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ॐ गीता दर्शन भाग-500
यह उसी मात्रा में दीवाल बिखरती चली जाती है, जिस मात्रा में चले। नहीं तो यह तुम्हारा वरदान, मेरे लिए अभिशाप हो जाएगा। मन पवित्र होता है। और जिस दिन मन वायु की तरह हो जाता है, | मुझे पता न चले। मेरी शक्ति का मुझे पता न चले। मेरे संतत्व का कोई भी अपवित्रता नहीं रह जाती, ट्रांसपैरेंट हो जाता है, आर-पार | मुझे पता न चले। मेरे रहस्य का मुझे पता न चले। यह जो चमत्कार दिखाई पड़ने लगता है। वाय का होना और दिखाई न पडना. संतत्व प्रभ मझे दे रहा है. यह मझे पता न चले। भी ऐसा ही है। होता है, लेकिन दिखाई नहीं पड़ता।
वह फकीर चलता गांव में, सूखे वृक्षों पर छाया पड़ जाती, वे हरे सुना है मैंने, एक मुसलमान फकीर के जीवन में कहा गया है। | हो जाते। कभी किसी बीमार पर उसकी छाया पड़ जाती, वह स्वस्थ फकीर परमज्ञान को उपलब्ध हो गया, तो फरिश्ते उतरे, और उन्होंने | हो जाता। लेकिन न तो उस फकीर को पता चलता और न उस बीमार उस फकीर को कहा कि परमात्मा ने हमें भेजा है कि तुम कोई वरदान को पता चलता, क्योंकि छाया के पड़ने से यह घटना होती। मांग लो। तुम जो चाहो! तुम पर प्रभु प्रसन्न हैं। तो उस फकीर ने | यह तो कहानी है, लेकिन सूफी फकीर कहते हैं कि जब भी कभी कहा, लेकिन अब! अब तो कोई चाह न रही। देर करके तुम आए। | कोई संत पैदा होता है, तो न उसे खुद पता होता है कि मैं संत हूं, जब चाह थी बहुत, कोई आया नहीं पूछने। और अब जब चाह न | न किसी और को पता चलता है। रही, तब तुम आए हो?
पता चलना, ठोस हो जाना है। पता न चलना; तरल होना है, उन देवताओं ने कहा, हम आए ही इसीलिए हैं। जब चाह नहीं | | विरल होना है, हवा की तरह होना है। जिन्हें हमने भगवान भी कहा रह जाती, तभी तुम इतने पवित्र होते हो कि तुमसे पूछा जा सके कि | है, बुद्ध या महावीर को, उन्हें खुद कुछ भी पता नहीं है। वे निर्दोष कुछ चाहते हो? चाह के कारण ही तो हमारे और तुम्हारे बीच | बच्चों की भांति हैं। दरवाजा बंद था। चाह गिर गई, इसलिए दरवाजा खुला। अब हम हवा की तरह पवित्रता भी है, अनसेल्फकांशस; अनकांशस तुमसे पूछने आए हैं कि तुम कुछ मांग लो।
नहीं, अनसेल्फकांशस। अचेतन नहीं; अहंकार का जरा भी बोध उस फकीर ने कहा, लेकिन अब मैं क्या मांग सकता हूं! लेकिन | | नहीं है। अहंकार की चेतनता जरा भी नहीं है। और दिखाई नहीं जितनी फकीर जिद्द करने लगा कि मैं कुछ भी नहीं मांग सकता, | | पड़ना। जो भी चीज दिखाई पड़ने लगती है, वह पदार्थ बन जाती उतने ही फरिश्ते जिद्द करने लगे कि कुछ मांग लो। | है। दिखाई पड़ना पदार्थ का गुण है, मैटर का गुण है। चैतन्य का
जिंदगी ऐसी ही उलटी है। जो लोग जितनी जिद्द करते हैं कि यह गुण होना है, दिखाई पड़ना नहीं। चाहिए, उतना ही चूकते चले जाते हैं। जो दौड़ते हैं पाने को, खो इसलिए हमें शरीर दिखाई पड़ते हैं, आत्मा दिखाई नहीं पड़ती। देते हैं। और जो पाने का खयाल ही छोड़ देते हैं, उनके पीछे सब | हमें पत्थर दिखाई पड़ते हैं, प्रेम दिखाई नहीं पड़ता। जो भी हमें कुछ दौड़ने लगता है।
दिखाई पड़ता है, वह पदार्थ है। जो नहीं दिखाई पड़ता, वही उन देवताओं ने चरण पकड़ लिए और कहा कि परमात्मा हमसे परमात्मा है। कहेगा कि तुम इतना भी न समझा पाए! वापस जाओ। तुम कुछ __वायु हमें दिखाई नहीं पड़ती, पर है। और अगर हमें किसी को मांग लो। तो उस फकीर ने कहा कि तुम्हीं कुछ दे दो, जो तुम्हें | | सिद्ध करना हो कि वायु है, तो हम उसकी आंखों का उपयोग न कर लगता हो। तो उन देवताओं ने कहा कि हम तुम्हें वरदान देते हैं कि | सकेंगे। और अगर कोई जिद्द ही करे कि मेरे सामने प्रत्यक्ष करो, तो तुम जिसे भी छू दोगे, वह बीमार होगा तो स्वस्थ हो जाएगा, मुर्दा । | हम कठिनाई में पड़ जाएंगे। यद्यपि जो हमसे कह रहा है कि वायु को होगा तो जीवित हो जाएगा। अगर सूखे पौधे को तुम छू दोगे, तो प्रत्यक्ष करो, वह भी वायु के बिना एक क्षण जी नहीं सकता है। एक अंकुर निकल आएंगे।
श्वास आनी बंद होगी, तो प्राण निकल जाएंगे। वायु ही उसका प्राण उस फकीर ने कहा, इतनी तुमने कृपा की, थोड़ी कृपा और करो। है, जीवन है। लेकिन फिर भी वायु को सामने रखा नहीं जा सकता, और वह कृपा यह कि मेरे छूने से यह न हो, मेरी छाया के छूने से प्रत्यक्ष नहीं किया जा सकता। हम अनुभव कर सकते हैं। लेकिन हो। मैं जहां से निकल जाऊं, मेरी छाया पड़ जाए सूखे वृक्ष पर, किसी के शरीर में लकवा लग गया हो और उसे स्पर्श का कोई बोध वह हरा हो जाए, लेकिन मुझे उसका पता न चले। अगर मेरे छूने न होता हो, तो हवाएं बहती रहें, उसे कोई पता नहीं चलेगा। वह से होगा, तो मेरा अहंकार पुनः निर्मित हो सकता है। मुझे पता न श्वास भी लेगा, उसी से जीएगा और पता नहीं चलेगा।
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