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परमात्मभाव से भावित आत्मा : परमात्मा
जैसे भाव, वैसी बुद्धि और शक्ति श्रमणसंस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हैयादृशी भावना यस्य, बुद्धिर्भवति तादृशी-जिसकी जैसी भावना होती है, उसकी बुद्धि भी वैसी ही बन जाती है। कोई भी व्यक्ति जिस प्रकार की भावना से अपने आपको भावित करता है, वैसा ही बन जाता है। भावपाहुड में कहा है-किसी भी मनुष्य के गुण या दोष से युक्त होने में उसके भाव ही कारण हैं 11 केवल व्यक्ति ही नहीं, हर पदार्थ भी भावित हो सकता है। आयुर्वेदिक औषधियों में कई रसायन एवं भस्म भावना का पुट देकर अमुक गुण धर्मों में परिवर्तित कर दिये जाते हैं । उस भस्म या रसायन की शक्ति एवं क्षमता बदल जाती है। सादा पानी विविध रंग की बोतलों में भर सूर्य-किरणों से भावित किया जाता है, तब उसके गुणधर्म भी बदल जाते हैं। भावित होने पर पदार्थों और व्यक्तियों में रासायनिक परिवर्तन भी हो जाते हैं।
नाटक-सिनेमा आदि में भी नाट्यकर्ता या सिनेमाएक्टर थोड़े समय के लिये तो जिस स्त्री या पुरुष की
१ भावो कारणभूदो गुणदोसाणं जिणाविति ।
-भावपाहुड २
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