________________
२४ | अप्पा सो परमप्पा दार्शनिकों में आत्मा के अस्तित्व के विषय में दो दल
प्रत्यक्षज्ञानियों ने तो इसका उत्तर अनुभूति और प्रत्यक्ष ज्ञानशक्ति के आधार पर दे दिया, परन्तु दार्शनिक प्रायः परोक्षज्ञानी थे, उन्होंने इसका उत्तर तर्क की कसौटी पर कस कर दिया। दार्शनिकों में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म पर कई विवाद हए । बुद्धि के द्वारा जब किसी अतीन्द्रिय वस्तु के विषय में समाधान किया जाता है, तब तर्क, अनुमान और युक्ति का ही आश्रय लिया जाता है। इससे दार्शनिकों द्वारा विविध तर्क, अनुमान और युक्तियों के तीर छोड़े गए । इन सबके फलस्वरूप दार्शनिकों में दो दल हो गये।
एक दल ने इस शंका का सयुक्तिक समाधान प्रस्तुत किया कि आत्मा है, क्योंकि इसका पूर्वजन्म और पुनर्जन्म होता है। मध्य विराम इसका साक्षी है, जो कि वर्तमान जन्म है।
दूसरे दार्शनिक दल ने इस तथ्य का विरोध किया । उसने कहान पूर्वजन्म होता है और न पुनर्जन्म, केवल वर्तमान जन्म ही प्रत्यक्ष है। उसे ही हम मानते हैं। आस्तिक और नास्तिक : दो दल
इस प्रकार दार्शनिक दल दो धाराओं में प्रवाहित हो गया। एक दल को आस्तिक कहा गया और दूसरे दल को नास्तिक । आस्तिक का अर्थ यहाँ शब्दशः इतना ही है-जो आत्मा को मानता है वह, और नास्तिक का अर्थ है-जो आत्मा को नहीं मानता वह। इसके अनुसार दार्शनिक दो दलों में विभक्त हो गए-एक आत्मा को मानने वाला दल और दूसरा आत्मा को न मानने वाला। ___वास्तव में, जो आत्मा को मानता है, वह स्वर्ग-नरक (परलोक) शुभ-अशुभ कर्म (पुण्य-पाप) एवं पूर्वजन्म-पुनर्जन्म आदि को मानता ही है क्योंकि इनके माने बिना आत्मा की त्रैकालिक सत्ता, या शाश्वतता का स्वीकार नहीं होता। जबकि आत्मा को न मानने वाला दल, आत्मा को
कालिक सत्ता या शाश्वतता का स्वीकार नहीं करता, वह केवल वर्तमान कालिक चेतना (आत्मा नहीं) को ही स्वीकार करता है।
१. 'आस्ति नास्ति दिष्टं मतिः'-पाणिनी अष्टाध्यायी के अ. ४,पाद ४, सू. ६० __ के अनुसार आस्तिक और नास्तिक शब्द बनते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org