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ॐ धर्म है आश्चर्य की खोज
ईसाई फकीरों ने इस बात के संबंध में बड़ी-बड़ी महत्वपूर्ण खोजें चल सकती है, कभी-कभी जन्मों चल सकती है। की हैं। अगस्टीन ने, फ्रांसिस ने, उन्होंने इसे डार्क नाइट आफ दि सीधे, बिना तैयारी के, परमात्मा के प्रकाश रूप के सामने खड़ा सोल कहा है-आत्मा की अंधेरी रात। क्योंकि जब प्रकाश का होना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए ऐश्वर्य के बाद अर्जुन को इतना तीव्र आघात होता है, तो सब तरफ अंधेरा छा जाता है। वर्षों अनुभव हुआ अनंत-अनंत सूर्य जैसे जन्म गए हों। लग जाते हैं कभी-कभी साधक को, वापस इस अंधेरे के बाहर | एक बात समझ लेने जैसी है। आने में। इसलिए प्रकाश की सीधी साधना खतरनाक है। आज तो विज्ञान भी स्वीकार करता है कि पदार्थ की जो आंतरिक
जो लोग सूर्य पर एकाग्रता करते हैं, वे इसीलिए कर रहे हैं। | घटना है, वह पदार्थ नहीं है, प्रकाश ही है। जहां-जहां हम पदार्थ ताकि इस सूर्य पर अभ्यास हो जाए, तो जब वह महासूर्य भीतर देखते हैं, वह प्रकाश का घनीभूत रूप है, कंडेंस्ड लाइट। या उसको प्रकट हो, तो आंखें एकदम अंधी न हो जाएं और अंधेरा न छा विद्युत कहें, या उसको प्रकाश की किरण कहें, या शक्ति कहें। जाए। इस सूर्य पर एकाग्रता का अभ्यास इसीलिए है सिर्फ कि ताकि लेकिन आज विज्ञान अनुभव करता है कि पदार्थ जैसी कोई भी चीज थोड़ा तो...यह सूर्य कुछ भी नहीं है। लेकिन फिर भी जो कुछ है, जगत में नहीं है। सिर्फ प्रकाश है। और प्रकाश ही जब घनीभूत हो काफी है। हमारे लिए तो बहुत कुछ है। इस पर थोड़ा अभ्यास हो | | जाता है, तो हमें पदार्थ मालूम पड़ता है। जाए, तो जब महासूर्य, अनंत सूर्य भीतर प्रकाशित हो जाएं, तो उस | विज्ञान के विश्लेषण से पदार्थ का जो अंतिम रूप हमें उपलब्ध वक्त थोड़ी-सी तो तैयारी रहे। इसलिए सूर्य पर एकाग्रता के प्रयोग | हुआ है, वह इलेक्ट्रान है, वह विद्युत-कण है। विद्युत-कण छोटा किए जाते हैं।
सूर्य है। अपने आप में पूरा, सूर्य की भांति प्रकाशोज्ज्वल। विज्ञान लेकिन अगर ऐश्वर्य का अनुभव पहले हो...। इसीलिए हमने | भी इस नतीजे पर पहुंचा है कि सारा जगत प्रकाश का खेल है। भगवान को ईश्वर का नाम दिया है। हम उसके ऐश्वर्य रूप को और धर्म तो इस नतीजे पर बहुत पहले से पहुंचा है कि परमात्मा पहले स्वीकार करते हैं, वह आभा है। और ध्यान रहे, सुबह जब का जो अनुभव है, वह वस्तुतः प्रकाश का अनुभव है। फिर कुरान
आभा घेर लेती है भोर की और फिर सूरज निकलता है, तो सुबह | | कितनी ही भिन्न हो गीता से, और गीता कितनी ही भिन्न हो बाइबिल के सूरज के साथ भी आंखों को मिलाना आसान है; वह बाल-सूर्य | से, लेकिन एक मामले में जगत के सारे शास्त्र सहमत हैं, और वह है। और अगर कोई सुबह से ही अभ्यास करता रहे सूर्य के साथ है प्रकाश। सारे धर्म एक बात से सहमत हैं, और वह है, प्रकाश आंख मिलाने का, तो दोपहर के सूर्य के साथ भी आंख मिला की परम अनुभूति। सकता है। आभा से शुरू करे, बाल-सूर्य से बढ़ता रहे और विज्ञान और धर्म दोनों एक नतीजे पर पहुंचे हैं, अलग-अलग धीरे-धीरे, धीरे-धीरे...।
रास्तों से। विज्ञान पहुंचा है पदार्थ को तोड़-तोड़कर इस नतीजे पर मेरे गांव में मैं एक आदमी को जानता हूं, जो भैंस को पूरा का | कि अंतिम कण, अविभाजनीय कण, प्रकाश है। और धर्म पहुंचा पूरा उठा लेता था। वह गांव में अजूबा था। किसकी हिम्मत, पूरी | है स्वयं के भीतर डूबकर इस नतीजे पर कि जब कोई व्यक्ति अपनी भैंस को उठा ले! वह उठा लेता था। मैं पूछताछ किया, तो उसने | पूरी गहराई में डूबता है, तो वहां भी प्रकाश है; और जब उस गहराई बताया कि जब से यह भैंस छोटा बच्चा जब हुआ था, तब से मैं | से बाहर देखता है, तो सब चीजें विलीन हो जाती हैं, सिर्फ प्रकाश इसे रोज उठाकर घंटेभर चलने का अभ्यास कर रहा हूं। भैंस का रह जाता है। बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता गया, उसका अभ्यास भी साथ-साथ | अगर यह सारा जगत प्रकाश रह जाए, तो निश्चित ही हजारों बढ़ता चला गया। अब भैंस पूरी भैंस हो गई है, अब भी वह उठा | सूर्य एक साथ उत्पन्न हुए हों, ऐसा अनुभव होगा। हजार भी सिर्फ लेता है।
| संख्या है। अनंत सूर्य! अनंत से भी हमें लगता है कि गिने जा बाल-सूर्य के साथ जो यात्रा शुरू करेगा, वह धीरे से जब दोपहर | | सकेंगे, कुछ सीमा बनती है। नहीं, कोई सीमा नहीं बनेगी। अगर का प्रौढ़ सूर्य होगा, तब भी आंखें सूर्य से मिला सकेगा और आंखें | पृथ्वी का एक-एक कण एक-एक सूर्य हो जाए। और है। एक-एक अंधेरी न होंगी। ईश्वर इसीलिए हमने शब्द चुना है। ऐश्वर्य से शुरू कण सूर्य है। पदार्थ का एक-एक कण विद्युत ऊर्जा है। करना, अन्यथा भयंकर अंधेरी रात भी आ सकती है भीतर, जो वर्षों | तो तब कोई गहन अनुभव में उतरता है अस्तित्व के, तो प्रकाश
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