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8 ध्यान की छाया है समर्पण
स्थापित हो, नए प्रकाश और नई आंखें उपलब्ध हों, नई ज्योति और | औपचारिक बात है। कर लेते हैं, सुन लेते हैं बचपन से, फिर नया चैतन्य आविर्भूत हो, तो दिखाई पड़ता है।
| उसे दोहराए चले जाते हैं। फिर जिंदगीभर कभी खयाल भी नहीं हम सब जानने के पहले जानना चाहते हैं। इससे इस दुनिया में | | करते कि जो हम कह रहे हैं, उन शब्दों के पीछे कोई प्राण हैं ? बहुत-सा मिथ्या, बहुत-सा फाल्स, सूडो ज्ञान प्रचलित हो जाता है। उन्हें हमने जाना? हम सब जानने के पहले जानना चाहते हैं! पक्षी उड़ने के पहले जानना | मैं उस आदमी को धार्मिक कहता हूं, जो अपने एक-एक शब्द चाहता है कि उड़ना क्या है! तैरने के पहले हम जानना चाहते हैं कि | को तौलेगा। ईश्वर को मैंने जाना हो, तो ही इस शब्द को होंठ पर स्वाद क्या है उस तैरने का! स्वतंत्रता के पहले, आकाश में पंख | | लाऊं। अन्यथा यह शब्द बहुत कीमती है और उन होंठों पर लाने फैलाने के पहले, हम जानना चाहते हैं, स्वतंत्रता का अर्थ क्या है! | के योग्य नहीं है, जिन होंठों ने सिर्फ बासे शब्द को उधार ले लिया
तब हमें बताने वाले लोग भी मिल जाते हैं। क्योंकि दुनिया में | हो और दोहरा रहे हों। जब किसी चीज की मांग हो, डिमांड हो, तो सप्लाई भी हो जाती | __ आत्मा मैंने जानी है? तो मत करें उपयोग उसका, शब्द को ही है। अर्थशास्त्री कहते हैं कि जिस चीज की भी मांग करो, कोई न मत उपयोग करें। अगर शब्द से आप बच सकें, तो शायद बेचैनी कोई देने वाला जरूर मिल जाएगा। बस मांग होनी चाहिए; बाजार | | अनुभव हो कि मैं भी तो जानूं कि क्या है यह? लेकिन हम शब्दों का नियम है।
से इतने राजी हैं, इतने राजी हैं! यह लंबी कंडीशनिंग है। तो जब हम मांग करते हैं कि बिना जाने हमें जानना है, तो पंडितों ___ एक आखिरी बात। रूस में एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ, का एक बड़ा वर्ग है सारी दुनिया में, जो आपको बिना जाने जनाने पावलव। उसने कंडीशंड रिफ्लेक्स का एक सिद्धांत प्रस्तावित के लिए राजी है। जो कहता है, क्या जरूरत है! ठीक है; यह रही | किया। कीमती सिद्धांत है। और आत्यंतिक रूप से सही नहीं है, किताब, ये रहे शब्द; इन्हें कंठस्थ कर लो। इनको पी जाओ। इनको | फिर भी बहुत दूर तक सही है। एक कुत्ते के सामने वह रोटी करता याद कर लो। इनको दोहराने लगो। तोतों की तरह इनको रट लो। था, रोटी देता था और तभी घंटी बजाता था। रोटी देखकर कुत्ते की ज्ञान हो जाएगा!
लार टपकती थी, तभी वह घंटी भी सुनता था। फिर पंद्रह दिन के हमारे पास ऐसा ज्ञान है। कभी आपने सोचा है कि आपका | बाद रोटी तो नहीं दी, सिर्फ घंटी बजाई और कुत्ते के मुंह से लार ईश्वर आपकी आत्मा तोते की तरह रटा हआ ज्ञान है। आपके पिता टपकने लगी। से आपको मिल गया है। कृपा करके आप अपने बेटे को भी दे अब घंटी से लार के टपकने का कोई भी संबंध नहीं है। कितनी जाएंगे। कोई आपको रटा गया, आप किसी और को रटा देंगे। | ही घंटी बजाओ, कुत्ता लार नहीं टपकाएगा। लेकिन यह पावलव लेकिन अनुभव की, खुद की प्रतीति, खुद के साक्षात्कार की एक | का कुत्ता लार टपकाने लगा। तो पावलव कहता था, यह किरण भी भीतर नहीं है!
कंडीशनिंग हो गई, यह संस्कार हो गया। रोटी दी, कुत्ते की लार इसीलिए तो धर्म की इतनी चर्चा होती है और धर्म इतना व्यर्थ | | टपकी। रोटी के साथ घंटी बजी, कान ने घंटी सुनी। रोटी और घंटी मालूम होता है। और धर्म का इतना-इतना व्यापक काम चलता है, | संयुक्त हो गए, एसोसिएटेड हो गए। अब रोटी तो नहीं दी, सिर्फ
और परिणाम कहीं भी नहीं दिखाई पड़ता। सारी दुनिया में प्रकाश | |घंटी बजाई। घंटी बजते ही कान में घंटी पड़ी, लार की ग्रंथियों ने की चर्चा है और घनघोर अंधकार है! और जहां देखो वहां परमात्मा | लार छोड़नी शुरू कर दी। का विचार चल रहा है-मंदिर में, मस्जिद में, चर्च में, गुरुद्वारे में। | हम भी करीब-करीब शब्दों के साथ इसी तरह कंडीशंड हो गए सब जगह प्रभु की स्तुति चल रही है, और प्रभु की कहीं भी कोई | | हैं। मंदिर दिखा, हाथ जोड़ लिए। यह बिलकुल कंडीशनिंग है। झलक किसी आंख में दिखाई नहीं पड़ती! अजीब धोखा है! | बचपन से पिता के साथ गए होंगे, कहा कि मंदिर है, पिता ने हाथ
और आदमीयत अपने को धोखा देने में इतनी कुशल मालूम | | जोड़े, आपने हाथ जोड़ लिए। अब कंडीशनिंग हो गई। अब मंदिर पड़ती है कि जिसका हिसाब नहीं। जो है ही नहीं हमारे जीवन में | | दिखता है, हाथ जुड़ जाता है। आप सोचते हैं, आप बड़े धार्मिक बिलकुल, उसकी हम कितनी चर्चा कर रहे हैं! और चर्चा से ही हैं! यह सिर्फ घंटी बजी और लार टपकने लगी! तृप्त हैं। और चर्चा करके सोच रहे हैं, समाप्त हुआ काम। एक | इतना आसान नहीं! हाथ जोड़े, चले गए। निपटारा हो गया
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