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ॐ मृत्यु भी मैं हूं
तब एक सांस कम हो गई।
ऐसा युद्ध मुश्किल से होता है। युद्ध में बंटाव साफ होता है। तो जन्म का क्षण मृत्यु का क्षण भी है। लेकिन उन्हीं के लिए जो | एक तरफ दुश्मन होते हैं, एक तरफ मित्र होते हैं। लेकिन यह गहरे देख पाएं। जो इतना गहरा देख पाएं कि सत्तर साल बाद या महाभारत का युद्ध अनूठा है। इसमें बंटाव साफ नहीं है; विभाजन सौ साल बाद जो घटना घटेगी, वह आज भी उन्हें झलक में आ निश्चित नहीं है। कृष्ण एक तरफ से लड़ रहे हैं, उनकी फौजें दूसरी जाए। गहरे देखने का अर्थ है, जिनकी दृष्टि पारदर्शी है। जो जन्म तरफ से लड़ रही हैं ! उस तरफ भीष्म हैं, द्रोण हैं, जिनके चरणों में में भी गहरा देख सकें, उन्हें मृत्यु का क्षण भी दिखाई पड़ जाएगा। बैठकर सब सीखा है। जिनसे सीखी है कला, वही कला उनकी ___ मृत्यु विपरीत नहीं है, जन्म की सहगामिनी है। ऐसा समझें कि मृत्यु के लिए काम में लानी है।
जैसे बायां और दायां पैर हैं, और आप एक पैर से न चल पाएंगे, लेकिन एक अर्थ में महाभारत का युद्ध बड़ा प्रतीक है। मैंने दोनों पैर से ही चलना हो सकेगा। ठीक वैसे ही जन्म और मृत्यु एक आपसे कहा कि दुनिया में ऐसा युद्ध नहीं होता। बंटाव साफ होता ही ऊर्जा, एक ही प्राण-ऊर्जा के दो पैर हैं। और एक से चलना न है। इस तरफ मित्र होते हैं, उस तरफ शत्रु होते हैं। लेकिन आपसे हो पाएगा।
दूसरी बात भी मैं कहता हूं। हमारी आकांक्षा होती है कि जन्म तो हो और मृत्यु न हो। वह सभी युद्ध महाभारत जैसे होते हैं, हमें पता हो या न पता हो। हमारी आकांक्षा मूढ़ है, क्योंकि जीवन के सत्य के विपरीत है। जो | | बंटाव झूठा है और ऊपरी है। भीतर से तो हमारे मित्र ही उस तरफ भी चाहता है कि जन्म हो और मृत्यु न हो, उसे पता ही नहीं कि वह | | होते हैं और इस तरफ भी होते हैं। हमारे ही संबंधी उस तरफ होते एक ही चीज से बचना चाहता है और उसी चीज को पाना भी चाहता हैं, हमारे ही संबंधी इस तरफ होते हैं। महाभारत में इस झूठे बंटाव है। जन्म और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। और जन्म | को बिलकुल ही तोड़ डाला है। सभी युद्ध ऐसे हैं। असंभव है, जिस दिन मृत्यु असंभव हो जाए। जिस दिन हम मृत्यु आज पाकिस्तान और हिंदुस्तान लड़े, तो आज साफ दुश्मन का से बच सकेंगे, उस दिन हम जन्म से भी बच जाएंगे। जिस दिन हम | बंटाव है। लेकिन कल! कल यह सीमा नहीं थी। और कल अगर मृत्यु को काट डालेंगे, उस दिन जन्म भी कट जाएगा। वे दो नहीं हैं।। । कराची बर्बाद होता तो बंबई उतना ही दुखी होता, जितना बंबई बर्बाद
अभी अर्जुन का मन मृत्यु से बहुत आच्छादित और प्रभावित है। होता तो कराची दुखी होता। लेकिन आज बंटाव हमने साफ कर कृष्ण ने उसे कहा कि मैं जीवन का देवता हूं, विष्णु हूं। शायद उसके लिया है। तो आज अगर कराची बर्बाद हो, तो हम खुश भी हो सकते हृदय पर चोट भी न पड़ी हो।
हैं। और बंबई बर्बाद हो, तो कराची में खुशियां मनाई जा सकती हैं। एक आदमी मर रहा हो, उससे जीवन की बात करने का कोई भी | | दुनिया का कोई भी युद्ध गहरे में देखे जाने पर महाभारत जैसा अभिप्राय नहीं है। उसके चारों ओर मौत खड़ी है। मौत तो सभी के ही है। दोनों तरफ आदमी ही खड़े हैं। और आदमी एक परिवार चारों ओर खड़ी है, लेकिन सभी अपने-अपने जीवन में इतने व्यस्त | है। संबंध दिखाई पड़ते हों या न दिखाई पड़ते हों; क्रोध में और हैं कि उसका दर्शन नहीं होता। लेकिन जो खाट पर पड़ा है और वैमनस्य में और ईर्ष्या में और हिंसा में, संबंध धुंधले हो गए हों, मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा है, उसे जरा-सी भी द्वार पर आहट होती | | धुएं में ढंक गए हों, दूसरी बात है। लेकिन जिनके पास थोड़ी-सी है, तो लगता है कि यम के दूत ने दस्तक दी। उसे चारों ओर मृत्यु साफ आंखें हैं, उन्हें हमेशा दिखाई पड़ता है कि सभी युद्ध ही दिखाई पड़ती है।
महाभारत जैसे युद्ध हैं। __ अर्जुन के सामने भी चारों तरफ मृत्यु है, प्रियजनों की, अपनों ___ अर्जुन परेशान है। मौत चारों तरफ दिखाई पड़ती है। जीतने में
की, सगे-संबंधियों की। यह युद्ध बहुत अजीब था। इसमें दोनों | भी कोई अर्थ नहीं मालूम पड़ता। जीतकर भी हार ही हो जाएगी। तरफ मित्र ही बंटकर खड़े थे। कल जिनके साथ खेले थे, कल क्योंकि अर्जन कहता है कि जिनके लिए हम जीतते हैं. अगर वे ही जिनको प्रेम किया था. कल जिनके लिए प्राण दे सकते थे. आज नहीं बचे, तो जीत का भी क्या होगा? जीतने से जिनको खुशी उनके प्राण लेने का अवसर था; उनके ही प्राण लेने का अवसर था। | होगी, वे ही मर जाएंगे। हम अकेले अगर जीतकर भी खड़े हो गए, गुरु और शिष्य बंट गए थे। मित्र और मित्र बंट गए थे। परिवार बंट | तो वह जीत किसके समक्ष होगी? किसके लिए होगी? वह गए थे! कोई इस तरफ था, कोई उस तरफ था।
| अर्थहीन होगी।
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