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ॐ मृत्यु भी मैं हूं
चलता। खेल बंद होता है, तब पता चलता है कि खून बहा जा रहा ध्वनियों के एक नए जगत में प्रवेश करते हैं। और जो बातें कल तक है। क्या हुआ क्या था? आपकी चेतना एक दिशा में आबद्ध हो गई आपको अनुभव में नहीं आती थीं, वे आनी शुरू होती हैं; और जो थी, सब दिशाएं बंद हो गई थीं।
कल तक अनुभव में आती थीं, वे बंद होने लगती हैं। जप-यज्ञ विराट की तरफ अपनी चेतना को आबद्ध करना है, ___ इसलिए कृष्ण कहते हैं कि मैं यज्ञों में जप-यज्ञ हूं, और स्थिर फोकसिंग है, और सब तरफ से बंद हो जाना है। उस क्षण में आप रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूं। किसी और लोक में प्रवेश कर जाते हैं।
__ जैसे ही कोई जप में गहरा उतरता है, वैसे ही मन के कंपन कम कृष्ण कहते हैं, यज्ञों में मैं जप-यज्ञ हूं।
हो जाते हैं। धीरे-धीरे कंपन खो जाते हैं और एक स्थिर हिमालय, जप-यज्ञ सूक्ष्मतम है। बाहर आग जलाना स्थूल बात है, मंत्र से | एक स्थिर शिखर भीतर निर्मित हो जाता है। भीतर भी आग जलाई जा सकती है। बाहर घी डालना स्थूल बात | आज इतना ही। है, भीतर की आग में भी शीतल घी मंत्र से डाला जा सकता है। लेकिन रुकें। पांच मिनट कीर्तन कर लें। कौन जाने, इस कीर्तन बाहर आयोजन करना स्थूल है, भीतर आयोजन करना सूक्ष्म है। | की ध्वनि से आपके और जगत के बीच कोई संबंध स्थापित हो सूक्ष्मतम आयोजन ध्वनि का है।
| जाए। शांत बैठे, कोई बीच में उठे न। पांच मिनट जब कीर्तन पूरा कभी आपने खयाल किया कि अगर आपके सारे शब्द छीन हो, तभी आप उठे। लिए जाएं, तो आप क्या बचेंगे? आपके पास जितने शब्द हैं, वे | सब छीन लिए जाएं, तो आप क्या होंगे? एक सिफर, एक शून्य। आप सिवाय शब्दों के और क्या हैं? अगर एक आदमी के मस्तिष्क से हम सारी ध्वनियां निकाल लें, वह आदमी पूरा का पूरा वैसा ही रहेगा, लेकिन बिलकुल मूढ़ हो जाएगा, जड़ हो जाएगा। जीवित रहते हुए मुर्दा हो जाएगा।
आप हैं क्या? आप कुछ ध्वनियों का जोड़ हैं, कुछ शब्दों का जोड़ हैं। उससे ज्यादा आप नहीं हैं। इन्हीं शब्दों के बीच एक नए शब्द, एक नई ध्वनि की व्यवस्था को निर्मित करना है।
एक आदमी है, वह राम-राम, राम-राम अपने भीतर कह रहा है। वह कहे चला जाता है। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे उसके चारों तरफ, भीतर उसके शरीर की दीवाल से राम-राम-राम सटते चले जाते हैं। राम की ध्वनि उसके शरीर की दीवाल से सब तरफ चिपकती चली जाती है। एक वक्त आता है कि एक राम-नाम का शरीर उसके भीतर पैदा हो जाता है। बाहर उसका शरीर रह जाता है, भीतर उसका अपना होना होता है। और दोनों के बीच में एक राम-नाम की...।
लोग राम-नाम की चदरिया ओढते हैं. उससे कछ न होगा। एक भीतर ओढी जाती है चदरिया. इस शरीर के भीतर। इसके ऊपर ओढ़ने से बहुत फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन अच्छा है। इसके भीतर ओढ़ने का उपाय है। और तब राम-राम सटता चला जाता है, इकट्ठा होता चला जाता है, उसकी पर्त बन जाती है भीतर। और वह पर्त बड़े अदभुत काम करना शुरू कर देती है, क्योंकि उस पर्त के साथ आप