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__ हृदय का सिंहासन : परमात्मा का आसन
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हृदय कोमल भावनाओं का प्रतीक हृदय अपने आप में कठोर, क्रूर, पापमय नहीं होता । पापी से पापी अथवा क्रूर से क्रूर प्राणी का भी हृदय कोमल, वात्सल्यमय, प्रेममय, श्रद्धामय एवं दयामय होता है । अर्जुनमाली, दृढ़प्रहारी, चिलातीपुत्र, रोहिणेय आदि मानव बाहर से जितने ही क्रूर, नृशंस, हत्यारे या पापत्मा माने जाते थे, उनका अन्तर् हृदय उतना ही कोमल, वात्सल्यमय एवं दयामय था। इसीलिए हृदय आत्मविश्वास, श्रद्धा, सरलता, वत्सलता, मृदुता, नम्रता, क्षमा, दया, करुणा, सहानुभूति, अनुकम्पा आदि कोमल भावनाओं का प्रतीक माना जाता है।
और तो और सर्प, सिंह, व्याघ्र, भेड़िया आदि क्रूर एवं हिंस्र माने जाने वाले प्राणियों के अन्तर्हदय भी कोमल पाये जाते हैं । चण्डकौशिक जितना क्रूर और हिंस्र था, प्रभु महावीर के जरा-से कोमल उद्बोधन से उसका कर हृदय उतना ही शान्त, कोमल, निर्मल, दयामय एवं वात्सल्यमय बन गया। एंड्यूक्लीज नामक गुलाम के द्वारा अपनी पीड़ा दूर किये जाने के कारण सिंह के हृदय की क्रूरता भी कोमलता में परिणत हो गई। यदि सिंह के हृदय में कोमलता, वत्सलता आदि मृदुभावनाएँ न होती तो भूखा सिंह अपने उपकारी को भी मार सकता था।
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