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स्वभाव की पहचान
जगत में दो तरह के ज्ञान हैं। एक ज्ञान है, जिसे बट्रेंड रसेल ने एक्वेनटेंस कहा है, परिचय कहा है। और दूसरा ज्ञान है, जिसे बट्रेंड रसेल ने नालेज कहा है, ज्ञान कहा है। परिचय और ज्ञान। जब हम किसी चीज को बाहर से देखते हैं, तो वह परिचय है, एक्वेनटेंस है, ज्ञान नहीं है।
आप एक फूल देखते हैं, तो आप क्या करेंगे? बाहर से देखेंगे, उसकी सुगंध लेंगे, उसका रूप देखेंगे, उसकी आकृति । अगर कवि हुए, तो उसे प्रेम करेंगे। गायक हुए, तो गीत गाएंगे उसके सौंदर्य का। अगर पारखी हुए, तो आनंदित हो जाएंगे, नाच उठेंगे। लेकिन यह फूल के बाहर से ही हो रहा है। अगर वैज्ञानिक हुए, तो फूल को तोड़कर विश्लेषण करके, उसके केमिकल्स, उसके तत्वों को अलग-अलग बोतल में बंद करके, लेबल लगाकर रख देंगे कि इन-इन चीजों मिलकर बना है यह फूल । इतना रस है इसमें। इतना पानी है। इतना खनिज है। इतना लोहा है । वह सब आप रख देंगे।
लेकिन यह भी जानना बाहर से ही होगा। फूल के भीतर प्रवेश नहीं हुआ। फूल एक आब्जेक्ट रहा। आप जानने वाले, अलग रहे, बाहर रहे। अगर कवि की तरह जाना, तो थोड़े निकट आए, लेकिन फिर भी दूर रहे। क्योंकि निकटता भी दूरी का एक नाम है। कितने ही निकट आ जाएं, दूरी तो बनी ही रहती है।
मेरे ये दोनों हाथ बिलकुल भी निकट आ जाएं, तो भी दोनों बीच स्पेस तो रहती है, जगह तो रहती है, फासला तो रहता है। अगर फासला न रहे, तो दोनों हाथ एक ही हो जाएं, फिर दो न रह जाएं। दो का मतलब ही है कि बीच में फासला कितना ही कम हो, लेकिन फासला है। और वह कम नहीं है फासला । फासला बड़ा है, भारी है। फासला इतना बड़ा है कि कितना ही उपाय करें, वह मिटता नहीं। हम कितने ही करीब ले आएं, मिटता नहीं।
वैज्ञानिक कहते हैं कि अणु-अणु के बीच में भी ऐसा फासला है, जितना सितारों के बीच में। अनुपात वही है, भारी फासला है। जमीन से सूरज कोई दस करोड़ मील दूर है। यह फासला बड़ा मालूम पड़ता है, दस करोड़ मील दूर ! बीच में इतना शून्य है। अगर हम अणु में प्रवेश करें, तो अणु के भी इलेक्ट्रान और न्यूट्रान के बीच, अगर हम न्यूट्रान को जमीन के बराबर बड़ा मान लें, तो उसकी और इलेक्ट्रान की दूरी इतनी ही हो जाती है, जितनी जमीन और सूरज की है। अनुपात फासला इतना ही बड़ा है। दो अणु भी पास-पास नहीं हैं, जो बिलकुल पास मालूम पड़ रहे हैं।
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हमारे हाथ जब बिलकुल पास हैं, तब भी भारी फासला है। और फासला कभी मिटता नहीं है। दो के बीच दूरी बनी ही रहती है । निकटता भी दूरी का एक नाम है। कह सकते हैं, निकटता कम से कम दूरी है। और दूरी कम से कम निकटता है। और कोई ज्यादा फासला नहीं है।
कितने ही पास से हम जानें, दूरी है। उसी दूरी को वैज्ञानिक भी मिटाने की कोशिश करता है । वह चीर-फाड़ करके पदार्थ के भीतर घुस जाता है। फूल को तोड़ डालता है। क्योंकि नहीं तोड़ेंगे, तो भीतर प्रवेश नहीं हो सकेगा।
तोड़कर भी हम पार ही रहते हैं, भीतर नहीं पहुंच पाते। फूल टूट जाता है, दूरी उतनी ही रहती है; फासला कम नहीं होता। सच तो यह है कि कवि ज्यादा करीब पहुंच जाता है फूल के, बजाय वैज्ञानिक के। हालांकि वैज्ञानिक अपने औजारों से भीतर घुसने की कोशिश करता है।
क्या आपको खयाल है कि आपको अगर किसी ने प्रेम किया हो, तो वह आपके हृदय के ज्यादा करीब है, बजाय उस सर्जन के | जो आपके हृदय का आपरेशन करेगा। हृदय का आपरेशन करने वाला बिलकुल आपके हृदय में हथियार डाल देगा। फिर भी उतने करीब नहीं है, जितना वह, जिसने आपको प्रेम किया है।
कवि निकट आ सकता है। वैज्ञानिक भी निकट आने की कोशिश करता है। लेकिन निकट कोई भी आ नहीं पाता; बना रहता है; दूरी बनी रहती है।
फासला
प्रेमियों के बीच में भी दूरी बनी रहती है ! कितने ही बड़े प्रेमी हों, बड़ी दूरी बनी रहती है। दो प्रेमी बिलकुल सटकर आस-पास बैठे हों । पूर्णिमा की रात हो । बड़े गीत गाते हों । प्रेम की चर्चा करते हों । फिर भी फासला भारी बना रहता है। भारी फासला बना रहता है। और इसलिए प्रेमी भलीभांति अनुभव करते हैं कि जितने करीब आते हैं, उतनी दूरी बढ़ती मालूम पड़ती है। क्योंकि उतना ही अनुभव होता है कि करीब आ गए और फिर भी करीब आए नहीं । तो अनुभव होता है कि दूरी और बढ़ गई।
इसलिए सभी प्रेम असफल हो जाते हैं। सभी कहता हूं! सिर्फ उन प्रेमों को छोड़ देता हूं, जिनको असफल होने का मौका ही नहीं मिलता। अगर दो प्रेमियों को करीब आने का मौका ही न मिले, तो वे कभी असफल न होंगे। क्योंकि उनको वहम बना ही रहेगा कि करीब आ सकते थे, मौका नहीं मिला। लेकिन जिन प्रेमियों को भी करीब आने का मौका मिल जाए, वे असफल होंगे ही; असफलता