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मंजिल है स्वयं में
ईश्वर से अर्थ ही उसका है कि जिसका कोई प्रारंभ नहीं, अंत नहीं, जिसका कोई रूप नहीं, जिसका कोई गुण नहीं, फिर भी जो है और जितने भी गुण हैं और जितने भी आकार हैं, और जितने भी रूप हैं, सबके भीतर है।
एक फूल मैं आपको दूं और कहूं कि सुंदर है। फूल तो मैं आपको दे सकता हूं, फूल की परिभाषा भी हो सकती है, लेकिन सौंदर्य की परिभाषा में कठिनाई खड़ी हो जाएगी। और आप सब जानते हैं कि सौंदर्य क्या है। लेकिन अगर कोई पूछ लेगा, तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। आप बता न पाएंगे कि सौंदर्य क्या है।
सबको अनुभव है कि सौंदर्य क्या है। ऐसा आदमी खोजना कठिन है, जिसने कभी सौंदर्य का अनुभव न किया हो। कभी उगते हुए सूरज में, कभी डूबते हुए चांद में, कभी किसी फूल में, कभी किन्हीं आंखों में, कभी किसी चेहरे में, कभी किसी शरीर के अनुपात में, कभी किसी ध्वनि में, कभी किसी गीत की कड़ी में, कहीं न कहीं, ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, जिसने सौंदर्य का अनुभव न किया हो। लेकिन अब तक, प्लेटो से लेकर बट्रेंड रसेल तक, सौंदर्य के संबंध में निरंतर चिंतन करने वाले लोग एक परिभाषा भी नहीं दे पाए हैं कि सौंदर्य क्या है!
संत अगस्तीन ने कहा है कि कुछ चीजें ऐसी हैं कि जब तक तुम नहीं पूछते, मैं जानता हूं; और तुम पूछते हो कि मुश्किल खड़ी हो जाती है। उसने कहा कि मैं भलीभांति जानता हूं कि प्रेम क्या है, लेकिन तुम पूछो और मैं मुश्किल में पड़ा । मैं भलीभांति जानता हूं कि समय, टाइम क्या है, लेकिन तुमने पूछा कि मैं मुश्किल में पड़ा ।
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परमात्मा इनमें सबसे गहरी मुश्किल है, सबसे बड़ी मुश्किल है। समय और प्रेम और सौंदर्य और सत्य, शुभ, ये सब अलग-अलग मुश्किलें हैं। इनकी कोई की परिभाषा नहीं हो पाती।
जार्ज ई. मूर ने इस समय पिछले पचास वर्षों में, पश्चिम में जो सबसे ज्यादा तर्कयुक्त बुद्धि का विचारक था, श्रेष्ठतम, और पूरे मनुष्य जाति के इतिहास में दो-चार आदमी उतनी तीव्र प्रतिभा के खोजे जा सकते हैं - जी. ई. मूर ने एक किताब लिखी है, प्रिंसिपिया इथिका; नीति - शास्त्र और दो-ढाई सौ पेजों में सिर्फ एक ही सवाल पर चिंतन किया है, व्हाट इज गुड ? शुभ क्या है? अच्छाई क्या है ?
और दो सौ, ढाई सौ पेजों में जी. ई. मूर की हैसियत का बुद्धिमान आदमी इतनी मेहनत किया है, इतनी बारीक मेहनत किया है कि शायद मनुष्यों में कभी किसी मनुष्य ने ऐसी मेहनत शुभ के बाबत
| नहीं की है। और आखिर में नतीजा यह है, आखिरी जो निष्कर्ष है, वह यह है, मूर कहता है, गुड इज़ इनडिफाइनेबल, वह जो शुभ है, उसकी कोई परिभाषा नहीं हो सकती ! ढाई सौ पेज सिर्फ इस छोटे-से सवाल पर कि शुभ क्या है? और नतीजा - जी. ई. मूर की हैसियत के आदमी का — कि शुभ की व्याख्या नहीं हो सकती !
और उसने कहा कि ऐसा ही मामला है, जैसे कोई मुझे एक फूल | दे दे और मैं कहूं कि यह पीला फूल है और वह मुझसे पूछे, व्हाट | इज़ यलो ? पीला क्या है? तो जैसी मैं मुश्किल में पड़ जाऊं, ऐसी मुश्किल में पड़ गया हूं।
आपसे भी कोई पूछे कि पीला क्या है, तो आप क्या कहेंगे? मूर ने तो कहा है, यलो इज़ यलो, पीला पीला है। और ज्यादा कुछ कहा | नहीं जा सकता। लेकिन यह भी कोई कहना हुआ कि पीला पीला है ! यह कोई बात हुई ? तर्कशास्त्री कहते हैं, टॉटोलाजी है, यह तो | पुनरुक्ति हो गई। आपने कहा, यलो इज़ यलो। इसमें क्या मतलब हुआ, वह तो हमें पता ही था। आपने कोई नई बात नहीं कही। कहिए कि व्हाट इज़ यलो ?
मूर कहता है, कैसे कहें। क्योंकि अगर मैं कहूं लाल, पीला लाल है, तो गलत बात है। क्योंकि लाल लाल है। अगर मैं कहूं, पीला हरा है, तो भी गलत बात है; क्योंकि हरा हरा है! मैं पीले को और क्या कहूं पीले के सिवाय ? जो भी मैं कहूंगा, वह गलत होगा। क्योंकि अगर वह पीला ही होगा, तो तुम कहोगे, पुनरुक्ति हो गई। और अगर वह पीला न होगा, तो वह परिभाषा नहीं बनाएगा
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इतनी छोटी-छोटी चीजों की भी हम परिभाषा नहीं कर पाते। लेकिन परमात्मा की हम परिभाषा पूछते हैं कि परमात्मा क्या है? पीला रंग क्या है, इसकी परिभाषा नहीं खोजी जा पाती। शुभ क्या है, पता नहीं चलता। सौंदर्य क्या है, पता नहीं चलता। पूछते हैं, परमात्मा क्या है ?
ये सब जो इनडिफाइनेबल्स हैं, ये जो सब अपरिभाष्य हैं, दि | टोटेलिटी आफ आल इनडिफाइनेबल्स इज़ गॉड। यह जो सब अपरिभाष्य है, इन सबका जो जोड़ है, वही ईश्वर है।
इसलिए बुद्ध तो किसी गांव में जाते थे, तो उनका एक शिष्य गांव में घंटा बजाकर खबर कर आता था कि बुद्ध ने ग्यारह प्रश्न तय किए हैं, कोई पूछे न। ईश्वर क्या है, यह पूछे न । ग्यारह प्रश्नों में जितने भी अपरिभाष्य हैं, वे सब बुद्ध ने तय कर रखे थे। वे कहते थे, इनको छोड़कर कुछ भी पूछो। ये पूछो ही मत ।
अनेक लोग उनसे पूछते कि यही तो पूछने योग्य मालूम पड़ते हैं