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धर्म है आश्चर्य की खोज ६
वहां होता ही नहीं । और जैसे स्वप्न में मिनट, आधा मिनट में वर्षों का जीवन व्यतीत हो जाता है, वैसे उस आनंद के क्षण में कितना ही समय व्यतीत हो सकता है और बाहर की घड़ी में कुछ भी फर्क न पड़ेगा।
कृष्ण और अर्जुन के बीच जो घटना घटी, वह हमारे समय के हिसाब से कितनी ही लंबी मालूम पड़े, उनके बीच क्षणभर में घट गई होगी। जैसे दो आंखों का मिलना क्षणभर को हो गया होगा और बस । संजय को जरूर वक्त लगा कहने में, जैसा आपको अपना सपना बताने में वक्त लगता है। सपना तो जल्दी बीत जाता है, पर बताने जाते हैं तो वक्त लगता है । धृतराष्ट्र को समझाने में इतना लंबा वक्त लगा।
यह जो गीता है, इसके बीच जो समय व्यतीत हुआ, वह संजय और धृतराष्ट्र के बीच व्यतीत हुआ समय है, अर्जुन और कृष्ण के नहीं। अर्जुन और कृष्ण के बीच तो ऐसे घट गई है यह घटना कि उस युद्ध के स्थल पर मौजूद किसी व्यक्ति को पता ही नहीं चला होगा कि क्या हो गया। यह कोई भी जान नहीं सका होगा कि यह कब हो गई है बात! अनुभव पल में हो गया होगा। लेकिन अनुभव इतना विराट था कि उसे बताते वक्त संजय बहुत समय लगा होगा।
इसे ऐसा समझ लें । आपकी तरफ मैं देखूं, तो एक झलक में आप सबको देख लेता हूं। लेकिन मैं फिर किसी को बताने जाऊं कि नंबर एक पर कौन बैठा था, और नंबर दो पर कौन बैठा था, और नंबर तीन पर... । तो यहां हजारों लोग मौजूद हैं, अगर इनका एक-एक का नाम मैं वर्णन करने लगूं, तो मुझे दिनों लग जाएंगे। लेकिन एक झलक में मैं आपको देख लेता हूं, एक पलक में आपको देख लेता हूं।
अर्जुन ने जो जाना, वह तो एक पलक में हो गया। लेकिन जो उसने जाना था विस्तीर्ण, उसको फिर जब वर्णन करने संजय चला, तो एक-एक टुकड़े में उसे करना पड़ा। फिर समय लगा। भाषा रेखाबद्ध है। अनुभव मल्टी-डायमेंशनल है, अनुभव में अनेक आयाम हैं। भाषा एक रेखा में चलती है। तो एक रेखा में जब वर्णन करना पड़ता है, तो वह जो अनेक आयाम में अनुभव हुआ था, उसे खंड-खंड में तोड़कर करना पड़ता है।
यह जो गीता हमें इतनी-इतनी लंबी मालूम पड़ रही है, यह संजय और धृतराष्ट्र के कारण है। यह कृष्ण और अर्जुन के बीच नहीं। लेकिन संजय योग्य था। शायद उस क्षण में संजय से ज्यादा
कोई योग्य आदमी नहीं था कि कृष्ण और अर्जुन के बीच जो घटा, | उसे कह सकता। और शायद उस दिन धृतराष्ट्र से ज्यादा योग्य कोई जिज्ञासु नहीं था, जो इसको पूछता । हैं। यह अदभुत
ये चार जो पात्र हैं गीता के, ये एक लिहाज से | संयोग असंभव संयोग है। कृष्ण जैसा गुरु खोजना बहुत मुश्किल है। अर्जुन जैसा शिष्य खोजना, उससे भी ज्यादा मुश्किल है। संजय | जैसा व्यक्त करने वाला खोजना, उससे भी ज्यादा मुश्किल है। धृतराष्ट्र जैसा अंधा जिज्ञासु, उससे भी ज्यादा खोजना मुश्किल है।
क्यों? अंधे जिज्ञासा करते ही नहीं । अंधे मानते हैं कि हम | जानते हैं। अंधे जिज्ञासा करते ही नहीं, अंधे तो मानकर ही बैठे हैं कि हम जानते हैं। उनका यह मानना ही तो उनका अंधापन है कि हम जानते हैं।
आपका अंधापन क्या है? आपको पता है कि आपको पता है, और पता बिलकुल नहीं है! और जिस आदमी को यह खयाल है कि मुझे मालूम है बिना मालूम हुए, वह जिज्ञासा क्यों करेगा? वह पूछेगा क्यों ? वह जानने की उत्सुकता क्यों प्रकट करेगा? उसकी कोई इंक्वायरी नहीं है, उसकी कोई खोज नहीं है। और जो यह माने ही बैठा है कि मैं जानता हूं, वह कभी भी नहीं जान पाएगा। क्योंकि | जानने के लिए जो पहला कदम है, वह जिज्ञासा है।
धृतराष्ट्र, अंधे धृतराष्ट्र ने पूछा; यह बड़ी बात है । जो बता सकता था, संजय, उसने बताया । जिसको यह घटना घट सकती थी, अर्जुन, उसे यह घटना घटी। जो इस घटना के लिए कैटेलिटिक | एजेंट हो सकता था, कृष्ण, वह एजेंट हो गया।
गीता एक अर्थ में श्रेष्ठतम संयोगों का जोड़ है।
फिर यह भी ध्यान रखें कि अधूरा आदमी ही बता सकता है। क्योंकि पूरा आदमी संसार की तरफ से पूरा मुड़ जाता है। और बड़ी कठिनाई हो जाती है। आधा आदमी आधा संसार की तरफ भी होता है, आधा परमात्मा की तरफ भी होता है। उधर की भी उसके पास झलक होती है और इधर संसार में खड़े लोगों की पीड़ा का भी उसे बोध होता है।
जब बुद्ध को ज्ञान हुआ, तो कथा है कि सात दिन तक वे बोले नहीं। क्योंकि बुद्ध का मुख फिर गया पूरा का पूरा सत्य की तरफ । | वे मौन हो गए, वे संसार को भूल ही गए। उन्हें पता ही न रहा कि पीछे अनंत अनंत लोग पीड़ा से परेशान, इसी सत्य की खोज के लिए रो रहे हैं। वे भूल ही गए।
तो बड़ी मीठी कथा है कि देवताओं ने आकर बड़ा शोरगुल
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