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ॐ ईश्वर अर्थात ऐश्वर्य
लगनी शुरू होती है। हम छोटे पड़ जाते हैं, हम नीचे हो जाते हैं। हो जाता है। चाहे कोई एक संगीतज्ञ अपने संगीत की ऊंचाई को
तो हम पत्थर की मूर्ति पूज सकते हैं, लेकिन जीवित बुद्ध को हम | छूता हो। और चाहे कोई एक चित्रकार अपनी कला की अंतिम पत्थर मारेंगे ही। फिर हम मरे हुए जीसस के आस-पास बड़े-बड़े | सीमा को स्पर्श करता हो। चाहे कोई बद्ध अपने मौन में डूबता हो। चर्च और बड़े कैथेड्रल खड़े कर सकते हैं, लेकिन जीसस को तो चाहे कोई भी हो दिशा, जहां भी अभिजात्य है. जहां भी जीवन हम सूली देंगे ही। जीसस में पहचानना तो तभी संभव है, जब हम | किसी अभिजात्य को छूता है, वहीं परमात्मा अपनी सघनता में कृष्ण के इस सूत्र को समझ जाएं, कि जो व्यक्ति तत्व से मेरे परम | प्रकट होता है और पारदर्शी हो जाता है, ट्रांसपैरेंट हो जाता है। ऐश्वर्य को पहचानता है!
नीचे भी वही है; हमारे पैरों के नीचे भी जो जमीन है, वहां भी वही मान लेना परंपरा से, तत्व से पहचानना नहीं है। मान लेना | है; लेकिन वहां उसे देखना बहुत मुश्किल होगा। वहां हम मान भी सुनकर, संस्कार से, तात्विक पहचान नहीं है। क्योंकि वह पहचान | लें, तो भी देखना मुश्किल होगा। आसान होगा कि हम आंखें उठाएं हमारी क्षणभर में डगमगा जाती है। और सबसे ज्यादा वहां | और आकाश के तारों की विभूति में उसे देखें। वहां आसान होगा। डगमगाती है, जहां परमात्मा का ऐश्वर्य प्रकट होता है।
लेकिन हमें कठिनाई है। हम पैर के नीचे की जमीन में मान लें, कृष्ण को आज भगवान मान लेना बहुत आसान है। कृष्ण की लेकिन आकाश के तारों में मानना बहुत मुश्किल हो जाता है। जो मौजूदगी में भगवान मानना बहुत कठिन था। कृष्ण की गैर-मौजूदगी | | भी हमसे ऊपर है, उसे मानना बहुत मुश्किल हो जाता है। जो हमसे में भगवान मान लेने में कोई अड़चन नहीं है, क्योंकि हमारे अहंकार | | नीचे है, उसे हम मान भी लें, क्योंकि उसे मानकर भी हम ऊपर बने को कोई भी पीड़ा, कोई तुलना नहीं होती। लेकिन कृष्ण की | | रहते हैं। मौजूदगी में भगवान मानना बहुत कठिन है।
इसलिए यह दुर्घटना मनुष्य के इतिहास में घटी कि हमने क्षुद्र शायद अर्जुन भी मन के किसी कोने में कृष्ण को भगवान नहीं | | लोगों को मान लिया है। मंदिर के पुजारी को मानना बहुत कठिन मान पाता होगा। शायद अर्जुन के मन में भी कहीं न कहीं किसी नहीं है, लेकिन अगर मंदिर की मूर्ति जीवित हो जाए, तो पूजा करने अंधेरे में छिपी हुई यह बात होगी कि कृष्ण आखिर कर मेरे सखा वाले ही दुश्मन हो जाते हैं! हैं, मेरे मित्र हैं, और फिलहाल तो मेरे सारथी हैं! किन्हीं ऊंचाई के दोस्तोवस्की ने एक छोटी-सी कथा लिखी है। लिखा है कि क्षणों में मन के भला लगता हो कि कृष्ण अद्वितीय हैं, लेकिन | जीसस के मरने के अठारह सौ वर्ष बाद जीसस को खयाल आया अहंकार के क्षण में तो लगता होगा कि मेरे ही जैसे हैं। कि मैं पहले जो गया था जमीन पर, तो बेसमय पहुंच गया था। वह
अगर अर्जुन भी मान पाता कि कृष्ण भगवान हैं, तो शायद इतनी | | ठीक वक्त न था, लोग तैयार न थे और मुझे मानने वाला कोई भी चर्चा की कोई जरूरत भी न थी। इतना समझाना पड़ रहा है उसे | न था। मैं अकेला ही पहुंच गया था। और इसलिए मेरी दुर्दशा हुई; कृष्ण को, उसका कारण यही है। उसका कारण यही है। कृष्ण जो | और इसलिए लोग मुझे स्वीकार भी न कर पाए, समझ भी न पाए। कह रहे हैं, इसके लिए भी कृष्ण को तर्क देने पड़ रहे हैं, क्योंकि | | और लोगों ने मुझे सूली दी, क्योंकि लोग मुझे पहचान ही न सके। अर्जुन की समझ-कृष्ण जो कह रहे हैं, वह परमात्मा का वचन | | अब ठीक वक्त है। अगर मैं अब वापस जमीन पर जाऊं, तो आधी है-ऐसी नहीं है। एक मित्र की सलाह है। तो विवाद जरूरी है, | जमीन तो ईसाइयत के हाथ में है। हर गांव में मेरा मंदिर है। चर्चा जरूरी है। और राजी हो जाए चर्चा से, तो ठीक है, मान भी | | जगह-जगह मेरे पुजारी हैं। जगह-जगह मेरे नाम पर घंटी बजती लेगा। लेकिन परमात्मा की आवाज हो, तो फिर सोचने-विचारने | | है, और जगह-जगह मेरे नाम पर मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। का उपाय नहीं रह जाता। फिर सोचना-विचारना गिर ही गया। । | आधी जमीन मुझे स्वीकार करती है। अब ठीक वक्त है, मैं जाऊं।
कृष्ण का अर्जुन से यह कहना महत्वपूर्ण है कि जो मेरे परम | | और जीसस यह सोचकर एक रविवार की सुबह बैथलहम, ऐश्वर्य को तत्व से जान पाता है!
उनके जन्म के गांव में वापस उतरे। सुबह है। रविवार का दिन है। यह परम ऐश्वर्य बहुत रूपों में प्रकट होता है। अगर ठीक से लोग चर्च से बाहर आ रहे हैं। प्रार्थना पूरी हो गई है। और जीसस समझें, तो ऐश्वर्य के सभी रूप परमात्मा के रूप हैं। और जहां भी एक वृक्ष के नीचे खड़े हो गए हैं। उन्होंने सोचा है कि आज वह श्रेष्ठतर दिखाई पड़े, दिशा वह कोई भी हो, वहां परमात्मा पारदर्शी अपनी तरफ से न कहेंगे कि मैं जीसस क्राइस्ट हूं। क्योंकि पहले
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