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गीता दर्शन भाग-
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सांस सम्हालने को रुका एक क्षण को, और मैंने एक पैर ऊपर | दिखाई पड़ते हो, इससे ही आदमी नहीं हो जाते। वह गाय दिखाई उठाया कि आगे बढूं। तभी मैंने देखा कि एक झाड़ी से एक | पड़ती थी, इसलिए सिर्फ गाय ही नहीं थी। वह गायों में बड़ी श्रेष्ठ खरगोश भागकर आया और मेरे पैर के नीचे जो जगह थी, जो मेरे थी। उसने एक दूसरा आयाम छू लिया था। और वह मुक्त हो गई। पैर उठाने से खाली हो गई थी, वहां आकर सिकड़कर, सुरक्षा में तो कृष्ण का यह कहना कि घोड़ों में भी मैं हं. कभी तो बहत मेरे पैर के नीचे बैठ गया।
ऐसा लगेगा कि कैसी बात है! कुछ और प्रतीक कृष्ण को नहीं फिर मेरे मन को हुआ कि अगर मैं पैर नीचे रखं, तो यह खरगोश | मिले! ये घोड़े और हाथी और वृक्ष, यह क्या बात है! लेकिन यह मर जाएगा। फिर मेरे मन को हुआ कि अपने को बचाने को तो मैं | बहुत विचारपूर्वक है। भाग रहा हूं, और इसको मार डालूं! तो जैसा मेरा बचना महत्वपूर्ण | ___ अस्तित्व जहां भी है, वहीं परमात्मा है। लेकिन अर्जुन से उन्होंने है, वैसा ही इसका बचना भी महत्वपूर्ण है। और फिर मुझे खयाल | | कहा कि तू पहचान सकेगा अस्तित्व को जहां खिलता है फूल, बीज आया कि इतने भरोसे से मेरे पैर की छाया में जो आकर बैठ गया तुझे नहीं दिखाई पड़ सकते। है, यह अब उचित न होगा कि उसके भरोसे को तोड़ दूं। आज इतना ही। फिर हम कल बात करेंगे।
तो मैं पैर को वैसा ही किए खड़ा रहा। आग निकट आती चली | लेकिन बैठे पांच मिनट। नाम-स्मरण में सम्मिलित हों और गई और अंततः मैं जलकर मर गया। उस दिन तो मुझे पता नहीं था | फिर जाएं। कि इसका कोई फायदा होगा। लेकिन उस कृत्य के कारण ही मैं मनुष्य हुआ हूं। वह जो एक छोटा-सा कृत्य था, उसके कारण ही मैं मनुष्य हुआ हूं।
अगर हम पशुओं को भी गौर से देखें, तो आपको पता चलेगा, उनमें भी व्यक्तित्व है। श्रेष्ठ, निकृष्ट उनमें भी है। उनमें भी आपको ब्राह्मण और शूद्र मिल जाएंगे। अब तो हम आदमियों में भी मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनमें भी आपको ब्राह्मण-शूद्र मिल जाएंगे। वहां भी आपको लगेगा कि कोई वृत्ति और ही है।
रमण महर्षि के आश्रम में जब भी रमण बोलते थे—जब भी वे बोलते थे तो उनके सुनने वालों में एक गाय भी नियमित आती थी। यह वर्षों तक चला। दूसरों को तो खबर हो जाती थी, गाय को तो कोई खबर भी नहीं की जा सकती थी। दूसरों को पता होता कि आज रमण पांच बजे बोलेंगे। गाय को कैसे खबर होती! गाय को कौन खबर करने वाला था। लेकिन पांच बजे, दूसरे चाहे थोड़ी देर-अबेर पहुंचे, गाय ठीक समय पर उपस्थित हो जाती।
जब गाय मरी, तो रमण ने कहा कि वह मुक्त हो गई। और रमण ने गाय के साथ वही व्यवहार किया, जो उन्होंने सिर्फ एक और व्यक्ति के साथ किया जीवन में और फिर कभी नहीं किया। जब उनकी मां मरी, तो जो व्यवहार उन्होंने किया, वही व्यवहार उन्होंने उस गाय के मरने पर किया। और दोनों की पूरी की पूरी अंत्येष्टि ठीक वैसे ही की; जैसी अपनी मां की की, वैसी उस गाय की की।
कोई ने रमण से पूछा कि आप यह क्या कर रहे हैं एक गाय के लिए! उन्होंने कहा, वह तुम्हें गाय दिखाई पड़ती थी। तुम आदमी
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