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२८४ | अप्पा सो परमप्पा
और उसके कुटुम्बीजन, मित्र आदि सब श्मशान तक उसके शव के साथ जाते हैं, 1 वे भी उसको बचाने में असमर्थ रहते हैं । कोई भी सांसारिक पदार्थ उसकी आत्मा को शरण देकर उसके विकास, रक्षण एवं आत्मिक सुख-शान्ति प्रदान करने में समर्थ नहीं रहा । न ही वह मोहमुग्ध मनुष्य किसी को त्राण एवं शरण दे सका । इसीलिए आचारांग सूत्र में बार बार कहा गया है
नालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा । तुमपि तेस ताणाए वा सरणाए वा ॥ १
और
वे तेरा त्राण (रक्षण ) करने और तुझे शरण देने में समर्थ नहीं हैं, तुम भी उनका त्राण ( रक्षण) करने और उन्हें शरण देने में समर्थ नहीं हो ।
शरण ग्रहण करने योग्य एकमात्र परमात्मा के चरण
ऐसी स्थिति में प्रश्न होता है, तब कौन ऐसा है जो संसार समुद्र में नानादुःखों से परिपूर्ण जल में डूबते हुए सामान्य मानव को शरण दे सकता है ? उसे अपने स्वरूप का, अपनी आत्मा के विशिष्ट निजी गुणों (ज्ञान, दर्शन, आत्मिक सुख और आत्मशक्ति) का भान करा सकता है ? उसे जन्ममरणरूप संसार-समुद्र में डूबने से बचा सकता है ? इसका उत्तर आद्य शंकराचार्य की निम्नोक्त प्रश्नोत्तरी में पढ़िए
अपार-संसार - समुद्रमध्ये, निमज्जतो मे शरणं किमस्ति ? गुरो ! कृपालो ! कृपया वदैतत् विश्वेश पादाम्बुज- दीर्घ नौका | 3
हे कृपालु गुरुदेव ! कृपा करके मुझे यह बताइये कि मैं इस संसार रूपी समुद्र से डूब रहा हूँ। ऐसी स्थिति में मेरे लिए शरण (आश्रय) कौनसी वस्तु होगी, जिसे पकड़कर मैं बच सकूँ, तर सकूँ ? उत्तर मिला - विश्व सर्वाधिक आत्मिक ऐश्वर्य से सम्पन्न परमात्मा के चरण-कमल ही तेरे लिये दीर्घ ( लम्बी ) नौका के समान शरणरूप होंगे ।
सचमुच वीतराग परमात्मा के चरण भवजल में डूबते-गिरते हुए मनुष्यों के लिये नौका के समान शरण देने वाले हैं । भक्तामर ( आदिनाथ ) स्तोत्र में इसी रहस्य को प्रकट किया गया है -
१ धनानिभूमौ पशवश्च य गोष्टं, नारीगृहद्वारि जनाः श्यशानी । —नीतिशास्त्र २ आचारांग श्रु. १, अ, २, उ. १ सु. १८५, १६४, १६८
३ शंकराचार्य प्रश्नोत्तरी श्लोक १
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