंता है, का तो हमें जवाब चाहिए, जिनको आप छोड़ने को कह रहे हैं। वह आपकी चिंता नहीं है।
अगर उनको छोड़ देंगे, तो फिर जवाब किस चीज का! आपमें क्या हो जाए कि आप कहें कि परमात्मा, मुझे दिखा! | बुद्ध के पास कोई जाए, तो वे यही कहते कि तेरे सवालों का और परमात्मा कहे कि देख! और बीच में एक क्षणभर का भी | जवाब हम दे देंगे, कुछ दिन तू सवालों को छोड़ने की फिक्र कर। अंतराल न हो। अर्जुन ने इस बीच क्या कमाया है?
और जिस दिन तू कहे कि अब मेरे भीतर कोई सवाल नहीं, हम गंवाने से शुरू करें। क्योंकि इस अध्यात्म के जगत में कमाई | उसी दिन तेरा जवाब दे देंगे। गंवाने से शुरू होती है। अर्जुन ने अपने संदेह गंवाए। अब उसका तो एक युवक मौलुंकपुत्त ने बुद्ध से कहा कि लेकिन अभी क्या कोई संदेह नहीं है। अब वह कहता है, आप जो कहते हैं, ऐसा ही तकलीफ है आपको जवाब देने में? तो बुद्ध ने कहा, तू सवालों से है, यह मेरी भी श्रद्धा बन गई।
इतना भरा है कि जवाब सुनेगा कौन? और सवाल तुझे इस तरह __ अब तक वह पूछ रहा था, सवाल उठा रहा था, संदेह कर रहा | घेरे हुए हैं कि मेरा जवाब भीतर प्रवेश कैसे करेगा? और जब मेरा
था। वह कहता था, अगर ऐसा करूंगा, तो ऐसा होगा। अगर युद्ध जवाब तेरे भीतर जाएगा, तो तेरे सवाल मेरे जवाब को तोड़कर में जाऊंगा, तो इतने लोग मरेंगे। अगर मर जाएंगे, तो इतना पाप हजार सवाल खड़े कर लेंगे और कुछ भी नहीं होगा। लगेगा। तो संन्यास ले लूं, सब छोड़ दूं, विरक्त हो जाऊं? क्या हमारे चारों तरफ सवालों की एक भीड़ है। उसमें रंचभर भी करूं, क्या न करूं? और कृष्ण जो भी कहते थे, वह उस पर दस जगह नहीं है भीतर कि कुछ प्रवेश हो जाए। तो जो भी जवाब नए सवाल उठाता था। अब उसके कोई सवाल न रहे। मिलता है, हमारे सवाल उस पर हमला कर देते हैं, उसे तोड़कर
न आपके भीतर कोई सवाल न रहे, आप समझना कि दस सवाल बना देते हैं; वापस लौटा देते हैं कि अब इनको पूछकर आपने कुछ कमाया। एक लिहाज से तो गंवाया, क्योंकि हम | आओ। और भीतर हमारे कोई जवाब नहीं पहुंच पाता। हम बिना समझते हैं, सवाल ही हमारी संपत्ति है।
उत्तर के मर जाते हैं, क्योंकि हम सवालों से भरे हुए जीते हैं। मेरे पास लोग आते हैं, वे एक सवाल पूछते हैं, मैं जवाब भी अर्जुन ने पहली तो कमाई यह कर ली कि अब उसके पास कोई नहीं दे पाया कि वे दूसरा पूछते हैं! मैं जवाब दे रहा हूं, इसकी भी | सवाल नहीं है। वह यह कहने को तैयार हो गया है कि तुम जो कहते उन्हें फिक्र नहीं, उन्हें पूछने की ही फिक्र है! मैंने क्या जवाब दिया, हो कृष्ण, ऐसा ही है। अब इसमें मुझे कुछ पूछना नहीं है। यह भी मैं लौटकर उनसे पूछता हूं, तो वे कहते हैं, कुछ याद नहीं | __और जब पूछना न हो, तभी देखने की क्षमता पैदा होती है। जो
आता। उन्हें सवाल पूछने हैं। जैसे सवाल पूछना ही उनकी कुल पूछना चाहता है, वह अभी देखना नहीं चाहता, सुनना चाहता है। जिंदगी है। और अगर उन्हें एक जवाब दें, तो उस जवाब में से कल | फर्क समझ लें। जो पूछता है, वह सुनना चाहता है कि कुछ कहो। वे दस सवाल फिर खोज कर आ जाते हैं। जवाब का वे एक ही | | प्रश्न का मतलब है, कुछ सुनाओ। प्रश्न का मतलब है, मेरे कान उपयोग करते हैं, नए सवाल बनाने के लिए। बाकी उनके लिए कोई | में कुछ डालो। उपयोगिता नहीं है। जैसे उन्होंने यही काम चुन रखा है कि सवाल | लेकिन सत्य कान के रास्ते से कभी भी गया नहीं है। अब तक इकट्ठे कर लेने हैं!
तो नहीं गया है। और अभी तक कोई उपाय नहीं दिखता कि कान लेकिन क्या होगा सवालों से? और लाख सवाल भी आप पूछ के रास्ते से सत्य चला जाए। सत्य जब भी गया है, आंख के रास्ते सकते हों, तो भी लाख सवाल से एक जवाब भी तो बनता नहीं है। से गया है।
257