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8 गीता दर्शन भाग-500
नाम, इससे कोई भेद नहीं पड़ता। एक छोटी प्रक्रिया आपसे कहता | या मुसलमानों को आपने नमाज पढ़ते देखा हो, तो जिस भांति हूं, जिससे आप इस अंडे के बाहर आ सकते हैं।
घुटने मोड़कर वे बैठते हैं, वैसे घुटने मोड़कर बैठ जाएं। बच्चे के अगर आपने चित्र देखे हों बच्चों के उनके मां के पेट में, गर्भ | | घुटने ठीक उसी तरह मुड़े होते हैं मां के गर्भ में। आंख बंद कर लें, में। मां के पेट में बच्चा जिस हालत में होता है, गर्भ में, उस | शरीर को ढीला छोड़ दें और श्वास को बिलकुल शिथिल छोड़ दें, अवस्था में मनोवैज्ञानिक कहते हैं, योग की गहरी खोज कहती है, | रिलैक्स छोड़ दें, ताकि श्वास जितनी धीमी और जितनी आहिस्ता कि मां के पेट में जब बच्चा होता है जिस पोश्चर में, जिस आसन आए-जाए, उतना अच्छा। श्वास जैसे न्यून हो जाए, शांत हो जाए। में, उस समय बच्चे के पास न्यूनतम मन होता है, न के बराबर मन श्वास को दबाकर शांत नहीं किया जा सकता है। अगर आप होता है। कह सकते हैं, होता ही नहीं। और बच्चे की चेतना रोकेंगे, तो श्वास तेजी से चलने लगेगी। रोकें मत, सिर्फ ढीला मस्तिष्क में नहीं होती मां के पेट में। और न ही बच्चे की चेतना छोड़ दें। हृदय में होती है। शायद आपको पता न हो कि मां के पेट में बच्चे आंख बंद कर लें, और अपनी चेतना को भीतर नाभि के पास का हृदय नहीं धड़कता। नौ महीने बच्चा बिना हृदय धड़कने के | | ले आएं। सिर से उतारे हृदय पर, हृदय से उतारें नाभि पर। नाभि होता है।
के पास चेतना को ले जाएं। श्वास का हल्का-सा कंपन पेट को इसलिए एक बात और समझ लेना कि हृदय की धड़कन से | | नीचे-ऊपर करता रहेगा। आप अपने ध्यान को आंख बंद करके जीवन का कोई संबंध नहीं, क्योंकि बच्चा बिना हृदय की धड़कन | | वहीं ले आएं, जहां नाभि कंपित हो रही है। श्वास के धक्के से पेट के नौ महीने जिंदा रहता है। जीवन और गहरी बात है। ऊपर-नीचे हो रहा है, आंख बंद करके ध्यान को वहीं ले आएं।
हमसे अगर कोई पूछे कि आपकी चेतना कहां है, तो सिर पर | | शरीर को ढीला छोड़ते जाएं। थोड़ी ही देर में शरीर आपका आगे हाथ जाएगा। चेतना जब मन में केंद्रित होती है, तो सिर केंद्र हो | | झुकेगा और सिर जाकर जमीन से लग जाएगा। उसे छोड़ दें और जाता है। जब प्रेम में केंद्रित होती है, भाव में केंद्रित होती है, तो | झुक जाने दें। हृदय केंद्र हो जाता है। इसलिए प्रेमी हृदय पर हाथ रखेगा। और जब सिर आपका जमीन से लग जाएगा, तब आप ठीक उस
त को सुलझाने वाला आदमी अगर गणित में उलझ जाए, तो हालत में आ गए, जिस हालत में बच्चा मां के पेट में होता है। शांत सिर को खुजलाएगा, हृदय पर हाथ नहीं रखेगा। हाथ जाएगा ही | होने के लिए इससे ज्यादा कीमती आसन जगत में कोई भी नहीं है। नहीं हृदय पर। और प्रेमी अगर प्रेम में पड़ा हो और सिर पर हाथ | | आसन ऐसा हो जाए, जैसा गर्भ में बच्चे का होता है; और आपका रखे, तो बहुत बेहूदा मालूम पड़ेगा। सिर से कोई संबंध नहीं है। । ध्यान नाभि पर चला जाए। बच्चे का ध्यान और चेतना नाभि में
चेतना जब भाव में होती है, तो हृदय केंद्र होता है। और चेतना | होती है। आपका ध्यान भी नाभि पर चला जाए। जब विचार में होती है, तो मस्तिष्क केंद्र होता है। लेकिन मस्तिष्क अनेक बार ध्यान उचट जाएगा, कहीं कोई आवाज होगी, ध्यान बहत बाद में विकसित होता है। और हृदय भी नौ महीने के बाद चला जाएगा। कहीं कोई बोल देगा कुछ, ध्यान चला जाएगा। नहीं धड़कता है। उसके भी पहले चेतना एक केंद्र पर होती है, वह नाभि कहीं कुछ होगा, तो भीतर कोई विचार आ जाएगा, और ध्यान हट है। बच्चा मां से नाभि से जुड़ा होता है। जीवन का पहला अनुभव | जाएगा। उससे लड़ें मत। अगर ध्यान हट जाए, चिंता मत करें। बच्चे को नाभि पर होता है।
जैसे ही खयाल में आए कि ध्यान हट गया, वापस अपने ध्यान को जिन लोगों को मन के पार जाना है. उन्हें हृदय. मस्तिष्क दोनों नाभि पर ले आएं। किसी कलह में न पड़ें, किसी कांफ्लिक्ट में न से उतरकर नाभि के पास वापस लौटना होता है। अगर आप फिर | पडें कि यह मन मेरा क्यों हटा। यह मन बडा चंचल है. यह क्यों से अपनी चेतना को नाभि के पास अनुभव कर सकें, तो आपका | हटा! नहीं हटना चाहिए। इस सब व्यर्थ की बात में मत पड़ें। जब मन तत्क्षण ठहर जाएगा।
भी खयाल आ जाए, वापस नाभि पर अपने ध्यान को ले आएं। तो इस ध्यान की प्रक्रिया के लिए, जिसको मैं निश्चल ध्यान योग । और चालीस मिनट कम से कम-ज्यादा कितनी भी देर कोई की तरफ एक विधि कहता हूं, दो बातें ध्यान में रखने जैसी जरूरी रह सकता है-ठीक ऐसे बच्चे की हालत में मां के गर्भ में पड़े रहें। हैं। जैसा कि सूफी फकीरों को अगर आपने देखा हो प्रार्थना करते, संभावना तो यह है कि दो-चार-आठ दिन के प्रयोग में ही आपको