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ॐ दिव्य-चक्षु की पूर्व-भूमिका 3
नहीं रह जाते। कौन ले! कौन दे! वहां एक ही रह जाता है। उसको तो दिव्य-दृष्टि होती है। जो अनुभवी और गैर-अनुभवियों के
समर्पण की इस घड़ी में अर्जुन मिल गया कृष्ण की सत्ता के बीच में खड़ा होता है, उसके पास दूर-दृष्टि होती है। वह देख पा साथ! सागर बूंद की तरफ दौड़ पड़ा। आंख खुल गई। सीमाएं टूट | रहा है। दूर की घटना है, बहुत दूर घट रही है, पर उसको पकड़ पा गईं। सब ढांचे गिर गए। खुले आकाश को वह देख सका। | रहा है। और पकड़ वह किसके लिए रहा है? अंधे धृतराष्ट्र के लिए!
संजय ने कहा, हे राजन्, महायोगेश्वर और सब पापों के नाश | वह अंधे धृतराष्ट्र को समझा रहा है। इसलिए और कठिनाई है। करने वाले भगवान ने इस प्रकार कहकर उसके उपरांत अर्जुन के ध्यान रहे, यह जो गीता की भाषा है, यह संजय की भाषा है। ये लिए परम ऐश्वर्ययुक्त दिव्य स्वरूप दिखाया।
शब्द संजय के हैं। और ये शब्द भी संजय के हैं, एक अंधे की बड़े मजे की कहानी है। और इसमें कई तल सत्य की खबर में | | समझ में आ सकें, उस लिहाज से बोले गए। विभक्त हो जाते हैं, बंट जाते हैं। घटना घटी कृष्ण के भीतर से अर्जुन ___ इसलिए कई तल हैं। घटना का तल है एक तो कृष्ण। फिर एक के भीतर की तरफ। घटी; की नहीं गई। हुई; हुआ कि अर्जुन खुल दूसरे तल पर निकट में खड़ा हुआ अर्जुन है। फिर बहुत दूरी पर गया, उसकी सब पंखुड़ियां खुल गईं चेतना की, और देख सका। | | खड़ा हुआ संजय है। और फिर अनंत दूरी पर बैठा हुआ अंधा __ यह संजय अंधे धृतराष्ट्र को सुना रहा है। संजय बहुत दूर है, धृतराष्ट्र है। तो गीता इन चार चरणों में चलती है। जितने दूर हम हैं। कृष्ण से उतनी ही दूर, जितनी दूर हम हैं, कृष्ण | | | हम सब धृतराष्ट्र हैं, अंधे हैं। वहां हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। से उतनी ही दूर। हमारी दूरी समय की है, उसकी दूरी स्थान की थी। | कुछ सूझ में नहीं आता। धृतराष्ट्र पूछता है संजय से। और संजय बाकी दूरी में कोई फर्क नहीं पड़ता। दूरी थी। बहुत दूर। कह रहा है, उस दूर की घटना को बांध रहा है शब्दों में। स्वाभाविक
सत्य जब भी घटता है, तो जिनको सत्य घटता है, वे हमसे समय | | है कि संजय के शब्द अधूरे होंगे। और इसलिए भी अधूरे होंगे, और स्थान में बड़े दूर हो जाते हैं। पर उनकी खबर लाने वाला हमारे क्योंकि अंधे को समझाना है। बीच में कोई चाहिए, अन्यथा खबर नहीं आ सकेगी। हम अंधों के इसलिए ध्यान रहे, गीता बहुत लोकप्रिय हो सकी; उसका कारण पास खबर आ भी कैसे सकेगी!
है, हम अंधों की थोड़ी-थोड़ी समझ में आ सकी। बहुत पापुलर है। महावीर को घटना घटती है, महावीर बोलते नहीं हैं। उनके | लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं कि गीता से ज्यादा लोकप्रिय कुछ गणधर, उनके संदेशवाहक बोलते हैं। महावीर चुप रह जाते हैं। | भी और क्यों नहीं है? हमारे पास और अदभुत ग्रंथ हैं। बहुत अदभुत महावीर और हमारे बीच में गणधर की जरूरत है, एक संदेशवाहक ग्रंथ हैं हमारे पास। पर गीता क्यों इतनी लोकप्रिय हो सकी? की, एक मैसेंजर की जरूरत है। मैसेंजर, वह जो बीच का तो मैं कहता हूं, धृतराष्ट्रों के कारण! वे जो अंधे हैं, उनकी समझ संदेशवाहक है, उसमें दो गुण होने चाहिए। वह आधा हम जैसा | में आ सके, संजय ने उनके योग्य शब्द उपयोग किए हैं। तो जब तक होना चाहिए, और आधा उस तरफ, कृष्ण, महावीर की चेतना की दुनिया में अंधे हैं, तब तक गीता की लोकप्रियता में कोई कमी पड़ने तरफ होना चाहिए। आधा-आधा, बीच में होना चाहिए। वाली नहीं है। और दुनिया में अंधे सदा रहेंगे, इसलिए निष्फिक्र रहा
संजय थोड़ी दूर तक अर्जुन जैसा है। थोड़ी दूर तक! पूरा होता, जा सकता है। जिस दिन दुनिया में अंधे न हों, उस दिन संजय की तो वह भी फिर घटना अंधे धृतराष्ट्र को नहीं सुना सकता। आधा! | बातें बचकानी मालूम पड़ेंगी। या जो अंधा नहीं रह जाता, जिसकी आधा कृष्ण जैसा है, आधा अर्जुन जैसा है। आधा झुका है उस आंख खुल जाती है, उसे लगता है कि संजय धृतराष्ट्र के लिए बोल तरफ। उसे चीजें दिखाई पड़ती हैं, जो बहुत दूर घट रही हैं। वह रहा है। इस बोलने में कुछ खबर तो है सत्य की, लेकिन कुछ असत्य पकड़ पाता है। उसके पास दिव्य-चक्षु नहीं हैं। क्योंकि दिव्य-चक्षु का मिश्रण भी है। क्योंकि वह अंधे की समझ में ही तब आ सकेगा। तो पूरी घटना में घटता है, वह अर्जुन को घट रहा है। वह संजय शुद्ध सत्य अंधे की समझ में नहीं आ सकता। के पास नहीं है।
यह मीठा प्रतीक है धृतराष्ट्र का। इसे खयाल में लें। ___ अनेक लोगों को यह विचारणीय रहा है कि संजय इतनी दूर से - संजय ने कहा कि ऐसा कहने के बाद, अर्जुन के लिए कृष्ण ने कैसे देख रहा है? उसके पास टेलिपैथिक, सिर्फ दूर-दृष्टि है। परम ऐश्वर्ययुक्त दिव्य स्वरूप दिखाया। दिव्य-दृष्टि नहीं, दूर-दृष्टि। जो अनुभव को उपलब्ध होता है, जो पहली बात कही है, वह है ऐश्वर्ययुक्त दिव्य स्वरूप। वह
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