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ॐ परम गोपनीय-मौन 8
दिखता, तब तक हमें उसे बाहर कहीं देखने की कोशिश करनी | पड़ेगा। फिर तो उसके अतिरिक्त कुछ दिखाई ही नहीं पड़ेगा। फिर पड़ती है। और ध्यान रखें कि वह कोशिश कितनी ही प्रामाणिक हो, | तो जो भी दिखाई पड़ेगा, वही होगा। क्यों? अधूरी होगी, पूरी नहीं हो सकती। वह कोशिश कितनी ही निष्ठा से | क्योंकि जिसे भीतर दिखाई पड़ गया, उसकी सारी आंखें उससे भरी हो, अधूरी होगी, पूर्ण नहीं हो सकती। क्योंकि जिसने उसे | | भर जाती हैं। जिसे भीतर दिखाई पड़ गया, उसकी श्वास-श्वास अभी भीतर नहीं जाना—भीतर का अर्थ है निकटतम-जिसने उसे | | उससे भर जाती है। जिसे भीतर दिखाई पड़ गया, उसका इतने निकटतम नहीं जाना, वह दूर उसे नहीं जान सकेगा। जो इतने | रो-रोआं उसी से स्पंदित होने लगता है। फिर तो वह आदमी पास है मेरे कि मेरे हृदय की धडकन भी मझसे दर है उसके हिसाब जहां भी देखे, यही रंग फैल जाएगा। जहां भी देखे, यही ज्योति फैल से; मोहम्मद ने कहा है कि तुम्हारे गले में जो नस फड़कती है जीवन | जाएगी। फिर तो ऐसा हो गया, जैसे आप एक दीया लेकर चलें. की, वह भी दूर है। वह परमात्मा उससे भी ज्यादा निकट है। जो तो जहां भी दीया लेकर जाएं, वहीं रोशनी पड़ने लगे। अंधेरे में चले इतने निकट उसको नहीं जान पाया, वह उसे दूर कैसे जान पाएगा? जाएं, तो अंधेरा भी रोशन हो जाए।
और हम सब आकाश में आंखें उठाकर उसे खोजने की कोशिश ठीक जिस दिन आपके भीतर वह दिखाई पड़ने लगा, आपके करते हैं। हम अंधी आंखों से उसे खोज रहे हैं। अपने भीतर आंख | भीतर दीया जल गया। अब आप कहीं भी चले जाएं, जहां भी यह बंद करके जो उसे नहीं देख पाता, वह इस विराट आकाश में आंखें | रोशनी पड़ेगी आपके दीए की, वहीं वह दिखाई पड़ेगा। अब आप खोलकर ईश्वर को देखने की कोशिश करता है! कभी भी वह अंधेरे में जाएं, तो भी वही होगा। उजाले में जाएं, तो भी वही होगा। कोशिश सफल न हो पाएगी।
सुबह भी वही, सांझ भी वही। जन्म में भी वही, मृत्यु में भी वही। ___ हां, एक बात हो सकती है कि वह मानने लगे कि दिखाई पड़ रहा लेकिन एक बार यह भीतर दिखाई पड़ जाए तब। और भीतर जाने है। निष्ठापूर्वक मानने लगे, तो जिंदगी उसकी भली हो जाएगी, के लिए कृष्ण को इतने प्रतीक चुनने पड़े। लेकिन धार्मिक नहीं। जिंदगी उसकी सदवृत्तियों से भर जाएगी, एवं मुनियों में वेदव्यास, कवियों में शुक्राचार्य, दमन करने वाले लेकिन सत्य से नहीं। जिंदगी उसकी शुभ हो जाएगी, लेकिन शुभ | का दंड, जीतने की इच्छा वालों की नीति, गोपनीयों में अर्थात गुप्त भी एक सपना होगा। क्योंकि जिस परमात्मा को वह देख रहा है, वह | रखने योग्य भावों में मौन, ज्ञानवानों का तत्व-ज्ञान मैं ही हूं। उसकी कल्पना है, उसका प्रक्षेपण है, उसका प्रोजेक्शन है। जिसने ये दो प्रतीक बहुत बहुमूल्य हैं, इन्हें हम समझें। अभी अपने भीतर नहीं देखा, वह उसे कहीं भी देख नहीं सकता। गोपनीयों में, गुप्त रखने योग्य भावों में मौन। लेकिन हमारी तकली
कलीफ यह है कि हमारी नजरें बाहर घमती हैं। यह बड़ा उलटा मालम पडेगा. क्योंकि गोपनीय तो हम किसी इसलिए कृष्ण ने बाहर से शुरू किया कि यहां देख, यहां देख, | 'बात को रखते हैं। मौन को भी कोई गोपनीय रखता है? गोपनीय यहां देख। फिर वे धीरे-धीरे पास ला रहे हैं। आखिर में बहुत पास | तो हम किसी विचार को रखते हैं। निर्विचार को भी कोई गोपनीय ले आए। उन्होंने कहा कि इधर मेरी तरफ देख। मेरे वंश में, मैं रखता है? कोई बात छिपानी हो तो हम छिपाते हैं। मौन का तो अर्थ यहां मौजूद हूं। यह कृष्ण मौजूद है, यहां देख। वे बहुत करीब ले हुआ कि छिपाने को ही कुछ नहीं है। जब छिपाने को ही कुछ नहीं आए। कृष्ण और अर्जुन के बीच फासला बहुत कम है, फिर भी | | है, तो उसे हम क्या छिपाएंगे! यह सूत्र बहुत कठिन है और उन फासला है। फिर वे और भीतर ले गए, और अर्जुन से कहा कि | गहरे सूत्रों में से एक है, जिन पर धर्म की बुनियाद निर्मित होती है।
अपने भीतर देख। तू भी, तू भी मेरा ही घर है। तेरे भीतर भी मैं | गोपनीयों में, गुप्त रखने योग्य में मैं मौन हूं। निवास कर रहा हूं।
कुछ मत छिपाना, लेकिन अपने मौन को छिपाना, इसका अर्थ और एक बार कोई व्यक्ति भीतर उसकी झलक पा ले, तो सभी होता है। किसी को पता न चले कि तुम्हारे भीतर मौन निर्मित हो रहा जगह उसकी झलक फैल जाती है। फिर ऐसा नहीं कि वसंत में ही | | है। किसी को पता न चले कि तुम ध्यान में उतर रहे हो। किसी को दिखाई पड़ेगा। वसंत में तो अंधे को दिखाई पड़े, इसकी कोशिश | पता न चले कि तुम शांत हो रहे हो। किसी को पता न चले कि तुम करनी पड़ती है। फिर तो पतझड़ में भी वही दिखाई पड़ेगा। फिर | भीतर शून्य हो रहे हो। क्योंकि दूसरे को बताने की इच्छा भी उसे श्रेष्ठ में ही दिखाई पड़े, ऐसा नहीं, निकृष्ट में भी वही दिखाई भीतर नष्ट कर देती है।
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