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ॐ गीता दर्शन भाग-500
है। अब आइएगा, बराबर पहचान लूंगा।
| न्यूटन को अलग कर लें, गैलीलियो को अलग कर लें, तो न्यूटन फिर दूसरे दिन हुआ वही। लेकिन इस बार कुत्ता नहीं आया, एक और गैलीलियो के हटते ही आइंस्टीन जमीन पर गिर जाएगा। कोढी आ गया। औ
हा, दूर रहना! यहां बाबा का आइंस्टीन खड़ा नहीं हो सकता अपने पैरों पर। भोजन रखा है; अपवित्र मत कर देना! दूर रह, छाया मत डाल | विज्ञान एक परंपरा है, एक ट्रेडीशन है। और मजे की बात है कि देना! लेकिन वह कोढ़ी सुनता ही नहीं है, पास आए चला जाता है। धर्म को हम परंपरा कहते हैं, विज्ञान को परंपरा नहीं कहते। विज्ञान तो वह अपनी थाली लेकर भागा और कोढ़ी उसके पीछे भाग रहा | परंपरा है, एक ट्रेडीशन है, एक कलेक्टिव एफर्ट। बहुत लोगों का है। और वह थाली लेकर भाग रहा है साईं बाबा की तरफ। उसमें हाथ है। अगर उसमें से एक ईंट खींच लें, तो ऊपर का शिखर ___ जब वह भीतर पहुंचा, तो देखा, वहां साईं बाबा नहीं हैं। पीछे नीचे गिर जाएगा। लौटकर देखा, तो कोढी की जगह साईं बाबा खडे हैं। और साईं लेकिन धर्म परंपरा नहीं है, धर्म वैयक्तिक अनुभव है। अगर बाबा ने कहा, लेकिन तू पहचानता ही नहीं है। उसने कहा, अतीत के सारे महापुरुष भी धर्म के विलीन हो जाएं और एक भी नया-नया रोज-रोज अभ्यास करवाते हैं! आज पक्का कर लिया न हुए हों, तो भी आप धार्मिक हो सकते हैं इसी वक्त। क्योंकि था कि कुत्ते में देखेंगे, और आप कोढ़ी होकर आ गए! कल आइए। | धार्मिक होना निजी अनुभव है। किसने कहा है और नहीं कहा है, ___ अभ्यास धर्म नहीं है। चेष्टा करके कोई बात दिखाई पड़ने लगे, | अगर वे सब खो जाएं, अगर दुनिया में सारे धर्म-ग्रंथ नष्ट हो जाएं, उसका कोई मूल्य नहीं। दिखाई पड़े।
तो भी धर्म नष्ट नहीं होगा। यह अर्जुन चेष्टा कर रहा है। व्यास ने कहा है, देवल ने कहा | यह मजे की बात है। अगर विज्ञान की एक किताब भी खो जाए, है; इसने कहा है, उसने कहा है। और फिर आप भी कहते हैं, तो | तो बाकी सब किताबें अस्तव्यस्त हो जाएंगी। और सब किताबें खो मैं मानता हूं, आप जो कहते हैं, वह सत्य ही कहते हैं। यह चेष्टा जाएं, तो विज्ञान बिलकुल नष्ट हो जाएगा। क्योंकि विज्ञान निर्भर है, यह अभ्यास है! यह प्रयत्न है मान लेने का कि कृष्ण भगवान करता है दूसरों के वक्तव्यों पर। उसकी एक श्रृंखला है; कड़ी से हैं। लेकिन भीतर कोई स्वर बजे चला जा रहा है कि नहीं। उसी को कड़ी जुड़ी है। अगर पीछे की कड़ी खोती हैं, तो यह कड़ी निर्मित दबाने के लिए सब उपाय हैं।
नहीं हो सकती। __ आदमी की यह जो दोहरी व्यवस्था है, डबल बाइंड, यह बड़ी आप सोचते हैं, अगर साइकिल न बनी हो दुनिया में, तो हवाई जटिल है, यह गांठ बड़ी गहरी है। इसलिए ऊपर से आप कहते हैं | | जहाज नहीं बन सकता। अगर बैलगाड़ी न बनी हो, तो चांद पर कि मैं बहुत प्रेम करता है, और भीतर झांककर देखेंगे, तो प्रेम का | | पहुंचने का कोई उपाय नहीं है। हालांकि बैलगाड़ी से कोई चांद पर कोई पता नहीं। ऊपर से कहते हैं, मेरी श्रद्धा अपार है। और भीतर | नहीं पहुंचता। लेकिन बैलगाड़ी अगर न बनी होती, तो चांद पर देखेंगे, तो उतनी ही अपार अश्रद्धा मौजूद है। ऊपर से कुछ, भीतर पहुंचने का कोई भी उपाय नहीं है। जिसने बैलगाड़ी बनाई थी, वह से कुछ! हर आदमी दो में बंटा है।
भी चांद पर पहुंचाने में उतना ही अनिवार्य अंग है, जितना चांद पर __ और जब तक आदमी दो में बंटा है, तब तक किसी भी स्थिति उतरने वाला आदमी। में भगवत्ता को पहचानना संभव नहीं है। जब आदमी के भीतर का लेकिन धर्म की बात बिलकुल अलग है। अगर महावीर न हों, जोड़ यह दो का समाप्त हो जाता है और एक ही पैदा होता है। जब बुद्ध न हों, कृष्ण न हों, राम न हों, कोई अंतर नहीं पड़ता। कोई
आदमी के भीतर एक निर्मित होता है, तब भगवत्ता को कहीं भी | अंतर नहीं पड़ता। आप चाहें तो उनके बिना धार्मिक हो सकते हैं। पहचान लेना-पहचान लेना कहना ठीक नहीं, तब भगवत्ता को क्योंकि धार्मिक होना निजी सत्य का साक्षात्कार है। उसका कहीं भी न पहचानना असंभव है। वह सब जगह मौजूद है। सब परंपरागत सत्य से कुछ लेना-देना नहीं है। जगह मौजूद है। सब जगह मौजूद है। फिर ऐसा नहीं है कि उसे यह अर्जुन अभी भी जो बात कर रहा है, परंपरा की बात कर रहा देखना पड़े, और फिर ऐसा भी नहीं है कि गवाहियां खोजनी पड़ें। | है। अभी तक इसे निजी कोई बोध नहीं है।
यहां एक मजे की बात है और वह यह कि अगर विज्ञान का | परमात्मा सामने खड़ा हो, और कैसी फीकी-फीकी बातें अर्जुन अतीत खो जाए, तो विज्ञान का सारा भवन गिर जाए। अगर हम कर रहा है! कृष्ण के सामने क्या है अर्थ व्यास का? कृष्ण के सामने