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ॐ मृत्यु भी मैं हूं 8
बहुत बुद्धि हो तो ही वह सोच सकता है कि जो नहीं है, अगर होता यह भारत भी कभी धार्मिक था। यह धार्मिक तभी था, जब तो क्या होता। यह बहुत दूरगामी पहुंच है। जो मेरे पास नहीं है, | सामूहिक रूप से अमीर था। आज तो अगर किसी भी मुल्क के अगर मिल जाए तो क्या होगा, इसको समझने के लिए बहुत गहरी | धार्मिक होने की संभावना है, तो वह अमेरिका की है। पकड़ चाहिए जीवन के बाबत। .
गरीब आदमी व्यक्तिगत रूप से धार्मिक हो सकता है, सामूहिक गरीब तो बहुत बुद्धिमान हो, तो मुक्त हो सकता है; लेकिन रूप से धार्मिक नहीं हो सकता, क्योंकि जब शरीर की ही चीजें पूरी अमीर अगर बिलकुल बुद्ध हो, तो ही मुक्ति से बच सकता है। धन न होती हों, तो आत्मा की आकांक्षाओं को जगने का मौका नहीं भी अगर आपके पास है और फिर भी धन की पकड़ नहीं छूटती, मिलता। और जब नीचे तल की जरूरतें ही पकड़े रखती हों, तो तो आप नासमझ हैं। हद्द दर्जे के नासमझ हैं! क्योंकि जो है, उस | आकाश में उड़ने का अवसर नहीं होता। पर से पकड़ तो छूट ही जानी चाहिए।
धर्म आत्यंतिक विलास है, दि अल्टिमेट लक्जरी। क्योंकि इतनी __कृष्ण ने इसमें कहा कि राक्षसों में और यक्षों में मैं धनपति कुबेर | | ऊंची है बात, इतनी ऊंची है, इतनी शिखर की है बात कि जब नीचे
से सब जड़ें टूट जाएं और जमीन से सब संबंध अलग हो जाए और इसमें दो बातें खयाल में लें। एक तो यह कि राक्षस का अर्थ ही | | आदमी हल्का होकर आकाश में उड़ सके, जमीन की कोई पकड़ होता है, जिसकी आत्मा लोभ है, ग्रीड है। राक्षस कोई जाति नहीं | | न रहे जाए, तब इस आत्यंतिक शिखर को उपलब्ध होता है। है। राक्षस व्यक्तित्व है, ए टाइप आफ पर्सनैलिटी। जहां लोभ ही ___ कृष्ण की बात इस संदर्भ में देखने पर समझ में आएगी। वे कहते जिसकी आत्मा है, उस आदमी का नाम राक्षस है। जमीन पर सब | | हैं, राक्षसों में मैं कुबेर हूं। क्योंकि राक्षस जब तक कुबेर न हो जाएं, तरफ राक्षस हैं, बहुत तरह के राक्षस हैं।
| तब तक परमात्मा की तरफ उनका कोई झुकाव नहीं होता। सिर्फ कृष्ण कहते हैं कि अगर राक्षसों में तू मुझसे पूछता हो, तो मैं | | कुबेर ही झुक सकता है। इससे कम में झुकाव का कोई उपाय नहीं कोई छोटा-मोटा राक्षस नहीं हूं, खुद कुबेर हूं।
है। जब तक आपके ऊपर इतना न थोप दिया जाए कि उसके वजन लोभ है राक्षस की वृत्ति। कुबेर की हालत मिले, तो ही राक्षस | | में ही आपकी वासना मरने लगे; जब तक इतना आपके ऊपर न मुक्त हो सकता है लोभ से, नहीं तो नहीं हो सकता। अनंत धन गिर पड़े आसमान आपकी आकांक्षाओं की मांगों का, कि आप मिल जाए, तो ही धन की खोज बंद हो सकती है राक्षस की, नहीं उसके नीचे ऊब जाएं, तब तक...। तो बंद नहीं हो सकती। तो अगर इसे हम ठीक से समझें तो इसका नहीं तो धन के इर्द-गिर्द आपका लोभ आपको घुमाता ही रहेगा, अर्थ हुआ कि राक्षसों में एक कुबेर ही है, जो धन की पकड़ के बाहर चाहे कितने ही कष्ट उठाने पड़ें। जब तक धन का होना ही कष्ट न है, लोभ के बाहर है।
हो जाए, तब तक आप धन से ऊपर नहीं उठ पाएंगे। धन के कारण . लोभ के बाहर होना हो, तो दो उपाय हैं। या तो इतनी सजगता आप कितने ही कष्ट उठा सकते हैं। और इतनी बुद्धि और इतनी प्रज्ञा बढ़े कि आप जहां हैं, वहीं से लोभ ___ मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन भारत आया। जब उसने कश्मीर आपको व्यर्थ दिखाई पड़ने लगे, एक। दूसरा रास्ता यह है कि | में प्रवेश किया, तो उसे बड़ी भूख लगी थी और बड़ी प्यास लगी आपके लोभ की इतनी अनंत तृप्ति हो जाए; जितना लोभ मांगता | थी। और पहाड़ी रास्ता था और उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था, है, उससे ज्यादा आपको मिल जाए; आप मांग न सकें, इतना मिल | कोई आदमी नहीं मिल रहा था। और फिर उसे एक वृक्ष के नीचे जाए; आपकी मांग छोटी पड़ जाए, पूर्ति ज्यादा हो जाए; कुबेर की | | एक गांव के बाहर एक आदमी फल बेचता हुआ दिखाई पड़ा। लाल स्थिति पैदा हो जाए, तो आप लोभ के बाहर हो सकते हैं। सुर्ख फल थे; नसरुद्दीन ने कभी देखे नहीं थे। उसके मुल्क में होते
गरीब समाज सामूहिक रूप से कभी धार्मिक नहीं होता, | भी नहीं थे। व्यक्तिगत रूप से कोई धार्मिक हो सकता है। अमीर समाज उसने एक रुपया निकालकर उस आदमी को दिया कि कुछ फल सामूहिक रूप से धार्मिक होने लगता है। और अगर समाज सच में | मुझे दे दो। मैं बहुत प्यासा और भूखा हूं। उस आदमी ने पूरी ही ही अमीर हो जाए, तो समाज की मौलिक वृत्ति धार्मिक होनी शुरू टोकरी उसे उठाकर दे दी। नसरुद्दीन तो बहुत आनंदित हुआ। सोचा हो जाती है।
भी नहीं था कि एक रुपए में इतने फल मिल जाएंगे।
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