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गीता दर्शन भाग-5
बाहर निकलो । नहीं तो बुद्धिमत्ता इतनी मजबूत है हमारे पास कि द्वार भी आ जाए पास, तो चूक जाता है।
सुना है मैंने, हुजबिरी एक सूफी फकीर हुआ। वह कहा करता था कि आदमी ऐसा है कि अपने हाथ से मौके गंवाता है। एक आदमी आया हुआ था, उसने कहा कि मैं यह नहीं मान सकता। जिंदगी हो गई, हर अवसर की तलाश में हूं कि दो पैसे इकट्ठे हो जाएं। अभी तक अवसर ही नहीं आया। गंवाने का सवाल नहीं है। मैं अवसर की तलाश में हूं, लेकिन अवसर ही नहीं आया। गंवाने का कहां सवाल है? हुजबिरी ने कहा, किसी दिन देखेंगे।
एक दिन हुजबिरी ने उस आदमी को कहा कि मैं उस पार जा रहा हूं नदी के उस झाड़ के नीचे बैठूंगा सांझ, तुम मिलने आ जाना। और अपने दूसरे भक्तों को कहा कि एक में सोने की मोहरें भरकर, बीच पुल पर रख दो। जब यह आदमी आए, तब वहां रख देना और दूर खड़े होकर देखते रहना।
वह आदमी आया। वह पुल के बीच तक आया। और ठीक बीच के करीब आते-आते उस आदमी ने आंखें बंद कर लीं, और बीच का हिस्सा उसने आंखें बंद करके पार किया। घड़े को छोड़ आया। जो लोग खड़े थे, वे भी बहुत चकित हुए कि हद्द हो गई! यह हुबरी ने कोई चमत्कार किया ? कोई जादू किया ? कि यह आदमी भी गजब का है कि आधे पुल तक तो आंखें खोले आया और जब घड़ा बिलकुल पास था, तो उसने आंखें बंद कर लीं ! घड़े को लेकर वे हुजबिरी के पास पहुंचे। वह आदमी भी पहुंचा।
हुजबिरी ने पूछा कि कहो, वह घड़ा बीच में रखा था, तुम्हें दिखाई पड़ा? उसने कहा, कौन-सा घड़ा ! हुजबिरी के मित्रों ने कहा कि घड़ा कैसे दिखाई पड़ेगा! जहां घड़ा दिखाई पड़ता, उसके पहले ही इस आदमी ने आंखें बंद कर लीं। हम तो चकित हुए। हुजबिरी ने उससे पूछा कि तुमने आंखें क्यों बंद कर लीं ? उसने कहा कि मुझे एक खयाल आया कि जरा आंख बंद करके पुल पार करके देखें, कैसा होता है ! ऐसे ही मौज आ गई कि जरा आंख बंद करके चलकर देखें।
हुबरी ने कहा कि घड़ा रखवाया था तेरे लिए। लेकिन जैसा मैं समझता हूं कि तूने जिंदगीभर अवसर खोए हैं, तो जरूर तेरा मन कोई तरकीब निकाल लेगा और तू अवसर खो देगा। ऐसा मैं विचार करता था, वह ठीक हो गया । तूने तरकीब निकाल ली कि जरा आंख बंद करके देखें।
हमारा मन हमारी आदतों का जोड़ है। और हमने जो भी अब
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तक किया है, वह मन का यंत्रवत हिस्सा हो गया है। अगर आप एक तरफ असफल हुए हैं, तो आप दूसरी तरफ भी जाएंगे अपनी सारी असफलता की आदत को ले जाएंगे। और वहां भी असफल होकर सिद्ध करेंगे कि हमें कोई सफल कर ही नहीं सकता। | असफलता भी आपका सम्मान बन गई है।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जो आदमी असफल होता रहता है, वह सफलता से डरने लगता है, क्योंकि प्रतिष्ठा का सवाल है। वह लोगों से कहता रहता है, असफलता ही मेरा भाग्य है। सारी दुनिया
खिलाफ है। नियति मेरे विपरीत है, परमात्मा मेरे विपरीत काम कर रहा है ! यह वह इतनी दफे कह चुका होता है कि अब उसे डर लगता है कि कहीं मैं सफल न हो जाऊं। नहीं तो मेरे पुराने वक्तव्यों का क्या होगा! तो अगर सफलता हाथ में भी आती हो, तो वह चूक | जाएगा, छोड़ देगा; और फिर कहेगा कि देखो, नियति, भाग्य! मेरे को सफलता मिलने वाली ही नहीं है।
अपने ही दुश्मन बनकर हम जीते हैं। अपने मित्र बनकर जीने
है।
अर्जुन
इस सूत्र में अर्जुन ने अपने तरफ अपनी मित्रता बड़ी | साफ जाहिर की है। वह कृष्ण से हाथ जोड़कर कह रहा है कि मुझे पता नहीं है। मानता मैं हूं, ज्ञान मुझे नहीं है। आप मुझे बता दें। और जो भी उपाय हो, जो भी उपाय हो, जो मुझे मौजूं पड़ जाए, जिससे मेरा तालमेल बैठ जाए, ताकि मैं आपको जान सकूं और आपकी समग्रता को अनुभव कर सकूं।
आज इतना ही । फिर कल हम बात करेंगे।
लेकिन उठें न। पांच मिनट कीर्तन में सम्मिलित हों, फिर जाएं। आपका मन कहे भी कि चलो, चलकर देखें, तो भी नहीं। पांच मिनट बैठे रहें ।