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धर्म है आश्चर्य की खोज
पड़ता है।
आज पश्चिम के मनसविद कहते हैं कि जिन लोगों को हम | आया नहीं। पागल करार दे रहे हैं, उनमें सभी पागल हों, यह जरूरी नहीं है। | यह भी हो सकता है कि बुद्ध बहुत-से अनुभव कह ही न पाए उनमें कुछ ऐसे लोग भी हो सकते हैं, जिन्होंने जगत को किसी और हों। एक बार जंगल से गुजरते वक्त आनंद ने बुद्ध से पूछा कि पहलू से देख लिया और मुसीबत में पड़ गए हैं।
| आपने जो-जो जाना है, वह हमें कह दिया? तो बुद्ध ने—पतझड़ लेकिन जब एक दफा किसी और पहलू से कोई जगत को देख | | के दिन थे और सारे जंगल में सूखे पत्ते गिर रहे थे और उड़ रहे ले, तो हमारे बीच फिर गैर-फिट हो जाता है; फिर हमारे बीच बैठ थे-एक मुट्ठी में सूखे पत्ते ऊपर उठा लिए और कहा, आनंद, मेरी नहीं पाता। फिर वह जो कहता है, वह हमें मालूम पड़ता है कि मुट्ठी में कितने पत्ते हैं? आनंद ने कहा, चार-छः। और बुद्ध ने कहा, किसी स्वप्न की बात कर रहा है। या वह जो बताता है, हमारी भाषा | इस जंगल में कितने सूखे पत्ते जमीन पर पड़े हैं? आनंद ने कहा, में, हमारे अनुभव में उसका कोई मेल न होने से वह व्यर्थ मालूम अनंत। तो बुद्ध ने कहा, मैंने जितना जाना, वह इन अनंत पत्तों की
तरह है। और जितना मैंने तुमसे कहा, वह जो ये मुट्ठी में मेरे पत्ते सूफी फकीर कहते रहे हैं कि जब तक योग्य आदमी न मिल हैं, इनकी भांति है। क्योंकि अमृत भी ज्यादा हो जाए, तो जहर हो जाए, तब तक अपने भीतर के अनुभव कहना ही मत, नहीं तो तुम जाता है। तुम झेल न पाओगे। मसीबत में पडोगे। और ऐसी मसीबत आती रही है। अलहिल्लाज | यह जो अर्जुन को दिखाई पड़ा विराट, अप्रमेय, जिसकी बुद्धि भल से चिल्लाकर कह दिया कि मैं ब्रह्म हं. अनलहक। लोगों ने | कभी कोई कल्पना भी नहीं कर सकती थी, अनुमान भी नहीं कर उसे पकड़कर उसकी हत्या कर दी। कि तुम और ब्रह्म! तुम? इसी | सकती थी, सोच भी नहीं सकती थी, जिसकी तरफ कोई उपाय न गांव में पैदा हुए। इसी गांव में बड़े हुए। और तुम ब्रह्म। यह कुफ्र | | था, वह उसे दिखाई पड़ा है। है। यह तुम पाप कर रहे हो कि तुम अपने को ब्रह्म कहो। । ___ यह अप्रमेय स्वरूप सब ओर देखता हूं। और ऐसा नहीं है कि
अलहिल्लाज ने उन लोगों से बात कह दी, जिनसे नहीं कहनी | आप ही अप्रमेय हो गए, कृष्ण! अर्जुन कह रहा है, सब तरफ जो थी। निश्चित ही, उनको यह बात ऐसी मालूम पड़ी कि धोखा है। कुछ भी है इस समय, सभी बुद्धि-अतीत हो गया है। कुछ भी या तो यह आदमी पागल है, और या फिर धोखा दे रहा है। समझ में नहीं आता। मेरी समझ बिलकुल खो गई है। मैं बिलकुल अलहिल्लाज को अनुभव हुआ था। लेकिन जो हुआ था, वह इतना शून्य हो गया हूं। बड़ा था कि ब्रह्म से छोटे शब्द से नहीं कहा जा सकता था। और | आज इतना ही। जो हुआ था, वह इतना निकट था, अपने से भी ज्यादा निकट, कि | | रुकें। पांच मिनट कीर्तन करें, फिर जाएं। रुकें, कोई बीच में उठे इसके सिवाय कि मैं ब्रह्म हूं, कहने का और कोई उपाय नहीं था। न। और जब तक कीर्तन चलता है, पीछे दो मिनट धुन चलती है, .लेकिन यह गलत लोगों के बीच कह दी गई बात।
तब तक धैर्य रखकर बैठे रहें; उठे न। इस मुल्क में हमने ऐसी व्यवस्था की थी कि जब भी इस तरह की घोषणाएं, इस तरह के अनुभव कोई कहे, तो उन लोगों को कहे, जो समझ सकते हों। उनको कहे, जो शब्द में न अटक जाएंगे उनको कहे, जिनकी खुद की भी कोई प्रतीति हो।
कबीर से उसके शिष्य पूछते रहे निरंतर कि कहें कि आपको भीतर क्या हुआ है ? तो कबीर कहते थे, सुनने वाला आ जाए। थोड़ा रुको।
एक दफा बुद्ध एक गांव में गए। सारे लोग इकट्ठे हो गए। बुद्ध बैठ गए। लेकिन वे देखते हैं चारों तरफ, जैसे किसी को खोजते हों। तो लोगों ने कहा, आप शुरू भी करिए! बुद्ध ने कहा कि मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं। वह जो समझ सकता है इस गांव में, वह अभी
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