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विराट से साक्षात की तैयारी
होगा। पता नहीं, अभी समय आया या नहीं! अभी फल पका या | सभी साधक जल्दबाजी करने की कोशिश करते हैं। क्योंकि जो भी नहीं! अभी घड़ी पकी या नहीं! अभी उस जगह हूं या नहीं, जहां उसकी तलाश में है, प्यासा है; चाहता है, जल्दी पानी मिल जाए। तीसरी आंख खुले सके! और अगर खुल भी सके, तो मैं झेल भी लेकिन जल्दी मिला हुआ पानी हो सकता है जहर साबित हो। जल्दी सकंगा उस विराट को या नहीं!
जहर है। विराट को देखना, उसे झेलना, उसे आत्मसात कर लेना, आग हो सकता है, अभी प्यास ही न थी इतनी, और पानी का सागर के साथ खेलना है। तो यह हो सकेगा मुझसे या नहीं, इसे ध्यान रखें। ऊपर टूट पड़े, तो भी मुसीबत हो जाए। फिर हमारी आदत सागर
अर्जुन ने बड़ी समझ की बात कही है कि आप ऐसा मानते हों | के पानी को पीने की नहीं है। सागर का पानी मिल भी जाए, तो हम तो, तो ही मुझे प्रत्यक्ष कराएं। अन्यथा मैं रुक सकता हूं। जल्दी नहीं प्यासे मर जाएंगे। हम तो पानी, छोटे-छोटे कुएं, गड्डे खोदकर, पीने करूंगा, धैर्य रख सकता हूं, प्रतीक्षा करूंगा। और जब समझें कि की हमारी आदत है। वहीं हमारा तालमेल भी है। अचानक विराट मैं योग्य हुआ...।
का संपर्क अस्तव्यस्त कर जाता है। केआस! कई बार ऐसा हुआ है कि शिष्यों को वर्षों प्रतीक्षा करनी पड़ी। नीत्शे को ऐसा हुआ। यह जर्मन विचारक नीत्शे उसी हैसियत इसलिए नहीं कि गुरु को उत्तर पता नहीं था। इसलिए भी नहीं कि | की चेतना थी, जिस हैसियत की बुद्ध, महावीर। लेकिन विक्षिप्त गुरु कुछ मजा ले रहा था, कि काफी समय व्यतीत हो जाए और हो गया यह आदमी। और विक्षिप्त होने का एक ही कारण था। इस आप उसकी सेवा-स्तुति करते रहें। सिर्फ इसलिए कि शिष्य जब | आदमी ने अति आग्रह किया अनंत में उतर जाने का; सब सीमाओं तक इसके योग्य न हो जाए कि झांक सके अनंत गड्डू में; को तोड़कर-विचार की, शब्द की, शास्त्र की, सिद्धांत की, विस्तारहीनता में झांक सके, जब तक इसके योग्य न हो जाए। नहीं समाज की सब सीमाओं को तोड़कर नीत्शे ने हिम्मत जुटाई तो होगा क्या? अगर अर्जुन थोड़ा भी कच्चा हो, तो पागल होकर | अनंत में झांकने की, बिना गुरु के। वापस लौटेगा, विक्षिप्त हो जाएगा।
कभी-कभी बुद्ध जैसा व्यक्ति बिना गुरु के भी वापस लौट ___ अनेक साधक विक्षिप्त हो जाते हैं, जल्दबाजी के कारण; पागल | आया है। लेकिन शायद पीछे अनंत जन्मों की साधना होगी। हो जाते हैं। और साधारण पागल का तो इलाज हो सकता है। नीत्शे, ऐसा लगता है कि बिलकुल अपरिपक्व, उस विराट के साधक अगर पागल हो जाए, तो मनोचिकित्सक के पास इलाज का आमने-सामने खड़ा हो गया।
भी उपाय नहीं है। क्योंकि उसकी बीमारी शरीर की बीमारी नहीं नीत्शे ने कहा है कि जैसे समय से हजारों मील ऊपर मैं खडा हं। है, उसकी बीमारी मन की भी बीमारी नहीं है, उसकी बीमारी मन के समय से हजारों मील ऊपर! कोई मतलब नहीं होता इसका। क्योंकि जो अतीत है, उससे संपर्क से पैदा हुई है। उसके इलाज का कोई समय और मील का क्या संबंध? लेकिन मतलब एक है कि समय उपाय नहीं है। .
के बाहर खड़ा हूं। हजारों मील बाहर खड़ा हूं, और देख रहा हूं आपने उन फकीरों के संबंध में सुना होगा, जिनको हम मस्त विराट अराजकता को। कहते हैं, सूफी जिनको मस्त कहते हैं। मस्त का मतलब ही केवल उसके बाद नीत्शे फिर कभी स्वस्थ नहीं हो सका। उसके बाद इतना है कि अभी कुछ कच्चा था आदमी, और कूद गया। तो देख | जो भी उसने लिखा, उसमें हीरे हैं; ऐसे हीरे हैं, जो कि मुश्किल से तो लिया उसने, लेकिन सब अस्तव्यस्त हो गया। उस अराजक में | मिलें; लेकिन सब हीरे विक्षिप्त मालूम पड़ते हैं। सब हीरे जैसे जहर झांककर वह भी अराजक हो गया। सब अस्तव्यस्त हो गया। वापस में बुझाए गए हों। उसकी वाणी में झलक बुद्ध की है, और साथ में लौटना मुश्किल हो गया। अगर वह वापस भी लौट आए, तो जो पागलपन भी है। कहीं-कहीं आकाश झांकता है विराट का, और उसने देखा है, उसे भूल नहीं सकता। जो उसने जाना है, वह उसका | सब तरफ पागलपन दिखाई पड़ता है। पीछा करेगा। जो उसने अनुभव कर लिया है, वह उसके रोएं-रोएं क्या हुआ इसे? इसने कुछ देखा जरूर। लेकिन शायद अभी में समा गया है। अब उससे छुटकारा नहीं है। और अब वह बेचैन | | उचित न था देखना। समय के पहले देख लिया। नीत्शे पागल ही करेगा। और अब उसे जीने नहीं देगा, और मुश्किल में डाल देगा। विक्षिप्तता घटित होती है, अगर साधक जल्दबाजी करे। और अर्जुन डरा होगा कि जो मैं पूछता हूं, छोड़ दूं कृष्ण पर ही। यदि
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