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सत्य कभी नहीं ठहर सकताहै.इसलिये ऊपर मुजब बातोंकी तरह श्रावण भाद्रपदादि अधिकमहीनेभी लौकिकटिप्पणामुजब वर्तमानमें मान्य करने सो युक्तियुक्त न्यायसंपन्न होनसे कभी निषेध नहीं हो सकते. और यद्यपि जैनटिप्पणामें पौष-आषाढ बढताथा,उसबातको जिनकल्पीव्यवहारकी तरह सत्यमानना,श्रद्धारखना,प्ररूपणाकरना. मगर जिनकल्पीव्यवहार अभी विच्छेद होनेसे उनको अंगीकार न. हीं करसकतेहैं, उसीतरह अभी जैनटिप्पणाभी विच्छेद होनेसे वर्तमानमें जैनटिप्पणा मुजब तिथि,वार,या पौष-आषाढमहीने मानने काआग्रहकरना सो देशकालके व सर्वपूर्वीचार्योंके सर्वथाविरुद्ध है. १८ - जैन ज्योतिष्परसे अभी जैनटिप्पणा शुरूकरें
तो शुरू हो सके; या नहीं ? यद्यपि जैनज्योतिष्क सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रवृत्ति, चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्रवृत्ति, ज्योतिकरंडपयन्नवृत्तिआदि अनेक शास्त्रमौजूद हैं, उसपरसे तिथि, वार,मास,पक्ष,वर्षादिकका गणित अभी हो सकताहै. मगर ग्रहणादि सर्वबाते बरोबर मिलान करना मुश्किल पडताहै, इसलिये कितनीक बातोमे अन्य आधारलेना पडताहे. और लौकिक व जैन दोनोंके गणित विभागमें फेर होनेसे,तिथि,वार,मास,नक्षत्र व ग्रहणादि दोनोके समानरूपसे बरोबर नहीं आसकते. और पूर्वगतगीतार्थ गुरुगम्यआम्नायके अभावसे व अल्पज्ञताकेकारणसे यदि कोई ग्रहणादि बतलानेमें न्यूनाधिक कुछ फरक पडजावे तो अभी सर्वज्ञशासनकी लघुता होनेका कारण बनजावे. और परंपरागत जैनीराजाओंका अभाव होनेसे व ब्रह्मचारी, व्रतधारी, गुरुगम्यतावाले कुलगुरु. ओंका अभाव होनेसे तथा खरतरगच्छ नायक श्रीनवांगीवृत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरिजी, श्रीशांतिसूरिजी, श्रीहेमचंद्राचार्यजी वगरह समर्थ व शासनप्रभावक आचार्यों के समय भी बहुतकालसे जैनटिप्पणाविच्छेदहोनेसे,अभी अपने अल्प बुद्धिवालोंस फिरसे शुरू नहीं होसकताहै.और कोई शुरू करें तोभी सर्वमान्य युगप्रधान समर्थआचार्य के अभावसे सर्वदेशोंके, सर्वगच्छोंके,सर्व जैनसमाजमें परंपरा. गत चल सकताभी नहीं। देखिये-जैन शासन में प्राचीनकाल में वि. शेषज्ञानी समर्थप्रभावक पूर्वाचार्योके समयमें जो बात पहिलेसे विच्छद हो जावे; उसको विशिष्टतर अवधिज्ञानादि रहित अल्पज्ञासे इसकालमें फिरसे शुरू नहीं होसके। इतनेपरभी फिरसे शुरू करें,
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