________________
ईश्वर अर्थात ऐश्वर्य
होती हो, और परमात्मा जरा भी उत्सुक नहीं है आदमी के भीतर आने को, तो आप परमात्मा से मिल भी जाते, तो भी तृप्ति न होती, क्योंकि यह प्रेम एकतरफा होता ।
नहीं, जितने आतुर आप हैं, उतना ही आतुर परमात्मा भी है। सागर भी उतना ही आतुर है सरिता से मिलने को, जितनी सरिता आतुर है सागर से मिलने को। ये प्रेम की धाराएं दोनों तरफ से प्रवाहित हैं।
वह जो परमात्मा के मिलने की शक्ति है, उस शक्ति का नाम यहां योगशक्ति है।
इसके तो बहुत अर्थ होंगे। इससे तो पूरा एक जीवन-दर्शन विकसित होगा । इसका अर्थ यह हुआ कि जब आप परमात्मा की तरफ चलते हैं....। सूफी फकीरों में कहावत है कि उसे खोजने तब तक कोई नहीं निकलता, जब तक वह खुद ही उसे खोजने न निकल आया हो। कहावत है कि परमात्मा की तरफ तब तक कोई नहीं चलता, जब तक कि परमात्मा ने ही साधक की तरफ चलना शुरू न कर दिया हो। कहावत है कि प्यास ही नहीं जगती, जब तक उसकी पुकार न गई हो।
सूफी फकीर हुआ झुन्नून, इजिप्त में हुआ। कहा है झुन्नून ने अपने संस्मरणों में कि जब मेरी मुलाकात हुई उस परम शक्ति से— प्रतीक कथा है— कि जब मैं प्रभु से मिला, तो मैंने प्रभु से कहा कि कितना तुझे मैंने खोजा ! तो प्रभु मुस्कुराए और उन्होंने कहा कि क्या तू सोचता है, तूने ही मुझे खोजा ? काश, तुझे पता हो कि कितना मैंने तुझे खोजा ! और परमात्म शक्ति ने झुनून को कहा कि तूने मुझे खोजना ही तब शुरू किया, जब मैं तुझे खोजना शुरू कर चुका था। क्योंकि अगर मैं ही तुझे खोजने न निकलूं, तो तू मुझे खोजने में कभी समर्थ न हो सकेगा !
अज्ञानी कैसे खोज पाएगा? नासमझ कैसे खोज पाएंगे ? जिन्हें कुछ भी पता नहीं है, जिन्हें यह भी पता नहीं है कि वे खुद कौन हैं, वे कैसे खोज पाएंगे? अगर यह परम विराट ऊर्जा भी साथ न दे रही हो इस खोज में, अगर उसका भी हाथ न हो इसमें, अगर उसका भी सहारा न हो, अगर उसका भी इशारा न हो, तो यह खोज न हो पाएगी।
इसलिए धर्म व्यक्ति से परमात्मा की तरफ संबंध का नाम ही नहीं है। धर्म व्यक्ति से परमात्मा की तरफ और परमात्मा से व्यक्ति की तरफ संवाद, मिलन, आलिंगन का संबंध है। यह खोज इकतरफा नहीं है।
लेकिन कृष्ण कहते हैं, तत्व से जो इसे जान ले कि परमात्मा भी खोज रहा है।
39
वह भी खोज रहा है। विराट भी आपको पुकार रहा है। सागर ने भी आह्वान दिया है, आओ! तो बूंद की शक्ति हजार गुना हो जाती है। सामर्थ्य बढ़ जाता है, साहस बढ़ जाता है, यात्रा बड़ी सुगम हो जाती है। यात्रा फिर यात्रा ही नहीं रह जाती है, बहुत हलकी हो जाती है, निर्भार हो जाती है।
अगर विराट भी मुझे खोज रहा है, तो फिर मिलन सुनिश्चित है। अगर मैं ही उसे खोज रहा हूं, तो मिलन सुनिश्चित नहीं हो सकता । मैं क्या खोज पाऊंगा उसको! मेरी सामर्थ्य क्या ? मेरी शक्ति कितनी? लेकिन अगर वह भी मुझे खोज रहा है, तो मैं कितना ही भटकूं, और कितना ही भूलूं, और कितना ही चूकूं, कुछ भी हो जाए, मिलन होकर रहेगा।
परमात्मा की तरफ से योगशक्ति का अर्थ है, परमात्मा की हमसे मिलने की शक्ति । निश्चित ही, हम जिस दिन परमात्मा को पा लेंगे, उस दिन हम कहेंगे कि पा लिया। लेकिन परमात्मा तो अभी भी जानता है कि उसने हमें पाया हुआ है।
बुद्धको ज्ञान हुआ, तो बुद्ध को देवताओं ने पूछा कि तुम्हें क्या मिला ? बुद्ध ने कहा, मुझे कुछ मिला नहीं। जो मुझे मिला ही हुआ था, केवल उसका पता चला। जो मेरे पास था जो संपत्ति ही थी, मेरे ही भीतर, लेकिन मुझे जिसका कोई स्मरण न था, | उसकी स्मृति आई तो मुझे कुछ मिला नहीं है, जो मिला ही हुआ उसका मुझे पता चला।
था,
परमात्मा से जिस दिन हमारा मिलन होगा, हमें पता चलेगा कि मिलन हुआ। परमात्मा को पता चलने का कोई कारण नहीं कि मिलन हुआ; मिलन हुआ ही हुआ है। वह हमारे चारों तरफ मौजूद है। बाहर-भीतर, रोएं - रोएं में, श्वास- श्वास में वह मौजूद है। हम | उसमें मौजूद नहीं हैं। वह हममें मौजूद है; हम उसमें मौजूद नहीं हैं।
जैसे अंधा आदमी खड़ा हो सूरज की रोशनी में। बरसती हो रोशनी चारों तरफ | रोए रोएं पर चोट करती हो कि द्वार खोलो। और उस आदमी को कोई भी पता न हो कि सूरज है। और फिर वह आदमी आंख खोले, और तब वह पाए कि चारों तरफ सूरज है। आंख का मिलन हुआ सूरज से। सूरज तो तब भी मिल रहा था आंख से, भला आंख बंद रही हो। सूरज तो तब भी द्वार पर ही खड़ा था। सूरज के लिए कोई नई घटना नहीं घट रही है। लेकिन सूरज भी दस्तक दे रहा था; वह भी द्वार खटखटा रहा था।