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गीता दर्शन भाग-5
से ज्यादा गहरी जाती है। क्योंकि वह मौलिक हिंसा का जो आधार अहंकार, उसी को तोड़ डालती है।
जब एक आदमी यह सोचता है कि मैं अहिंसा कर रहा हूं, तब भी हिंसा होती है; क्योंकि मैं अहिंसा कर रहा हूं, तो भी अहंकार मजबूत होता है। मैं मार रहा हूं तो भी, मैं बचा रहा हूं तो भी। अगर मुझे यह खयाल हो जाए कि मैंने बचाया, तो भी अहंकार वही है । भाषा वही है। कभी-कभी भाषा एक-सी हो, तो भी हमें खयाल नहीं आता। कभी-कभी भाषा अलग हो, तो भी दोनों के भीतर एक ही तत्व हो सकता है।
मुल्ला नसरुद्दीन भारत आया था और एक योगी के द्वार पर रुका। थका-मांदा था, सोचा उसने, विश्राम मिल जाए। बड़ा भवन था, विश्रामकक्ष था, योगी के बड़े शिष्य थे। मुल्ला आकर पास बैठा एक मुसलमान फकीर पास आकर बैठा प्रभावशाली व्यक्ति। योगी भी बहुत आनंदित हुआ कि चलो, अब मुसलमान भी मेरे पास आने लगे। थोड़ी देर योगी की बातचीत सुनी, जो शिष्यों से चल रही थी।
योगी समझा रहा था जीव-दया । जीव दया की बात समझा रहा था। कह रहा था कि समस्त जीव एक ही परिवार के हैं। समस्त जीवन जुड़ा हुआ है। इसलिए दया ही धर्म है। जब योगी बोल चुका, तो मुल्ला ने भी खड़े होकर कहा कि आप बिलकुल ठीक कहते हैं। एक बार मेरी जाती हुई जान एक मछली ने बचाई थी ।
योगी तो एकदम हाथ जोड़कर उसके चरणों में बैठ गया। उसने कहा कि धन्य! मैं बीस साल से साधना कर रहा हूं, लेकिन अभी तक मुझे ऐसा प्रत्युत्तर नहीं मिला कि किसी पशु ने मेरी जान बचाई हो। मैंने कई पशुओं की जान बचाई है, लेकिन किसी पशु ने मेरी जान बचाई हो, अब तक ऐसा मेरा भाग्य नहीं है। तुम धन्यभागी हो ! तुम्हारी बात से मेरा सिद्धांत पूरी तरह सिद्ध हो जाता है। तुम रुको यहां, विश्राम करो यहां ।
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'तीन दिन मुल्ला नसरुद्दीन की बड़ी सेवा हुई। और तीन दिन योगी की बहुत-सी बातें नसरुद्दीन ने सुनीं। चौथे दिन योगी ने कहा कि अब तुम पूरी घटना बताओ, वह रहस्य, जिसमें एक मछली ने तुम्हारी जान बचा दी थी। नसरुद्दीन ने कहा कि आपकी इतनी बातें सुनने के बाद मैं सोचता हूं कि अब बताने की कोई जरूरत नहीं है।
योगी नीचे बैठ गया, नसरुद्दीन के पैर पकड़ लिए और कहा, गुरुदेव, आप बचकर नहीं जा सकते। बताना ही पड़ेगा वह रहस्य, जिसमें एक मछली ने आपकी जान बचाई। नसरुद्दीन ने कहा,
अच्छा यह हो कि वह चर्चा अब न छेड़ी जाए। वह विषय छेड़ना ठीक नहीं है। योगी तो बिलकुल सिर रखकर जमीन पर लेट गया। | उसने कहा कि मैं छोडूंगा नहीं गुरुदेव ! वह रहस्य तो मैं जानना ही चाहूंगा। क्या आप मुझे इस योग्य नहीं समझते?
नसरुद्दीन ने कहा, नहीं मानते, तो मैं कहे देता हूं। मैं बहुत भूखा था और एक मछली को खाकर मेरी जान बची ! एक मछली ने मेरी जान बचाई !
शब्द एक से हों, इससे भ्रांति में पड़ने की जरूरत नहीं है। एक से शब्दों के भीतर भी बड़े विभिन्न सत्य हो सकते हैं। और कई बार विभिन्न शब्दों के भीतर भी एक ही सत्य होता है; उससे भी भ्रांति में पड़ने की जरूरत नहीं है। शब्दों की खोल को खोजना जरूरी है।
हटाकर सदा सत्य
महावीर और बुद्ध जिस अहिंसा की बात कहते हैं, वह इतने पर रुक जाती है कि दूसरे को मत मारो। अच्छी है बात। गहरी है बात । धार्मिक है। साधक के लिए बड़ी उपयोगी है । लेकिन कृष्ण एक कदम और आगे जाते हैं। वे कहते हैं, यह मान्यता ही कि तुम मार सकते हो, यह भी हिंसा है। यह मान्यता ही कि तुम मार सकते हो या बचा सकते हो, यह भी हिंसा है। परम अहिंसा तो तब है, जब तुम जानते हो कि मारे तो, बचाए परमात्मा है; मैं बीच में निमित्त से ज्यादा नहीं हूं। तब परम अहिंसा है।
अर्जुन, मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और आगे होने वालों | की उत्पत्ति का कारण हूं | तथा स्त्रियों में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूं।
पहली दफा, इन प्रतीकों में कृष्ण ने स्त्रियों का प्रतीक भी पहली दफा उल्लिखित किया है। स्त्रियों में भी अगर परमात्मा खोजना हो, तो कहां खोजा जा सकेगा? अगर स्त्रियों में भी परमात्मा की झलक पानी हो, तो वह कहां पाई जा सकेगी? कीर्ति में ! और कीर्ति का स्त्री से क्या संबंध है? और कीर्ति क्या है ?
स्त्री को जब भी हम देखते हैं, खासकर आज के युग में जब भी स्त्री को हम देखते हैं, तो स्त्री दिखाई नहीं पड़ती, सिर्फ वासना | दिखाई पड़ती है । स्त्री को हम देखते ही हैं एक वासना के विषय की तरह, एक आब्जेक्ट की तरह । स्त्री को हम देखते ही ऐसे हैं, | जैसे बस भोग्य है, उसका कोई अपना अर्थ, अपना कोई अस्तित्व नहीं है।
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और स्त्री को भी निरंतर एक ही खयाल बना रहता है, वह भोग्य होने का । उसका चलना, उसका उठना, उसका बैठना, उसके