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ॐ गीता दर्शन भाग-583
हे संपूर्ण विश्व के स्वामी, कितने आपके हाथ, कितने पेट, | उसे मध्य कहना गलत है। मध्य का मतलब ही यह है कि आदि कितने नेत्र!
| और अंत के बीच में। जब हमें दोनों छोर ही नहीं दिखाई पड़ते, तो अगर हम थोड़ी कल्पना करें, तो खयाल में आ जाए। अगर हम | | इसे हम मध्य भी कैसे कहें! दो छोर के बीच का नाम मध्य है। अगर पृथ्वी के सारे मनुष्यों के हाथ जोड़ लें, सारे मनुष्यों के पेट जोड़ लें, | आपको दोनों छोर दिखाई ही नहीं पड़ते, तो हम इसे भी कैसे कहें सारे मनुष्यों की आंखें जोड़ लें, सारे मनुष्यों के सब अंग जोड़ लें, कि यह मध्य है! तो जो रूप बनेगा, वह भी पूरी खबर नहीं देगा। क्योंकि हमारी पृथ्वी | इसलिए अर्जुन कहता है कि न तो मुझे मध्य दिखाई पड़ता है, न बड़ी छोटी है। और ऐसी हजारों-हजारों पृथ्वियां हैं। और उन | अंत दिखाई पड़ता है, न प्रारंभ दिखाई पड़ता है। सब कुछ दिखाई हजारों-हजारों पृथ्वियों पर हम जैसे हजारों-हजारों प्रकार के जीवन | पड़ रहा है विराट, फिर भी मुझे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है। यह हैं। अब तो वैज्ञानिक कहते हैं कि कम से कम पचास हजार पृथ्वियों | बिलकुल जैसे एक बेहोशी की घड़ी आदमी पर उतर आई हो। पर जीवन की संभावना है।
| उसकी बुद्धि बिलकुल चकरा गई है। परमात्मा का तो अर्थ है, समस्त समष्टि का जोड़। तो हम ___ मैं आपका मुकुटयुक्त, गदायुक्त तथा सब ओर से प्रकाशमान सबको जोड लें। आदमियों को ही नहीं पश-पक्षियों को भी जोड | तेज का पुंज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सदृश ज्योतियुक्त, लें। और सारी अनंत पृथ्वियों के सारे जीवन को जोड़ लें, तब देखने में अति गहन और अप्रमेय स्वरूप सब ओर देखता है। कितने हाथ, कितने मुख, कितने पेट! वे सब अर्जुन को दिखाई पड़े बहुत गहन है जो मैं देख रहा हूं। गहन का यहां खयाल ले लेना होंगे। हम उसकी दुविधा समझ सकते हैं कि सब जुड़ा हुआ दिखाई जरूरी है। गहन का अर्थ है, जो मैं देख रहा हूं, वह-सतह मालूम पड़ा होगा। वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया होगा। उसकी कुछ समझ होती है। और सतह के पीछे और सतह, सतह के पीछे और सतह, में नहीं आता होगा कि क्या है!
और सतह के पीछे और गहराइयां दिखाई पड़ रही हैं। यह ऐसा इसलिए वह फिर पूछ रहा है कि यह सब क्या है? और इतना | लगता है कि मैं आपके बाहर खड़े होकर देख रहा हूं। आपमें मुझे सब देखता हूं, फिर भी न तो आपका अंत दिखाई पड़ता है, न मध्य | | पहला पर्दा दिखाई पड़ रहा है। और उस पर्दे के पीछे-पर्दे दिखाई पड़ता है, न आदि दिखाई पड़ता है। यह सब देख रहा हूं, ट्रांसपैरेंट मालूम पड़ते हैं। जैसे नदी के किनारे खड़े हैं, और पानी फिर भी मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं आपको पूरा देख रहा हूं, में गहराई दिखाई पड़ती है। और गहरा, और गहरा, और गहरा। क्योंकि प्रारंभ का मुझे कुछ पता नहीं चलता, अंत का भी कोई पता और यह गहराई कहां पूरी होती है, इसका मुझे कुछ पता नहीं है। नहीं चलता।
ऐसा आपको गहन देखता हूं। इसमें थोड़ी-सी एक बड़ी कीमती बात है। अर्जुन कहता है, मध्य __ अप्रमेय! और जो देखता हूं, वह ऐसा है, जिसके लिए न तो भी दिखाई नहीं पड़ता। इसमें हमें थोड़ा संदेह होगा। क्योंकि फिर | कोई प्रमाण है कि मैं क्या देख रहा हूं। न मेरी बुद्धि के पास कोई जो दिखाई पड़ता है, वह क्या है? अर्जुन को दिखाई पड़ रहा है। तर्क है, जिससे मैं अनुमान कर सकूँ कि क्या देख रहा हूं। न मेरे इतने तक बात तर्कयुक्त है कि वह कहे. मझे प्रारंभ नहीं दिखाई | | पास कोई निष्पत्ति है, न कोई सिद्धांत है, कि मैं क्या देख रहा हूं! पड़ता, मुझे अंत नहीं दिखाई पड़ता।
अप्रमेय का अर्थ है कि अगर अर्जुन दूसरे को कहेगा जाकर, तो आप एक नदी के किनारे खड़े हैं। न आपको नदी का प्रारंभ | | वह दूसरा समझेगा, यह पागल है। जो इसने देखा, इसका दिमाग दिखाई पड़ता है, न सागर में गिरती हुई नदी का अंत दिखाई पड़ता खराब हो गया। है, लेकिन मध्य तो दिखाई पड़ता है। जहां आप खड़े हैं, वह क्या इसलिए जिन्होंने देखा है उसे, वे कई बार तो, आप उन्हें पागल है? तो हमें लगेगा कि...लेकिन अर्जुन कहता है कि न मुझे प्रारंभ | न कहें, इसलिए आपसे कहने से रुक जाते हैं। क्योंकि अगर वे दिखाई पड़ता है, और न अंत दिखाई पड़ता है, और न मध्य दिखाई | कहेंगे, तो आप भरोसा तो करने वाले नहीं हैं। आपको शक होने पड़ता है!
| लगेगा कि इस आदमी का इलाज करवाना चाहिए। यह क्या कह कारण हैं, उसके कहने का। क्योंकि जब हमें आदि न दिखाई | रहा है? यह जो कह रहा है, किसी भ्रम में खो गया है, किसी पड़ता हो, अंत न दिखाई पड़ता हो, तो जो हमें दिखाई पड़ता है, डिलूजन में। या तो विक्षिप्त हो गया है।
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