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20 गीता दर्शन भाग-58
जा सकते। इसका मतलब यह हुआ कि कर्म से भी गहरा संबंध | में तिरोहित करता है, तब उसे आनंद का अनुभव होता है। सपने का मुझसे है। सपने के लिए तो मैं निपट जिम्मेवार हूं। और | । इसलिए कृष्ण कहते हैं, मैं कामदेव हूं। समस्त जन्म, समस्त कोई जिम्मेवार नहीं है।
सृजन मेरे ही द्वारा है। मैं ही हूं। यह जो हमारे चित्त की रुग्णता पैदा होती है, वह है दमन, संघर्ष, यह जीवन को स्वीकार करने का अदभुत सूत्र है। वैमनस्य, शत्रुता, अज्ञान से भरा हुआ।
अल्बर्ट श्वीत्जर ने संभवतः इस सदी का हिंदू धर्म के ऊपर कामवासना कामदेव बन जाती है, अगर हम शांत, मौन, प्रेम से सबसे गहरा क्रिटिसिज्म, सबसे गहरी आलोचना लिखी है। उस ऊर्जा को समझने की कोशिश करें, जो हमारे भीतर वासना बन अल्बर्ट श्वीत्जर इस सदी के दो-चार विचारशील लोगों में एक था। गई है। और फिर उसे ऊपर उठा ले जाने का विज्ञान है। उसको | और उसके विचार का मूल्य है, और उसकी आलोचना विचारणीय बदलने का इंच-इंच शास्त्र है। फिर हम उसे बदलना शुरू करें। | है। उसने कहा है कि हिंदू धर्म लाइफ निगेटिव है, जीवन को
कभी दो-चार छोटे प्रयोग करें. आप चकित हो जाएंगे। जब भी अस्वीकार करता है. जीवन का निषेध करता है. जीवन का आपको कामवासना उठे, तब आप अपना ध्यान तत्क्षण सहस्रार के जीवन को स्वीकार नहीं करता। पास ले जाएं। आंख बंद कर लें, और अपने ध्यान को दोनों आंखों निश्चित ही श्वीत्जर को कुछ भूल हो गई है। और श्वीत्जर की को ऊपर ले जाएं और अनुभव करें कि आपकी चेतना खोपड़ी के भूल का कारण है। क्योंकि श्वीत्जर गांधी को पढ़कर समझता है छप्पर से लग गई है। एक सेकेंड, और आप अचानक पाएंगे कि | कि वे हिंदू धर्म के प्रतीक हैं। श्वीत्जर महावीर और बुद्ध को पढ़कर वासना तिरोहित हो गई। जब भी वासना उठे, तब तत्क्षण अपनी समझता है कि वे हिंदू धर्म के प्रतीक हैं। श्वीत्जर को अगर हिंदू चेतना को खोपड़ी के पास ले जाएं, और आप पाएंगे, वासना धर्म समझना है, तो उसे कृष्ण को पढ़ना चाहिए। न तो महावीर और तिरोहित हो गई। कितनी ही प्रगाढ़ वासना उठी हो, एक क्षण में | न बुद्ध और न गांधी, ये हिंदू धर्म के प्रतीक नहीं हैं। और इनको विलीन हो जाएगी। क्योंकि वासना को चलने के लिए आपकी। | पढ़ने से ऐसा वहम पैदा हो सकता है, ऐसा भय पैदा हो सकता है चेतना के सहयोग की जरूरत है।
कि जीवन का निषेध है, जीवन का विरोध है। कृष्ण को पढ़ने पर और जो लोग इस तरह जीना शुरू कर देते हैं, कि उनकी चेतना पता चलेगा कि जीवन का इतना समग्र स्वीकार कहीं और संभव धीरे-धीरे-धीरे सतत ऊपर की ओर प्रवाहित रहने लगती है, उनमें नहीं है। वासना पैदा होनी बंद हो जाती है। और अंततः चेतना की डोर को | कृष्ण कहते हैं, मैं कामदेव हूं। पकड़कर वासना की ऊर्जा ऊपर चढ़ने लगती है। और जिस दिन काम की जहां स्वीकृति हो गई, वहां जीवन स्वीकार हो जाता है। वासना ऊपर चढ़ती है, उस दिन जीवन में जैसे आनंद का अनुभव | और जहां काम की अस्वीकृति हुई, वहां जीवन का अस्वीकार हो होता है, वैसा हजारों संभोगों में भी नहीं हो सकता। क्योंकि हर जाता है। संभोग शक्ति को खोना है और हर समाधि शक्ति को पाना है। बड़े मजे की बात है। श्वीत्जर ईसाई है। ईसाइयत ज्यादा जीवन
नीचे उतरना, अपनी चेतना के तल को भी नीचे गिराना है। ऊपर निषेधक है। ईसाइयत में जीवन का ज्यादा विरोध है। ईसाइयत में उठना, अपनी चेतना के तल को भी ऊपर उठाना है। और जितने | काम, सेक्स पाप है। मूल पाप है, महापाप है। और श्वीत्जर ईसाई हम ऊपर उठते हैं और जितने हम हल्के होते हैं, उतने गहन आनंद | है और फिर वह देख पाता है कि हिंदू धर्म जीवन निषेधक है, तो में प्रवेश होता है।
| वह गांधी को समझने चल पड़ता है, तो भूल होगी। भूल इसलिए जिस दिन कोई व्यक्ति अपनी खोपड़ी के पार भी अपनी चेतना | होगी कि गांधी पर जो प्रभाव हैं जीवन निषेध के, वे रस्किन और को ले जाने में समर्थ हो जाता है, उस दिन उसे अनंत आनंद की | टाल्सटाय के द्वारा ईसाइयत से आए हुए प्रभाव हैं। उपलब्धि होती है।
एक बहुत मजे की घटना पश्चिम में घटी है कि पश्चिम ने जीवन इसे हम ऐसा समझ सकते हैं, जब कोई व्यक्ति अपनी ऊर्जा को | | के विरोध का सबसे बड़ा प्रयोग किया था ईसाइयत के द्वारा। काम-केंद्र से नीचे गिराता है, तब उसे सुख का आभास होता है; | | ईसाइयत में भयंकर विरोध है। हम राम के साथ सीता को खड़ी कर और जब कोई व्यक्ति अपनी काम-ऊर्जा को सहस्रार से आकाश सकते हैं, और राम को भगवान मान सकते हैं। हम कृष्ण के साथ
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