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8 गीता दर्शन भाग-508
साथ ले आना। एक संन्यासी को मैं देखना चाहता हूं। मैं उस गया और उसने संन्यासी से कहा कि मैं आदमी कठोर हूं। हां और आदमी को देखना चाहता हूं, जिसने स्वयं को जान लिया है। न में जवाब चाहता हूं। साथ चलते हो, ठीक। अन्यथा यह गर्दन
यह अरस्तू इतना बड़ा ज्ञानी था, तर्क का पिता था। पश्चिम का को काट देता हूं। जो लाजिक है, वह अरस्तू से पैदा हुआ। अब भी वही काम में | उस फकीर ने कहा, तुम काट दो। जहां तक मेरा सवाल है, इस आता है, दो हजार साल हो गए। इतना ज्ञानी था, लेकिन स्वयं का गर्दन को तो मैं उसी दिन छोड़ चुका, जिस दिन मैंने संन्यास लिया। तो कोई ज्ञान न था। तो हालत उसकी यह थी कि सिकंदर की मेरी तरफ से यह कटी हुई है। और तुमसे मैं कहता हूं कि जब गर्दन गुलामी की वजह से, क्योंकि सिकंदर तो सम्राट था। हालांकि | कटकर गिरेगी, तो तुम भी देखोगे कि गिर रही है और मैं भी देखूगा अरस्तू गुरु था! लेकिन इस तरह की कहानियां हैं कि सिकंदर शिष्य | कि गिर रही है। क्योंकि मैं इस गर्दन से अलग हूं। तुम देर मत करो। था, वह कभी-कभी अरस्तू को कहता कि अच्छा तुम घोड़ा बनो, | बेकार समय मत गंवाओ। क्योंकि मैं भी आदमी साफ-सुथरा हूँ। मैं तुम्हारे ऊपर सवार होकर जरा चलूं, तो अरस्तू घोड़ा बनकर | तलवार बाहर निकालो और गर्दन काटो। तुम अपने काम पर सिकंदर को चलाता था।
जाओ। तुम अपनी यात्रा पर, मैं अपनी यात्रा पर! सिकंदर ने सोचा कि जब अरस्तू जैसे आदमी को मैं घोड़ा बनाकर सिकंदर ने तलवार वापस रख ली और उसने अपने सिपाहियों से चलता हूं, तो संन्यासी एक क्या, दस-पचास पकड़वा लाऊंगा। | कहा कि इस आदमी को मारने का कोई अर्थ नहीं है। हम केवल उसी
जब वह हिंदुस्तान से लौटने लगा, तब उसे खयाल आया। जिस को मार सकते हैं, जो मृत्यु से डरता हो। मारा ही उसको जा सकता गांव में वह ठहरा था, उसने आदमी भेजे कि कोई संन्यासी हो तो है। मरता ही वही है, जो मृत्यु से डरता है। इस आदमी को मारने का पकड़ लाओ। गांव के लोगों से सिपाहियों ने पूछा, तो गांव के लोगों कोई अर्थ नहीं। नाहक हमें ही पछतावा होगा। और पीछे हम ही चिंता ने कहा, जो तुम्हारी पकड़ में आ जाए, समझ लेना, वह ले जाने | में पड़ेंगे। यह आदमी चिंता में पड़ने वाला नहीं दिखाई पड़ता है। यह योग्य नहीं है! तो वे बड़ी मुश्किल में पड़े। उन्होंने कहा, फिर कौन | मेरी ही नींद हराम कर देगा। इसकी गर्दन मुझे ही बार-बार याद आती है ले जाने योग्य ? तो गांव के लोगों ने कहा. एक आदमी है. लेकिन रहेगी, और मेरी ही रास्ते की यात्रा खराब हो जाएगी। सिकंदर एक क्या, हजार सिकंदर भी उसको ले जा सकें, यह बहुत | ब्रह्म-विद्या, अध्यात्म-विद्या का अर्थ है, वह विद्या, वह सुप्रीम मश्किल है। उन्होंने कहा, उसी का पता बता दो। तो उन्होंने कहा, साइंस. जिससे हम उसे जान लेते हैं, जो हम हैं। जिससे हम उसे नदी के किनारे एक नग्न संन्यासी है, उसे तुम ले जाओ। जान लेते हैं, जो सब जान रहा है। जिससे हम उसे जान लेते हैं,
सिपाही गए, उन्होंने कहा कि महान सिकंदर की आज्ञा है कि आप जिसकी कोई मृत्यु नहीं, जिसका कोई जन्म नहीं। हमारे साथ चलें। शाही सम्मान के साथ हम आपको यूनान ले श्वेतकेतु लौटा वापस, अध्ययन करके समस्त शास्त्रों का। जो जाएंगे। जो भी आपकी सुविधा, हम सब करेंगे। आप शाही अतिथि | भी जानने योग्य था, जान आया। निश्चित ही, जानने की अकड़ होंगे। महल में ही आप ठहरेंगे। सिकंदर के विशेष मेहमान होंगे। आ गई। जब वह गांव के भीतर प्रविष्ट हुआ, उसके पिता ने देखा
वह फकीर हंसने लगा और उसने कहा कि आज्ञा! आज्ञा तो अपने मकान से, श्वेतकेतु अकड़ा हुआ चला आ रहा है। पंडित हमने किसी की भी माननी बंद कर दी। जिस दिन हमने आज्ञा की अकड। आया. तो पिता ने कहा कि मालम होता है.. माननी बंद की, उसी दिन तो हम संन्यासी हुए। जब तक हम किसी जानकर आ गया। श्वेतकेतु ने कहा, सब जानकर आ गया जो भी न किसी की आज्ञा मानते थे, तब तक हम गृहस्थ थे। सिकंदर को | | जानने के लिए था। जितनी विद्याएं थीं, सब सीख आया हूं। कह दो कि तुम गलत आदमी के पास आ गए। उन्होंने कहा, ___ उसके पिता ने कहा, बस, एक सवाल तुझसे मुझे पूछना है। आपको पता नहीं, सिकंदर खतरनाक है। वह क्रोधी है। वह गर्दन | तूने उसे भी जाना या नहीं, जिससे सब जाना जाता है ? उसने कहा, काट दे सकता है। तो उसने कहा, तुम सिकंदर को ही बुला | यह तो कोई विद्या मैंने सुनी नहीं! मेरे गुरु ने इसके बाबत कोई लाओ-उस संन्यासी ने कहा-क्योंकि बड़ा मजा आएगा! बात नहीं की!
सिकंदर ने सुना, तो सिकंदर नंगी तलवार लेकर गया। भारत में तो उसके पिता ने कहा, तू वापस लौट जा। तू उसको जानकर सिकंदर की यात्रा में यह सबसे कीमती घटना है। वह तलवार लेकर लौट, जिसे बिना जाने सब जानना बेकार है। और जिसे जान लेने
त सब
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