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- गीता दर्शन भाग-500
हो जाए।
अंत तक खींचते चले जाएं, तो भी एक समय हमें मानना पड़ेगा, तो आइंस्टीन ने कहा, टाइम इज़ दि फोर्थ डायमेंशन आफ स्पेस, जो नहीं बदलता है। जैसे, इसे हम और तरह से समझें, तो आसान वह आकाश का ही चौथा आयाम है। और तब उसने एक ही शब्द
निर्मित किया स्पेसियोटाइम। एक ही अस्तित्व है, समय और आप बैठे हैं जमीन पर। आपके बैठने के लिए जगह चाहिए। आकाश का, क्योंकि किसी भी चीज के होने के लिए परिवर्तन बिना जगह के आप नहीं बैठ सकते। आपके होने के लिए आकाश जरूरी है। अस्तित्व मात्र परिवर्तन का प्रवाह है। चाहिए, जगह चाहिए, स्थान, स्पेस चाहिए। तब एक सवाल उठता । कृष्ण कहते हैं, मैं अक्षय काल हूं। मैं वह समय हूं, जो कभी है, जो दर्शनशास्त्री पूछते रहे हैं कि आकाश को होने के लिए भी | चुकता नहीं। तो फिर कोई और स्थान चाहिए पड़ेगा। आकाश को होने के लिए सब चीजें चुक जाती हैं, समय भर नहीं चुकता। सूरज चुक जाते कोई महाआकाश चाहिए। लेकिन फिर यह इनफिनिट रिग्रेस होगी, | | हैं, बुझ जाते हैं। पृथ्वियां चुक जाती हैं, बूढ़ी हो जाती हैं, मर जाती इसका कोई अंत न होगा। फिर उस महाआकाश के लिए कोई और। | हैं। बड़े-बड़े तारे होते हैं, बिखर जाते हैं। अगर हम इस विराट महाआकाश चाहिए।
अस्तित्व में खोजने चलें, तो सभी चीजें बनती हैं, बिखरती हैं। सिर्फ इसलिए वैज्ञानिक कहते हैं कि आकाश सब चीजों के लिए एक समय बनने में भी मौजूद रहता है, बिखरने में भी मौजूद रहता चाहिए, सिर्फ आकाश को छोड़कर। आकाश के लिए कोई स्थान | है। जन्म में भी मौजूद रहता है, मृत्यु में भी मौजूद रहता है। सिर्फ की जरूरत नहीं। आकाश स्वयं स्थान है। सब चीजों के लिए | एक समय अक्षय रूप से मौजूद रहता है। उसकी मौजूदगी सदा है। आकाश जरूरी है। आकाश के लिए कुछ और जरूरी नहीं है। इसलिए महावीर ने तो आत्मा का नाम ही समय रख दिया।
ठीक वैसे ही, सब परिवर्तन के लिए समय जरूरी है, सिर्फ | महावीर ने तो आत्मा का नाम ही समय रख दिया। महावीर ने कहा, समय के परिवर्तन के लिए समय जरूरी नहीं है। कहना चाहिए कि आत्मा यानी समय, अस्तित्व यानी समय। जैसे स्थान आकाश है, ऐसे ही परिवर्तन समय है। और समय के | इसलिए अगर आपने कभी जैनियों का शब्द सुना हो, तो वे लिए कोई और चीज की आवश्यकता नहीं है।
ध्यान को कहते हैं सामायिक। प्रार्थना को वे कहते हैं सामायिक। वैज्ञानिक, विशेषकर अल्बर्ट आइंस्टीन, समय और आकाश | | सामायिक का अर्थ है, समय में प्रवेश कर जाना, आत्मा में डूब दोनों को जोड़कर एक नई धारणा निर्मित किए हैं, जो आधुनिक | जाना। टु बी इन दि इटरनल टाइम, वह जो अनंत समय है, उसके फिजिक्स की धारणा है। आइंस्टीन ने एक नया प्रस्ताव रखा। वह | साथ एक हो जाना। यह सामायिक शब्द ध्यान से भी ज्यादा प्रस्ताव भारत के लिए बहुत पुराना है। और वह प्रस्ताव पश्चिम में मूल्यवान है। क्योंकि जो व्यक्ति उस शाश्वत समय में एक हो गया, बहुत कीमती सिद्ध हुआ। आधुनिक विज्ञान उसी प्रस्ताव के वह परमात्मा से एक हो गया। आस-पास निर्मित हुआ है। वह प्रस्ताव यह है कि समय और | कृष्ण कहते हैं, मैं अक्षय काल हूं। आकाश भी दो नहीं हैं, एक ही चीज हैं। तो आइंस्टीन ने कहा कि हम सब समय से अपने को भिन्न समझते हैं। हम सब समय से समय भी आकाश का एक आयाम है।
अपने को अलग समझते हैं। हम सब ऐसा समझते हैं कि समय यह थोड़ी कठिन गणित की धारणा है।
कोई चीज है, जिसमें से हम गुजर रहे हैं। या समय कोई चीज है, आकाश के तीन आयाम आइंस्टीन ने कहे हैं। तीन आयाम। जो हमारे पास से गुजर रहा है। हमारी जो धारणा है वह यही है। कोई भी चीज हो, तो लंबाई होगी, चौड़ाई होगी, गहराई होगी। एक आदमी बैठकर कहता है कि समय पास कर रहा हूं, समय किसी भी चीज के होने के लिए ये तीन आयाम जरूरी हैं, लंबाई, काट रहा हूं। उसे पता नहीं कि वह समय को नहीं काट रहा है, चौड़ाई, गहराई। ये थ्री डायमेंशन आकाश के हैं। आइंस्टीन ने कहा अपने को काट रहा है। समय को आप कैसे काटिएगा! कोई कि चौथा आयाम, चौथा डायमेंशन समय है। किसी भी चीज के छुरी-तलवार नहीं जो समय को काट सके। समय आपको काट होने के लिए एक चौथी दिशा भी है, परिवर्तन। लंबाई चाहिए, सकता है, आप समय को नहीं काट सकते। लेकिन लोग कहते हैं! चौड़ाई चाहिए, गहराई चाहिए और अगर वह चीज है, तो एक बैठकर ताश खेल रहे हैं। वे कहते हैं, समय काट रहे हैं! उनको परिवर्तन की प्रक्रिया चाहिए। वह चौथा आयाम है टाइम। | पता नहीं कि ताश खेलकर समय उनको काट रहा है।
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