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जाती है। इसलिए ऐसा लगता है कि प्रकृति बदल गई। बाकी प्रकृति जो खुद ही इफेक्ट के रूप में है, वह कैसे बदलेगी?
दादाश्री को कोई मान दे या अपमान करे, दोनों ही समय में अंदर से अलग ही रहते हैं। महात्मा कई बार अलग नहीं रह सकते लेकिन उसे भी अलग ही देखना है!
__ अक्रम मार्ग के महात्माओं को अलौकिक भाव होते हैं, उसका परिणाम अभी मिलेगा या अगले जन्म में? दोनों ही बार। जो प्रकृति आज बन रही है उसका फल अगले जन्म में मिलेगा और अभीवाले अलौकिक भावों के परिणामतः रोशनी मिलती है हमें। ज्ञान मिलने के बाद प्रकृति शांत हो जाती है न?!
प्रकृति का कुछ भाग चेन्जेबल है और कुछ नहीं। वास्तव में तो किसी की भी प्रकृति चेन्ज होती ही नहीं है लेकिन प्रकृति की लिंक में यह चेन्ज तो आ ही रहा था पहले से, वह अभी दिखाई देता है। अंदर चेन्जवाली है ही।
कृष्ण भगवान ने गीता में कहा है कि 'प्रकृति का निग्रह किम करिष्यति?' प्रकृति का निग्रह नहीं करना है। प्रकृति को निहारना है!
प्रकृति नहीं बदलती। लोभी मरने से पहले लकड़ी के खर्च के बारे में सोच रहा होता है ! अब लोभी प्रकृतिवाले को क्या भावना करनी चाहिए कि मेरा सर्वस्व जगत् कल्याण में खर्च हो जाए। तन-मन-धन से! उसके फल स्वरूप अगले जन्म में विशाल मन मिलेगा! अतः नई भावना करके सुधारो।
हम से कोई भी जीव न मरे, उसके लिए क्या करना चाहिए? दृढ़ निश्चय करना चाहिए कि मेरे द्वारा कोई भी जीव मारा या कुचला न जाए। निरंतर दृढ़ भावना हाज़िर रहे न तो परिणाम स्वरूप वह अहिंसक बना देगी! जगत् अपनी ही भावना का ही फल है। इसलिए उच्च भावना करनी चाहिए। पशु-पक्षियों को कुचलने की इच्छा है ही नहीं, फिर भी अगर गाड़ी चलाते हुए कुचले गए तो उसका क्या कारण है? तो जाँच करने पर पता चलेगा
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