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गीता दर्शन भाग-500
क्षण, एक तीर की तरह चुभ जाए चेतना में कोई घड़ी सामने खड़ी | बुद्ध एक गांव से गुजरते हैं, कुछ लोग गालियां देते हैं। और है, वह इसे खो देगी। हम ऐसा अपने को धोखा देते हैं। बुद्ध उनसे कहते हैं कि अगर तुम्हारी बात पूरी हो गई हो, तो मैं
अमूढ़ता मैं हूं, कृष्ण कहते हैं। उसका अर्थ है, जागरूकता मैं जाऊ! उनमें से एक आदमी पूछता है, आप पागल तो नहीं हैं! हूं। जब भी कोई जागता है भीतर, तभी मैं उपलब्ध हो जाता हूं। जब क्योंकि हमने बातें नहीं की हैं, गालियां दी हैं। बुद्ध कहते हैं, अगर भी कोई जागता है भीतर, तब वह जागा हुआ व्यक्ति मेरा ही भाग पूरी न हुई हो बातचीत, तो जब मैं लौटूंगा, तब थोड़ा ज्यादा समय हो जाता है।
लेकर यहां रुक जाऊंगा। लेकिन अभी मुझे दूसरे गांव जल्दी ये तीन शब्द खयाल में ले लें, निश्चय करने की शक्ति, | पहुंचना है। तत्वज्ञान, अमूढ़ता मैं हूं।
निश्चित ही, वे दो तरह की भाषाएं बोल रहे हैं। उस गांव के क्षमा, सत्य, इंद्रियों को वश में करना-दम, और मन का | | लोग गालियां समझ सकते हैं; गालियों के उत्तर में गालियां दी निग्रह-शम, तथा सुख-दुख, उत्पत्ति-प्रलय एवं भय और अभय | | जाएं, यह भी समझ सकते हैं। गालियां क्षमा कर दी जाएं; बुद्ध कह भी मैं हूं।
दें कि जाओ मैंने माफ किया तुम्हें, यह भी समझ सकते हैं। लेकिन इन सूत्रों को भी थोड़ा-सा समझ लें।
बुद्ध कहते हैं, तुम्हारी बात अगर पूरी हो गई हो, तो मैं जाऊं! न क्षमा। थोड़ा कठिन है। कठिन इसलिए कि हम क्षमा से जो अर्थ क्रोध है, न क्षमा है। गालियां जैसे दी ही नहीं गईं। और अगर दी लेते हैं, वह कृष्ण का अर्थ नहीं है। हो भी नहीं सकता। असल में भी गई हैं, तो कम से कम ली तो गई ही नहीं हैं। हमारी और कृष्ण की भाषा एक नहीं हो सकती। और जब भी हम एक आदमी पूछता है, लेकिन हम ऐसे न जाने देंगे। हम जानना कष्ण को अपनी भाषा में अनवादित करते हैं संस्कत से हिंदी में चाहते हैं कि पागल आप हैं कि पागल हम हैं? हम गालियां दे रहे नहीं-कृष्ण की भाषा को अपनी भाषा में जब हम अनुवादित करते | हैं, इनका उत्तर चाहिए! बुद्ध ने कहा, अगर तुम्हें इनका उत्तर चाहिए हैं, तब बुनियादी भूलें हो जाती हैं। जैसे क्षमा; अगर हम पूछे अपने था, तो तुम्हें दस वर्ष पहले आना था। तब मैं तुम्हें उत्तर दे सकता से कि क्षमा का क्या अर्थ है? तो साफ है अर्थ कि अगर किसी पर | था। लेकिन जो उत्तर दे सकता था, वह तो समय हुआ, मर गया। क्रोध आ जाए तो उसे क्षमा कर देना।
तुम गालियां देते हो, यह तुम्हारा काम है, लेकिन मैंने तो बहुत • लेकिन कृष्ण की भाषा में क्षमा का यह अर्थ नहीं होता। कृष्ण समय हुआ जब से गालियां लेना ही बंद कर दीं। देने की जिम्मेवारी की भाषा में क्षमा का अर्थ होता है, क्रोध का न आना। हमारी भाषा तुम्हारी है, लेकिन अगर मैं न लूं, तो तुम क्या करोगे? कम से कम में अर्थ होता है, क्रोध का आना और क्षमा करना। कृष्ण की भाषा इतनी स्वतंत्रता तो मेरी है कि मैं न लूं। और अब मैं व्यर्थ चीजें नहीं में अर्थ होता है, क्रोध का न आना, क्रोध का अभाव। हमारा अर्थ लेता। तो मैं जाऊं, अगर तुम्हारी बात पूरी हो गई हो! है, क्रोध को लीपना-पोतना।
पर लोगों को बड़ी मुश्किल है। बुद्ध गालियां दे दें, तो भी लोग मुझे आप पर क्रोध आ गया। पीछे पछतावा आता है; फिर मैं | घर शांति से लौट जाएं। बुद्ध क्षमा कर दें और कहें कि नासमझ हो क्षमा मांग लेता है। तो क्रोध से जो भल हई थी. उसे मैं पोंछ देता तम. तम्हें कछ पता नहीं. तो भी लोग घर शांति से लौट जाएं। हूं। एक लकीर गलत पड़ गई थी, उसे काट देता हूं। लेकिन क्रोध | | लेकिन अब इन लोगों की नींद हराम हो जाएगी, क्योंकि यह बुद्ध हो गया। और यह जो क्षमा है, यह केवल क्रोध को पोंछने का उपाय | इनको अधर में लटका हुआ छोड़ गए। इन्होंने गाली दी थी; नदी करती है; नकारात्मक है, निगेटिव है। इस क्षमा का बहुत उपयोग | के एक तरफ से सेतु बनाया था; दूसरा किनारा ही न मिला! इन्होंने नहीं है। यह तो हम करते रहते हैं। चलता रहता है। अगर इसी क्षमा | तीर छोड़ा था, निशाना ठीक जगह लगे; हर्ज नहीं, गलत जगह में अनुभव होता हो परमात्मा का, तो हम सबको हो गया होता। | लगे; लगे तो। निशाना लगा ही नहीं। और तीर चलता ही चला
कृष्ण का क्षमा से अर्थ है, जहां क्रोध पैदा नहीं होता। जहां क्रोध | जाए और निशाना लगे ही नहीं, तो जैसी मजबूरी में, जैसी तकलीफ जन्मता नहीं, जहां क्रोध की घड़ी मौजूद होती है और भीतर क्रोध | में तीर पड़ जाए, वैसी तकलीफ में ये पड़ जाएंगे। का कोई रिएक्शन, कोई प्रतिक्रिया पैदा नहीं होती, कोई प्रतिकर्म | | तो बुद्ध उन्हें तकलीफ में देखकर कहते हैं कि तुम बड़ी तकलीफ पैदा नहीं होता।
| में पड़ गए मालूम पड़ते हो। तुम्हारी सूझ-बूझ खो गई, तो मैं तुम्हें