________________
कि चलानेवाला तो ऐसा कह रहा होता है कि 'गाड़ी स्पीड में हो तब अगर कोई जानवर बीच में आ जाए तो वह कुचल भी जाए, उसमें हम क्या करें?!' इस तरह कुचलने का दरवाज़ा खुला रखा ! 'गाड़ी टूटनी हो तो टूटे लेकिन किसी भी परिस्थिति में कोई मरना तो चाहिए ही नहीं ।' ऐसे दृढ़ निश्चय से किसी के कुचले जाने का कोई संयोग प्राप्त ही नहीं होगा ! जैसी चाहे वैसी ही प्रकृति बनाई जा सकती है।
प्रकृति में स्वभाव, अहंकार वगैरह सबकुछ आ गया। 'प्रकृति को बदलने के लिए मैं पुरुषार्थ कर रहा हूँ,' वह भी अहंकार है । इंसान की प्रकृति तो मरने तक भी नहीं बदलती लेकिन ज्ञान के आधार पर प्रकृति बदल सकती है, अगले जन्म के लिए । कोई भी प्रकृति से बाहर नहीं निकल सकता !
प्रकृति नहीं बदल सकती, ज्ञान बदल सकता है। घर बदल सकता है लेकिन प्रकृति नहीं बदल सकती। पहले प्रकृति के घर में रहते थे, ज्ञान के बाद अब निज घर में बैठ जाते हैं । फिर प्रकृति अपना काम करके अपने आप खत्म हो जाती है। नई प्रकृति नहीं बनती।
प्रकृति अगर बिना कंट्रोलवाली हो तो उससे खुद को ही बहुत मार पड़ती है। यों वह मार खाकर सीधा होता जाता है । ज्ञान से प्रकृति कंट्रोल में रहती है। अंत में तो प्रकृति के सहज रहने से ही काम पूरा होता है ।
1
प्रकृति नहीं बदल सकती इसलिए यह ज्ञान मिलने के बाद उसका तू 'समभाव से निकाल' कर । हाँ, ज्ञान से प्रकृति एकदम ढीली हो जाती है क्योंकि उसे अब अंहकार का आधार नहीं रहा न ! अहंकार निकल जाने से प्रकृति मृतप्राय हो जाती है। भाव निकल जाते हैं, मात्र हाव रहते हैं । भाव व्यवहार आत्मा का और हाव प्रकृति का ! सामनेवाले को भी हमारी प्रकृति के बारे में ऐसा पता चल जाता है कि इनमें भाव नहीं है । इसलिए अपने से सामनेवाले को बहुत दुःख नहीं होता ।
पंखे का स्वभाव सिर्फ घूमने का है, उसमें कर्तापन नहीं है। जबकि मनुष्य में प्रकृति का स्वभाव और कर्तापन दोनों होते हैं । ज्ञान मिलने के बाद
26