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गीता दर्शन भाग-5
भी अर्जुन की तैयारी के लिए। क्योंकि परमात्मा के सभी रूप हैं। वह जो विकराल, भयंकर और कुरूप है, वह भी परमात्मा है। और वह जो सुंदर, ऐश्वर्ययुक्त, महिमावान है, वह भी परमात्मा है। इस संबंध में भारतीय दृष्टि को ठीक से समझ लेना जरूरी है।
भारत यह नहीं कहता कि कुछ बुरा जो है, वह परमात्मा नहीं है। सारी दुनिया में दूसरे धर्म बांट देते हैं जगत को दो हिस्सों में। वे एक तरफ शैतान को खड़ा कर देते हैं, कि जो-जो बुरा है, वह शैतान की तरफ; और जो-जो अच्छा है, वह भगवान की तरफ। भगवान उनके लिए अच्छे-अच्छे का जोड़ है, और शैतान बुरे-बुरे का ।
लेकिन तब वे समझा नहीं पाते कि बुरा क्यों है! और यह जो तुम्हारा अच्छा भगवान है, अब तक बुरे को नष्ट क्यों नहीं कर पाया? और अगर अब तक नहीं कर पाया, तो कब तक कर पाएगा? और जो अब तक नहीं कर पाया और अनंतकाल व्यतीत हो गया, संदेह पैदा होता है कि वह कभी भी कर पाएगा ! क्योंकि अब तक कर लिया होता, अगर कर सकता होता ।
नीत्शे ने कहा है कि जो कुछ भी हो सकता था दुनिया में, वह हो चुका होना चाहिए। कितने अनंत काल से दुनिया है, अब क्या आशा रखने की जरूरत है ! ठीक कहा है। इतने अनंत काल से जगत है, जो भी होना चाहिए था, वह हो चुका होगा। और अगर अब तक नहीं हुआ है, तो कभी नहीं होगा।
तो बड़ी कठिनाई है। जिन धर्मों ने, जैसे जरथुस्त्र ने दो हिस्सों में बांट दिया, जीसस ने दो हिस्सों में बांट दिया, मोहम्मद ने दो हिस्सों
बांट दिया। ऐसा मालूम होता है कि उनको भी शायद यह अंधों के लिए बांटना पड़ा होगा। और शायद उनके पास बड़े मजबूत अंधे रहे होंगे आस-पास। बड़े मजबूत अंधे ! वे अद्वैत की भाषा ही नहीं समझ सकते होंगे।
और ऐसा लगता है कि मोहम्मद के आस-पास जो समूह था, वह निपट अंधा समूह रहा होगा। असंस्कृत; मरुस्थल के लोग; जंगली, खूंखार; मारना ही उनके लिए एक मात्र समझ थी ! मरना और मारने की भाषा उनकी पकड़ में आती होगी। तो मोहम्मद को जो भाषा बोलनी पड़ी है, इन धृतराष्ट्रों के लिए है, मजबूत धृतराष्ट्र। यह जो संजय को धृतराष्ट्र मिले, काफी विनम्र रहे होंगे; तैयारी रही होगी। तो द्वैत की भाषा बोलनी पड़ी है।
तो जिन्होंने जिन धर्मों ने दो में बांट दिया है, उनके लिए बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि बुराई फिर है क्यों! और परमात्मा की बिना अनुमति के अगर बुराई हो सकती है, तो इस जगत में परमात्मा से
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भी बड़ी ताकत है। और अगर परमात्मा की अनुमति से ही बुराई हो रही है, तो फिर परमात्मा को अच्छा कहने का क्या प्रयोजन है !
भारत ने बड़ी हिम्मत की है। भारत ने स्वीकार किया है कि बुरा भी परमात्मा है, भला भी परमात्मा है। भारत यह कहता है कि सारा द्वैत परमात्मा है । उसको दो में हम बांटते ही नहीं। हम जन्म को भी परमात्मा कहते हैं, मृत्यु को भी । और हम सुख को भी परमात्मा कहते हैं, और दुख को भी । और हम सत्य को भी परमात्मा कहते हैं और संसार को भी। ये दो छोर हैं उस एक के ही। जो उस एक को जान लेता है, उसके लिए ये दो तिरोहित हो जाते हैं। जो उस एक को नहीं जानता, वह इन दो के बीच परेशान होता रहता है।
परेशानी इसलिए है कि हम एक को नहीं जानते। परेशानी बुराई के कारण नहीं है। परेशानी इसलिए है कि भलाई और बुराई दोनों के बीच जो छिपा है एक, उससे हमारी कोई पहचान नहीं है। परेशानी मौत के कारण नहीं है। परेशानी इसलिए है कि जीवन और मौत दोनों में जो छिपा है एक, उससे हमारी कोई पहचान नहीं है। इसलिए मौत से परेशानी है। पाप से परेशानी नहीं है। पाप से परेशानी इसलिए है कि पाप और पुण्य दोनों में जो छिपा है, उस एक की हमें कोई झलक नहीं मिलती। पुण्य में नहीं मिलती, तो पाप | में कैसे मिले? पुण्य तक में नहीं दिखाई पड़ता वह, तो पाप में हमें कैसे दिखाई पड़ेगा? अंधापन है हमारा |
लेकिन कृष्ण शुरू करते हैं ऐश्वर्ययुक्त रूप से। अर्जुन राजी हो जाए। जब पहली दफा आंख खुलती है उस परम में, तो अगर पहली दफे ही विकराल दिखाई पड़ जाए, कुरूप दिखाई पड़ जाए, पहली दफे ही मृत्यु दिखाई पड़ जाए, तो शायद अर्जुन सिकुड़कर वापस सदा के लिए बंद हो जाए।
जिन लोगों ने भी कभी किन्हीं कारणों से, कुछ गलत विधियों से परमात्मा का विकराल रूप पहली दफा देख लिया है, वे अनेक जन्मों के लिए मुश्किल में पड़ जाते हैं। वह रूप है।
जर्मन विचारक आटो ने एक किताब लिखी है, दि आइडिया आफ दि होली - उस पवित्रतम का प्रत्यय। और उसमें उसने दो रूप कहे हैं, एक उसका प्रीतिकर, सुंदर; एक उसका विकराल, कुरूप, खतरनाक । कोई खतरनाक रूप पास अगर पहुंच जाता है किन्हीं गलत विधियों के कारण, और पहली दफा पर्दा उठते ही उसका विकराल रूप दिखाई पड़ जाता है, तो वह व्यक्ति जन्मों-जन्मों के लिए बंद हो जाता है। फिर वह दिव्य चक्षु की हिम्मत नहीं जुटा पाता।