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3 काम का राम में रूपांतरण
गोपियां नाचती हों, तो बिना एतराज किए कृष्ण को भगवान मान है। लेकिन कृष्ण को यमराज क्यों शासकों में श्रेष्ठ मालूम पड़ा? सकते हैं। ईसाइयत नहीं मान सकती। ईसाइयत तो मानती ही है कि
कुछ कारण हैं। कामवासना ही इस जगत में पाप का कारण है। इसलिए कामवासना एक, इस जगत में मृत्यु के सिवाय और कुछ भी निश्चित नहीं से हट जाना है। और हट जाने का मतलब गहरा दमन है। | है। इस जगत में अगर कोई एक चीज सुनिश्चित है, एब्सोल्यूटली
दो हजार साल में ईसाइयत ने पश्चिम में कामवासना का इस बुरी । सर्टेन, तो वह मृत्यु है। बाकी सब चीजें अनिश्चित हैं। हो भी तरह दमन किया कि आज उस दमन का प्रतिफल पश्चिम में आ | सकती हैं, न भी हों। मृत्यु होगी ही। मृत्यु न हो, ऐसा सोचा भी नहीं रहा है। जब कोई चीज बहुत दबाई जाती है, तो उसका प्रतिकार और जा सकता। रिएक्शन और प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है। ईसाइयत ने जिस चीज जीवन में बाकी सब हेजार्ड है, सब अनिश्चित है। जीवन में सब को खूब दबाया था जोर से, आज वह जोर से फैलकर पैदा हो गई | | ऐसा है, जैसे कोई कागज की नाव समुद्र की लहरों पर कहीं भी है। आज पश्चिम में जो वासना का खुला खेल है, उसमें जिम्मेवार डोल रही हो। कहीं भी जा सकती है; पूरब भी जा सकती है, पश्चिम के आज के लोग कम और दो हजार साल के वे लोग ज्यादा | पश्चिम भी जा सकती है; बड़ी लहरों पर, छोटी लहरों पर। यह हैं, जिन्होंने वासना को बिलकुल दबाने का पागलपन से भरा हुआ नाव कहीं भी डोल सकती है। तरंगों के हाथ में सब अनिश्चित है। आग्रह किया।
एक बात सुनिश्चित है कि यह नाव कागज की डूबेगी। उतनी बात श्वीत्जर की आलोचना अनुचित है। लेकिन उसके कारण हैं, निश्चित है। और वह निश्चय बदला नहीं जा सकता। मृत्यु क्योंकि ऐसे लोग भारत में जरूर हुए हैं, जो जीवन निषेधक हैं। सर्वाधिक सुनिश्चित तथ्य है। लेकिन भारत की मूल धारा जीवन निषेधक नहीं है। भारत की मूल इसलिए कृष्ण कहते हैं, शासकों में मैं यमराज हूं। क्योंकि उसके धारा जीवन को उसकी समग्रता में स्वीकार करती है, उसकी पूर्णता शासन में जरा भी शिथिलता नहीं है, जरा भी अपवाद नहीं है। सब में स्वीकार करती है। जीवन जैसा है, भारत उसको अंगीकार करता चीजों में अपवाद हो सकता है; उसके शासन में अपवाद नहीं है। है और फिर अंगीकार के द्वारा उसे रूपांतरित करता है। उसका शासन निरपवाद है। कानून वहां पूरा है, उसमें रत्तीभर फर्क
इस भेद को ठीक से समझ लें। आप किसी चीज से लड़ सकते | नहीं है। हैं बदलने के लिए, आप किसी चीज को स्वीकार कर सकते हैं | दूसरी बात, एक आदमी अमीर हो सकता है, एक गरीब हो बदलने के लिए। स्वीकार करके जो बदलाहट है, वह गहरी होती | | सकता है। एक आदमी बुद्धिमान हो सकता है, एक आदमी है। लड़कर जो बदलाहट है, वह गहरी नहीं होती। क्योंकि जिससे | बुद्धिहीन हो सकता है। एक आदमी सुंदर हो सकता है, एक आदमी आप लड़ते हैं, उसे आप समझ ही नहीं पाते। समझने के लिए मैत्री | असुंदर हो सकता है। हम चेष्टा करके कल सारी संपत्ति बांट दें, चाहिए। कामवासना से भी मैत्री चाहिए।
सभी आदमियों के पास बराबर संपत्ति हो जाए, तब भी दो बराबर कृष्ण कहते हैं, मैं कामदेव हूं। वे यह कहते हैं कि यह पूरा जीवन | संपत्ति वाले आदमियों का सुख बराबर नहीं होता। हम संपत्ति बांट मुझसे ही पैदा होता है। यह जीवन का सारा खेल मेरा ही खेल है। दें, तो हम संपत्ति को भूल जाएंगे, सौंदर्य पीड़ा देने लगेगा। बुद्धि
और यह सब दिव्य हो सकता है। इसलिए अपने को इससे संयुक्त | पीड़ा देगी। कोई ज्यादा बुद्धिमान होगा, कोई कम बुद्धिमान होगा। करते हैं।
जीवन में समानता असत्य है, होती ही नहीं। सोशलिज्म एक . सर्पो में वासुकि हूं, नागों में शेषनाग, जलचरों में वरुण देवता सपना है, जो कभी पूरा नहीं होता, और न कभी पूरा हो सकता है। हं. पितरों में पित्रेश्वर तथा शासन करने वालों में यमराज हं। लेकिन एक सखद सपना है। देखने में मजा आता है। समाजवाद
यह प्रतीक बहुत कीमती है; वैसा ही, जैसा कामदेव, वैसा ही | | कभी पूरा नहीं हो सकता है जीवन में, क्योंकि जीवन असमानता यमराज। इसे हम थोड़ा समझ लें।
| है। सब तरह से जीवन असमान है। दो व्यक्ति जरा भी समान नहीं शासन करने वालों में यमराज, मृत्यु का दूत, मृत्यु का शासक! हैं। प्रकृतिगत एक-एक व्यक्ति अलग-अलग असमान है। सिर्फ शासन करने वालों में कृष्ण को कोई और न सूझा! बड़े शासक हो | | जगत में एक ही सोशलिज्म निश्चित है, वह मृत्यु का समाजवाद गए हैं। पृथ्वी ने बड़े शासक देखे हैं। स्वर्ग भी शासकों को जानता है। मृत्यु के समक्ष सब समान है।
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